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Friday, May 3, 2024

महिलाओं के खिलाफ अपराध पर सर्वोच्च न्यायालय की गाइड लाइन

नई दिल्ली.. देश में महिलाओं के खिलाफ हो रहे अपराधों को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट और लोअर कोर्ट्स की टिप्पणियों के आधार पर एक गाइडलाइन तैयार की है. गुरुवार को शीर्ष अदालत ने अपने एक फैसले में महिलाओं के खिलाफ अपराध पर गाइडलाइन निर्धारित करते हुए मध्य प्रदेश के उस फैसले को खारिज कर दिया है, जिसमें यौन उत्पीड़न के आरोपी को पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त पर जमानत प्रदान की गई थी. उल्लेखनीय है कि हाल ही में मध्य प्रदेश की उच्च न्यायालय ने छेड़छाड़ के मामले में आरोपी को जमानत देते हुए पीड़िता से राखी बंधवाने की शर्त रखी थी. जिसके बाद अदालत के इस फैसले को नौ महिला वकीलों ने चुनौती दी थी. महिला वकीलों ने कहा कि यह फैसला कानून के सिद्धांतों के विरुद्ध है. वहीं अटॉर्नी जनरल ने भी इस फैसले को निंदनीय करार दिया था.

महिलाओं के खिलाफ अपराध पर सर्वोच्च न्यायालय की गाइड लाइन:- 

-आरोपी को जमानत देने के पहले अदालत पीड़ित को पूरा संरक्षण सुनिश्चित करें. कोई आवश्यक नहीं कि पीड़ित और आरोपी के बीच मेल मिलाप की शर्त रखी जाए. 
-यदि आरोपी की तरफ से दबाव बनाने की शिकायत पीड़िता की ओर से मिले तो अदालत को साफ तौर पर आरोपी को आगाह कर देना चाहिए कि वो किसी भी सूरत में पीड़ित से कोई संपर्क नहीं करेगा.
-सभी मामलों में जमानत देने के साथ ही शिकायतकर्ता को सूचित किया जाए कि आरोपी को जमानत प्रदान की दी गई है. साथ ही जमानत की शर्तों की प्रति भी दो दिनों के अंदर मुहैया करा दी जाए. 
– प्रत्येक मामले में जमानत मंजूर करने की शर्तें तय करने लिए एक ही स्टीरियो टाइप एप्रोच न अपनाई जाए. 
– अदालत अपनी ओर से मेल मिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव ना दे. अदालतों को अपने न्यायक्षेत्र या अधिकारों की मर्यादा पता होनी चाहिए. उस लक्ष्मण रेखा को पार ना करें. 
संवेदनशीलता हर कदम पर दिखनी चाहिए. जिरह बहस, आदेश और फैसले में हर जगह पीड़ा का अहसास कोर्ट को भी रहना चाहिए. खास कर जज अपनी बात रखते समय ज्यादा सावधान, संवेदनशील रहें ताकि पीड़ित का आत्मविश्वास न डगमगाए और ना ही कोर्ट की निष्पक्षता पर कोई असर पड़े .महिलाओं के खिलाफ अपराध पर सर्वोच्च न्यायालय की गाइड लाइन:- 

-आरोपी को जमानत देने के पहले अदालत पीड़ित को पूरा संरक्षण सुनिश्चित करें. कोई आवश्यक नहीं कि पीड़ित और आरोपी के बीच मेल मिलाप की शर्त रखी जाए. -यदि आरोपी की तरफ से दबाव बनाने की शिकायत पीड़िता की ओर से मिले तो अदालत को साफ तौर पर आरोपी को आगाह कर देना चाहिए कि वो किसी भी सूरत में पीड़ित से कोई संपर्क नहीं करेगा.-सभी मामलों में जमानत देने के साथ ही शिकायतकर्ता को सूचित किया जाए कि आरोपी को जमानत प्रदान की दी गई है. साथ ही जमानत की शर्तों की प्रति भी दो दिनों के अंदर मुहैया करा दी जाए. – प्रत्येक मामले में जमानत मंजूर करने की शर्तें तय करने लिए एक ही स्टीरियो टाइप एप्रोच न अपनाई जाए. – अदालत अपनी ओर से मेल मिलाप या समझौता करने की शर्त, सुझाव ना दे. अदालतों को अपने न्यायक्षेत्र या अधिकारों की मर्यादा पता होनी चाहिए. उस लक्ष्मण रेखा को पार ना करें. संवेदनशीलता हर कदम पर दिखनी चाहिए. जिरह बहस, आदेश और फैसले में हर जगह पीड़ा का अहसास कोर्ट को भी रहना चाहिए. खास कर जज अपनी बात रखते समय ज्यादा सावधान, संवेदनशील रहें ताकि पीड़ित का आत्मविश्वास न डगमगाए और ना ही कोर्ट की निष्पक्षता पर कोई असर पड़े .

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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