[22:14, 18/11/2020] Anita Mam: भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया के समूह यानी क्वाड की नौसेनाओं ने मालाबार युदाभ्यास के तहत अरब सागर में दूसरे चरण का अभ्यास मंगलवार से शुरू कर दिया है। भारत अपने विक्रमादित्य विमान वाहक पोत के साथ है तो वहीं अमेरिकी विमान वाहक पोत निमित्ज ऑस्ट्रेलिया और जापान की नौसेना की अग्रिम मोर्चों पर तैनात पोत चार दिनों तक युद्धाभ्यास करेंगे।
मालाबार युद्धाभ्यास 1992 में भारतीय नौसेना और अमेरिकी नौसेना की बीच एक द्विपक्षीय अभ्यास के रूप में शुरू हुआ था। बाद में 2015 में जापान इसका स्थाई सदस्य बन गया और अब इसमें ऑस्ट्रेलिया को भी शामिल कर लिया गया है। आइए अब जानते हैं इस अभ्यास के क्या है मायने और इस अभ्यास से भारत की सामुद्रिक शक्ति को कितनी मजबूती मिलेगी। शांति और समृद्धि के लिहाज से यह अभ्यास भारत प्रशांत क्षेत्र के लिए कितना जरूरी है। साथ ही साथ इस अभ्यास में ऑस्ट्रेलिया के शामिल हो जाने के बाद से समुद्री सुरक्षा का परिदृश्य कितना बदल जाएगा। साथ ही साथ भारत की उत्सागर डॉक्टरीन को मालाबार एक्सरसाइज कितना बल प्रदान करेगी।
मालाबार अभ्यास कितना महत्वपूर्ण
डिफेंस एक्सपर्ट्स बताते हैं कि मालाबार युद्धाभ्यास से क्वॉड के चारों देशों की नौसैनिक शक्तियां 2007 में जितनी थी उतनी ही अभी बढ़ चुकी है। इस युद्धाभ्यास में संयुक्त नौसेनाओं के पोत के अंतिम लक्ष्य की बात करें तो वह यह है कि समुद्री क्षेत्रों में होने वाले संघर्ष को लेकर वास्तविक क्षमता का प्रदर्शन अभ्यास है।
नियम आधारित अंतर्राष्ट्रीय व्यवस्था को बनाए रखना प्राथमिकता
इस युद्धाभ्यास के जरिए यह पैगाम (स्ट्रेटिजिक सिग्नलिंग) देने की कोशिश की जा रही कि जिससे चीन जैसे देश को स्पष्ट हो जाए कि भारत अकेला नहीं है। यह इसलिए संभव है क्योंकि भारत नियमों पर आधारित समाधान से पक्का इरादा रखता है।
मालाबार युद्धाभ्यास इस बार क्यों है खास
मालाबार युद्धाभ्यास इस बार इसलिए ज्यादा खास है क्योंकि इस बार यह बंगाल की खाड़ी में किया गया और हिंद प्रशांत के उत्तर पूर्व यानी अरब सागर में भी किया जा रहा है। मालाबार अभ्यास का पहला चरण बंगाल की खाड़ी में आयोजित किया गया था। दूसरी ख़ासियत है कि इस बार हर एक राष्ट्र ने अपने उन्नत जहाज़ों को युद्धाभ्यास में भेजा है। इनमें पनडूब्बियां, विमानवाहक पोत और विमान इत्यादि शामिल है जिनका एक साथ युद्धाभ्यास हो रहा है। इसलिए यह और भी ज्यादा महत्वपूर्ण है। यह चीन के लिए भी बहुत बड़ी सांकेतिक एक्सरसाइज है। सवाल ये भी उठता है कि क्या है मालाबार युद्धाभ्यास की अहमियत ।
सामरिक दृष्टि से देखें तो ये युद्धाभ्यास इसलिए भी महत्वपूर्ण है ताकि युद्ध की परिस्थिति में दो देशों की नौसेनाओं के बीच एक सामंजस्य स्थापित किया जा सके ताकि एक दूसरे के कम्यूनिकेशंस मॉडल को आसानी से जानने में सहायता मिल सके ।
समावेशी इंडो-पैसिफिक की प्रतिबद्धता पर रहेगा जोर
सामरिक दृष्टि से भी ये अहम है कि ये चार जनतांत्रिक देशों का युद्धाभ्यास है। ऑस्ट्रेलिया इस अभ्यास में 2007 में भी शामिल हुआ था लेकिन उसके बाद ऑस्ट्रेलिया इससे अलग हो गया था और उसके बाद 2015 तक सिर्फ भारत और अमेरिका की बाइलेटरल एक्सरसाइज हुई थी। 2015 से जापान इसमें शामिल हुआ और ऑस्ट्रेलिया काफी सोच विचार करने के बाद फिर एक बार फिर इस साल से इस अभ्यास जुड़ गया है।
चीन पर युद्धाभ्यास को लेकर फर्क
चीन में यकीनन इस बात को लेकर चिंता है कि चार बड़ी-बड़ी नौसैनिक शक्तियां हिंद महासागर क्षेत्र में एक साथ आ गई हैं और एक साथ अभ्यास कर रही हैं। इस अभ्यास का फर्क पड़ता है क्योंकि जब नौसेनाएं जब एक साथ अभ्यास करती हैं तो उनके अंदर इंटर ऑपरेबिलिटी आती है और जब युद्ध का समय हो तो वो एक साथ अंडरस्टैंडिंग के साथ आसानी ऑपरेट कर सकती हैं।