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Monday, May 20, 2024

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने हिंदू महिला को उसके मुस्लिम पति से मिलवाते हुए कहा , ‘महिलाओं के पास अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीने का अधिकार

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक हिंदू महिला को उसके मुस्लिम पति से एक बार फिर मिलवाते हुए यह कहा कि ‘महिला के पास अपना जीवन अपनी शर्तों पर जीने का अधिकार है।’ जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवार की पीठ ने महिला के पति द्वारा दायर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका की सुनवाई के दौरान यह आदेश दिया। शख्स ने अपनी याचिका में शिकायत की थी कि नारी निकेतन या चाइल्ड वेलफेयर कमिटी (CWC) ने उसकी पत्नी की मर्जी के खिलाफ उसे अपने माता-पिता के पास भेज दिया है।

महिला का बयान सुनने के बाद खंडपीठ ने यह पाया कि महिला भी अपने पति के साथ रहना चाहती है। कोर्ट ने  से कहा, ‘किसी भी तीसरे पक्ष के प्रतिबंध या रुकावट के बिना महिला अपनी मर्जी से कहीं जाने के लिए आजाद है।’ कोर्ट ने महिला के पति के खिलाफ दायर उस एफआईआर को भी खारिज कर दिया जिसमें उसपर महिला के अपहरण का आरोप लगाया गया था।

कोर्ट ने चीफ ज्यूडिशल मजिस्ट्रेट के महिला को नारी निकेतन भेजने के आदेश को भी गलत ठहराया और कहा कि ट्रायल कोर्ट, CWC एटा ने  इस मामले में कानूनी प्रावधानों का पालन नहीं किया है।

कोर्ट ने कहा कि महिला की जन्मतिथि 4 अक्टूबर, 1999 है जिसका मतलब है कि वह बालिग है लेकिन ट्रायल कोर्ट ने यह इस प्रावधान का पालन नहीं किया कि जब किसी का स्कूल सर्टिफिकेट दिखा दिया जाता है तो बाकी कोई भी सबूत उतने मायने नहीं रखते।

कोर्ट ने 16 दिसंबर को पुलिस को यह आदेश दिया था कि वह महिला को 18 दिसंबर को पेश करे। इसके बाद महिला से मिलकर कोर्ट ने कहा, ‘चूंकि महिला बालिग है और उसे अपनी शर्तों पर जीवन जीने का अधिकार है, ऐसे में महिला अगर अपने पति के साथ रहना चाहती है तो वह अपनी मर्जी से किसी तीसरे पक्ष की रुकावट, प्रतिबंध के बिना उसके पास जाने के लिए आजाद है।’

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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