प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के ‘आत्मनिर्भर भारत’ विजन के तहत स्वदेशीकरण को और गति देने के लिए गुरुवार को भारतीय सेना और सोसाइटी ऑफ इंडियन डिफेंस मैन्युफैक्चरर्स (एसआईडीएम) के बीच एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए। इस अवसर पर थलसेना प्रमुख जनरल एमएम नरवणे ने स्वदेशी रक्षा उद्योग का समर्थन करके आत्मनिर्भरता हासिल करने की दिशा में सेना और भारत के दृढ़ संकल्प को दोहराया। इस समझौते का मकसद विदेशी मूल उपकरण पर निर्भरता कम करके स्वदेशी रक्षा उद्योग को बढ़ावा देना है।
1995 में भारतीय सेना और उद्योग जगत के बीच शुरू हुई साझेदारी
रक्षा मंत्रालय के अनुसार भारतीय उद्योग परिसंघ (सीआईआई) के साथ सेना और उद्योग जगत के बीच साझेदारी के 25 वर्ष पूरे होने के अवसर पर इस समझौते पर हस्ताक्षर किए गए। कल-पुर्जों के स्वदेशीकरण के साथ 1995 में भारतीय सेना और उद्योग जगत के बीच साझेदारी शुरू हुई थी जिसमें विभिन्न हथियारों एवं उपकरणों को लेकर काफी प्रगति हुई है। देश की अनिर्णीत सीमाओं और अंतरराष्ट्रीय समुदाय में भारत का प्रभाव बढ़ने के कारण सुरक्षा की चुनौतियां बढ़ रही हैं जिनके समाधान के लिए सेना का आधुनिकीकरण करने के साथ ही निरंतर क्षमता निर्माण की जरूरत है। इसलिए सेना को अपने देश में निर्मित उपकरणों से सुसज्जित किया जाना है।
स्वदेशीकरण को मिलेगा समर्थन
उद्योग जगत के साथ प्रत्यक्ष सुविधा प्रदाता के रूप में काम करने के लिए सैन्य डिजाइन ब्यूरो (एडीबी) की स्थापना की गई है और इसके जरिये रक्षा निर्माताओं को सीधे तौर पर उपभोक्ताओं के साथ जोड़ दिया गया है। इन बदलावों के परिणामस्वरूप प्रौद्योगिकी प्रदान करने वालों, उपकरण निर्माताओं और उपभोक्ताओं के बीच सहयोगात्मक संबंध कायम हुए हैं। सरकार ने सेना के सक्रिय सहयोग से रक्षा के क्षेत्र में स्वदेशीकरण को समर्थन देने तथा आत्मनिर्भरता तक पहुंचने के उद्देश्य से नीति संबंधी आवश्यक बदलाव किए हैं।
उद्योग संघों ने अपनी विशेषज्ञता प्रदर्शित करने को लेकर भारतीय सेना के साथ संपर्क कायम करने के उद्देश्य से उद्योग जगत के लिए एक साझा मंच प्रदान किया है। उद्योग जगत से प्राप्त सुझावों ने नीतिगत संशोधनों एवं परिवर्तनों को काफी प्रभावित किया है। एसआईडीएम के साथ समझौते पर हस्ताक्षर होने से भारतीय सेना ने स्वदेशी रक्षा उद्योग को समर्थन एवं सहायता देकर आत्मनिर्भर बनने की दिशा में अपना दृढ़ संकल्प दोहराया है।