राजस्थान में जारी सियासी रस्साकशी के बीच – जिसपर कांग्रेस-पार्टी के स्वघोषित प्रवक्ता संजय झा से लेकर फ़ेसबुकिया कल्लू ख़ान तक अपनी राय दे रहे हैं, सूबे की दो बार मुख्यमंत्री रह चुकीं वसुंधरा राजे बिल्कुल ख़ामोश हैं, कुछ इस हद तक कि कई हल्क़ों में पूछा जा रहा है कि ख़ामोशी में आपके क्या राज़ छुपा है?
विरोधी पार्टी की सरकार गिरने और अपने दल के फिर से सत्ता में पहुंचने जैसे अहम मामले में राजे का कोई सीधा बयान आना तो दूर, पिछले हफ़्ते भर में उन्होंने ‘सचिन-पॉलिटिकल-अफ़ेयर’ पर एक ट्वीट तक नहीं किया है.
शनिवार से जारी इस संकट के दौरान राजे राजधानी तक में नहीं! राजस्थान विधानसभा में विपक्ष के नेता गुलाब चंद कटारिया के हवाले से ख़बर है कि वो शाम तक जयपुर आएंगी.
राजनीतिक विश्लेषक उर्मिलेश वसुंधरा राजे की चुप्पी के सवाल पर उसकी व्याख्या ‘उनकी केंद्रीय नेतृत्व को लेकर और मोदी-शाह की उनसे असहज रिश्ते’ में करते हैं.
उर्मिलेश के हिसाब से राजे किसी युवा नेता, और वो भी पिछड़ी जाति से ताल्लुक़ रखनेवाले नेता के पार्टी में आने को अपने लिए ख़तरे के तौर पर देख सकती हैं जो आज नहीं तो भविष्य में उनके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है.