अलीगढ़, 21 अगस्त 2025: आज उत्तर प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के दिग्गज नेता स्वर्गीय कल्याण सिंह की चौथी पुण्यतिथि है। इस अवसर पर अलीगढ़ में ‘हिंदू शौर्य दिवस’ का आयोजन किया गया, जिसमें हजारों लोग उनके अदम्य साहस, सादगी और श्रीराम के प्रति उनकी अटूट भक्ति को याद कर रहे हैं। कल्याण सिंह, जिन्हें लोग प्यार से ‘बाबूजी’ कहते थे, न केवल एक राजनेता थे, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्होंने श्रीराम मंदिर आंदोलन के लिए अपनी मुख्यमंत्री की कुर्सी तक त्याग दी थी। उनकी यह कुर्बानी आज भी देशवासियों के दिलों में गूंजती है।
राम मंदिर के लिए कुर्सी का त्याग
कल्याण सिंह का नाम श्रीराम मंदिर आंदोलन के इतिहास में स्वर्णिम अक्षरों में दर्ज है। 6 दिसंबर 1992 को अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद उन्होंने न केवल इस घटना की पूरी जिम्मेदारी ली, बल्कि अपनी नैतिकता और सिद्धांतों के लिए मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया। उन्होंने स्पष्ट कहा था, “मैंने कारसेवकों पर गोली चलाने का आदेश देने से इनकार कर दिया। श्रीराम के लिए मैं ऐसी सौ कुर्सियां भी त्याग सकता हूं।” यह बयान उनकी दृढ़ता और भगवान राम के प्रति उनकी अटूट निष्ठा का प्रतीक बन गया।
पिछड़े वर्ग के चेहरा, फायरब्रांड हिंदू नेता
1991 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में कल्याण सिंह को भाजपा ने पिछड़े वर्ग के चेहरा बनाकर पेश किया। उनकी छवि न केवल एक कुशल प्रशासक की थी, बल्कि एक फायरब्रांड हिंदू नेता की भी थी, जो अपनी बात बेबाकी से रखते थे। वे दो बार उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे—पहली बार 24 जून 1991 से 6 दिसंबर 1992 तक और दूसरी बार 21 सितंबर 1997 से 12 नवंबर 1999 तक। वे उत्तर प्रदेश में भाजपा के पहले मुख्यमंत्री थे और उनके नेतृत्व में पार्टी ने नई ऊंचाइयां छुईं।
कल्याण सिंह की सादगी और ईमानदारी उनकी पहचान थी। वे हमेशा लोगों को धैर्य और मेहनत का महत्व समझाते थे। उनके पास आने वाला हर व्यक्ति उनके मार्गदर्शन से प्रभावित होता था। उनकी यह खासियत थी कि वे आम लोगों से उतनी ही विनम्रता से मिलते थे, जितनी किसी बड़े नेता से।
सादगी की मिसाल: ‘बाबूजी’ का संभल से खास रिश्ता
कल्याण सिंह को उनके समर्थक और चाहने वाले ‘बाबूजी’ कहकर बुलाते थे। उनकी सादगी की कहानियां आज भी संभल जिले के देवापुर गांव में गूंजती हैं, जहां उनकी ससुराल है। वहां के लोग बताते हैं कि जब भी कल्याण सिंह गांव आते, उनके लिए खास तौर पर उड़द की दाल बनाई जाती, जो उनकी पसंदीदा थी। उनका सरल स्वभाव और जमीन से जुड़ा व्यक्तित्व उन्हें जन-जन का प्रिय बनाता था।
जन्म और जीवन: एक योद्धा का उदय
कल्याण सिंह का जन्म 5 जनवरी 1932 को अलीगढ़ में हुआ था। उनके पिता तेजपाल लोधी और माता सीता देवी थीं। उन्होंने अपने जीवन में न केवल राजनीति में अपनी छाप छोड़ी, बल्कि सामाजिक समरसता और हिंदू एकता के लिए भी काम किया। उनकी एक बेटी और एक बेटा हैं, जो उनके मूल्यों को आगे बढ़ा रहे हैं।
हिंदू शौर्य दिवस: कल्याण सिंह को श्रद्धांजलि
आज अलीगढ़ में आयोजित ‘हिंदू शौर्य दिवस’ में भाजपा कार्यकर्ता और समर्थक कल्याण सिंह के योगदान को याद कर रहे हैं। इस अवसर पर विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया गया है, जिसमें उनके जीवन और विचारों पर चर्चा, उनके द्वारा किए गए कार्यों का स्मरण और श्रीराम मंदिर आंदोलन में उनकी भूमिका पर प्रकाश डाला जा रहा है।
कल्याण सिंह का जीवन एक प्रेरणा है—एक ऐसा नेता, जिसने सत्ता और पद को तुच्छ समझकर अपने सिद्धांतों और आस्था को सर्वोपरि रखा। उनकी पुण्यतिथि पर पूरा देश उन्हें नमन करता है और उनके बलिदान को याद करता है।
“श्रीराम के लिए मैंने कुर्सी छोड़ी, यह मेरे लिए गर्व की बात है,” कल्याण सिंह का यह कथन आज भी हर रामभक्त के दिल में गूंजता है।