किसान आंदोलन का आज 19वां दिन है। कोरोना का खतरा और गिरते पारे के बीच उनकी बड़ी लड़ाई जारी है। नए कृषि कानूनों को रद्द करने की मांग को लेकर बड़ी तादाद में किसान 26 नवंबर से दिल्ली के बॉर्डर पर डटे हैं। किसान सिंधु, टिकरी, पलवल, गाजीपुर सहित कई नाकों पर डटे हैं। वहीं तीनों कृषि कानूनों को रद्द कराने की मांग को लेकर आज किसान नेताओं का धरना प्रदर्शन और भूख हड़ताल का कार्यक्रम है। प्रदर्शनकारी किसान आज देश के सभी जिला कार्यालयों पर धरना प्रदर्शन करेंगे और सुबह 8 से शाम 5 बजे तक भूख हड़ताल करेंगे। यह भूख हड़ताल आज से आंदोलन को तेज करने की किसानों की योजना का हिस्सा है।आपको बता दें कि नए कृषि कानूनों के खिलाफ बीते दो सप्ताह से अधिक समय से दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हैं और धरना- प्रदर्शन कर रहे हैं। किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने रविवार को सिंघू बॉर्डर पर संवाददाता सम्मेलन को संबोधित करते हुए कहा कि नेता अपने-अपने स्थानों पर भूख हड़ताल करेंगे। पत्रकारों से बात करते हुए चढूनी ने कहा कि ‘देशभर के सभी जिला मुख्यालयों पर धरने भी दिए जाएंगे। प्रदर्शन इसी प्रकार चलता रहेगा। कुछ समूह प्रदर्शन खत्म कर रहे हैं और कह रहे हैं कि वे सरकार द्वारा पारित कानूनों के पक्ष में हैं। हम साफ करना चाहते हैं कि वे हमसे नहीं जुड़े हैं। सरकार के साथ उनकी साठगांठ है। हमारे आंदोलन को कमजोर करने का उन्होंने षड़यंत्र रचा है। किसानों के प्रदर्शन को खत्म करने के लिए साजिश रच रही सरकार है।’वहीं किसान नेता राकेश टिकैत ने रविवार को कहा कि ‘अगर सरकार बातचीत का एक और प्रस्ताव रखती है तो हमारी कमेटी उसपर विचार करेगी। हम सभी से प्रदर्शन के दौरान शांति बरकरार रखने की अपील करते हैं।’ आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी समेत तमाम केंद्रीय मंत्री किसानों से जिद्द छोड़ने की अपील कर चुके हैं। कृषि सुधारों का बचाव करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि हम किसानों की आय बढ़ाने और उन्हें अधिक समृद्ध बनाने के लिए ये सभी पहल कर रहे हैं। आज, भारत के किसान अपनी उपज को मंडियों और साथ ही बाहर भी बेच सकते हैं।गौरतलब है कि सरकार और किसानों के बीच इस मसले को सुलझाने के लिए कई दौर की बातचीत हो चुकी है लेकिन अबतक कोई निष्कर्ष नहीं निकल सका है। सरकार जहां कृषि कानून में संशोधन की बात कर रही है, वहीं किसान कानून को रद्द करने की अपनी मांग पर अड़े हुए हैं। सरकार के साथ कई दौर की बातचीत बेनतीजा रहने के बाद किसानों ने सरकार को अपने आंदोलन को और तेज करने की चेतावनी दी है। सरकार से कई दौर की वार्ता के बाद भी किसान पीछे हटने को तैयार नहीं है। किसान तीनों कृषि कानूनों को वापस किए जाने पर मांग पर अड़े हुए हैं। हालांकि इस बीच किसान संगठनों का कहना है कि सरकार से बातचीत के दरवाजे खुले हैं, लेकिन कानून वापसी के अलावा उन्हें कुछ भी मंजूर नहीं है।