ग्रेटर हैदराबाद नगर निगम के चुनाव में बड़ी सफलता हासिल कर भाजपा ने दक्षिण भारत में अपने लिए एक और रास्ता खोला है। एआईएमआईएम और टीआरएस के गढ़ में भाजपा ने अपनी ताकत लगभग 12 गुना बढ़ाई और नगर निगम को त्रिशंकु स्थिति में ला खड़ा किया है। हैदराबाद से भाजपा को तेलंगाना के साथ आंध्र प्रदेश में भी लाभ मिलने की उम्मीद है। कहने को तो यह एक बड़े स्थानीय निकाय के चुनाव हैं, लेकिन इनका महत्व भाजपा की दक्षिण भारत की राजनीति के लिए बेहद अहम है। इसीलिए भाजपा अध्यक्ष जेपी नड्डा, गृह मंत्री अमित शाह और उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यहां पर प्रचार का मोर्चा संभाला था।
ध्रुवीकरण की राजनीति में एआईएमआईएम ने तो अपना प्रदर्शन लगभग बरकरार रखा है, लेकिन टीआरएस को बड़ा झटका लगा है। भाजपा ने उसके प्रभाव क्षेत्र में बड़ी सेंध लगाकर 2023 के विधानसभा चुनाव के लिए टीआरएस को बड़ी चुनौती पेश की है। हाल में हुए एक विधानसभा उपचुनाव में भी भाजपा ने टीआरएस को मात देकर उससे सीट छीनी थी। इसके पहले 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा के चार सांसद यहां से चुने गए थे।
भाजपा की यह सफलता इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि साल 2018 के विधानसभा चुनाव में उसके दो विधायक चुने गए थे। भाजपा ने राज्य की 117 सीटों में से 100 सीटों में अपनी जमानत गंवाई थी। उसके बाद दो सालों के भीतर टीआरएस की प्रमुख प्रतिद्वंदी बनकर उभरी है। हैदराबाद के स्थानीय निकाय के चुनाव का ज्यादा महत्व इसलिए भी है कि यहां पर भाजपा की सफलता से दक्षिण भारत के लोगों में एक बड़ा संदेश जाएगा।
तेलंगाना-आंध्र की सियासत के लिहाज से हैदराबाद अहम:
कर्नाटक में कई बार सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा अभी तक दक्षिण के अन्य राज्यों में अपना मजबूत स्थान नहीं बना पाई थी, लेकिन अब हैदराबाद ने दूसरा रास्ता भी खोल लिया है। हैदराबाद से तेलंगाना की राजनीति तो पार्टी करेगी ही, वह यहां से आंध्र प्रदेश में भी आगे बढ़ने की कोशिश करेगी।
ये दोनों राज्य उसकी भावी रणनीति में अहम होंगे। तमिलनाडु और केरल उसकी अभी भी कमजोर कड़ी है, लेकिन हैदराबाद का आक्रमक रणनीति से बना रास्ता उसे दक्षिण के अन्य राज्यों तक पहुंचा सकता है। दरअसल भाजपा के लिए दक्षिण भारत में अपनी मजबूत पहचान और विश्वसनीयता को कायम करना है ताकि क्षेत्रीय दलों के वर्चस्व वाले इन राज्यों में वह पैठ बना सके।