सऊदी अरब के ऊर्जा मंत्री प्रिंस अब्दुल्लाजीज़ बिन सलमान ने कहा है कि आने वाले दिनों में सऊदी अरब अक्षय ऊर्जा से क्षेत्र में ‘दूसरा ज़र्मनी’ बनकर उभरेगा. देश में 50 फ़ीसदी ऊर्जा की निर्भरता अक्षय ऊर्जा के ज़रिए पूरी की जाएगी.
बुधवार को रियाद में चल रहे फ्यूचर इन्वेस्टेमेंट इनिशिएटिव (एफ़आईआई) समिट में उन्होंने ये बात कही.अब्दुल्लाज़ीज़ ने कहा कि स्वच्छ ऊर्जा की हमारी इस योजना से सैकड़ों-हज़ारों तेल के बैरल बचेंगे.क्राउन प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान के किंगडम विज़न 2030 का उद्देश्य पोस्ट हाइड्रोकार्बन युग के लिए अर्थव्यवस्था की तेल पर निर्भरता के इतर उसमें विविधता लाना है.
इस योजना के तहत आने वाले 10 सालों में 60 गीगावाट की अक्षय ऊर्जा की क्षमता विकसित की जाएगी. जिसमें फोटोवोल्टिक सौर ऊर्जा के 40 गीगावाट, केंद्रित सौर ऊर्जा के तीन गीगावाटऔर पवन ऊर्जा के 16 गीगावाट शामिल होंगे.
ऊर्जा मंत्री ने कहा, ‘’हम जो भी करेंगे उसमें कार्बन उत्सर्जन कम होगा. आर्थिक स्तर पर ये एक बड़ा मसला होगा. सऊदी को एक तर्कशील और अच्छे देश के तौर पर देखा जाएगा क्योंकि हम दुनिया को जो देंगे वो बहुत ज्यादा होगा. आने वाले सालों में हम कई यूरोपीय देशों से अपनी तुलना कर सकेंगे.‘’
उन्होंने बताया कि सऊदी अरब हाईड्रोकार्बन के इस्तेमाल और उत्सर्जन को रिसाइकल करेगा. इससे वह ब्लू हाइड्रोजन और ग्रीन हाइड्रोजन का अग्रणी देश बनेगा.
क्या होता है ग्रीन और ब्लूj हाइड्रोजन
रॉकेट ईंधन के रूप में लंबे समय तक इस्तेमाल किया जाने वाला हाइड्रोजन मुख्य रूप से तेल शोधन में और उर्वरकों के लिए अमोनिया का उत्पादन करने के लिए उपयोग किया जाता है.
आज ग्रे हाइड्रोजन ज्यादातर प्राकृतिक गैस या कोयले से निकाला जाता है, इस प्रक्रिया में एक साल में कार्बन डाइऑक्साइड के 830 मिलियन टन का उत्सर्जन होता है.
पानी से इलेक्ट्रोलिसिस के ज़रिए निकाला जाने वाला हाईड्रोजन ‘’ ग्रीन हाइड्रोजन‘’ कहलाता है. इसकी कीमत 1.50 डॉलर प्रतिकिलो तक होती है.
वहीं, प्रकृतिक गैस से निकाला जाने वाला हाइड्रोजन से उत्सर्जन कम होता है और इसे ‘ब्लू हाईड्रोजन’ कहते हैं.