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Sunday, June 29, 2025

महिला प्रौद्योगिकी पार्क ग्रामीण महिलाओं के आत्‍मनिर्भर बनने के सपने को साकार करते हैं

उत्‍तराखंड के देहरादून में यूनिवर्सिटी ऑफ पेट्रोलियम एंड एनर्जी स्टडीज़ (यूपीईएस) के कम्‍प्‍यूटर विज्ञान विभाग की प्रोफेसर डॉ. नीलू आहूजा उन प्रयासों को लेकर काफी उत्‍साहित हैं, जो ग्रामीण महिलाओं और समाज में हाशिए पर रह रहे अन्‍य वर्गों के जीवन में बदलाव लाएंगे। उन्‍हें इस बात का भी भरोसा है कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी उत्‍तराखंड की ग्रामीण महिलाओं की आय सृजन में एक महत्‍वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। वह इस राज्‍य से काफी लगाव महसूस करती हैं और उन्‍होंने अपने करियर के 20 साल यहीं गुजारे हैं।

     अपने सपनों को पूरा करने के लिए उन्‍होंने अनेक प्रयास किये हैं और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, भारत सरकार के तहत विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महिला योजना के महिला प्रौद्योगिकी पार्क (डब्‍ल्‍यूटीपी) कार्यक्रम ने उन्‍हें एक अवसर प्रदान किया है। इस योजना के तहत वह देहरादून की 280 ग्रामीण महिलाओं के जीवन को बदलने में सफल हुई हैं और उन्‍होंने इन महिलाओं को विभिन्‍न प्रकार के उत्‍पादों को बनाने तथा बेचने के लिए प्रशिक्षण दिया है। इस परियोजना के तहत जिन 480 महिलाओं को प्रशिक्षित किया गया है, ये भी उन्‍हीं में शामिल हैं। तकनीकी प्रशिक्षण के जरिये महिलाओं को स्‍थानीय रूप से उपलब्‍ध प्राकृतिक संसाधनों जैसे बांस, जूट, खजूर के पत्‍तों को आभूषण उत्‍पादों एवं सजावट के सामान में बदलने का प्रशिक्षण दिया गया और उन्‍होंने बेकार माने जाने वाले सामान से भी अनेक चीजे बनाईं, जिनमें समाचार पत्रों से पेंसिल बनाना भी शामिल है। इसके अलावा औषधीय पौधों की खेती करने का हुनर हासिल किया।

डॉ. आहूजा का कहना है “नियमित आय से उनका आत्‍मविश्‍वास बढ़ा है और अब वे अपनी आय को बढ़ावा देने के अन्‍य रास्‍तों को तलाशना चाहती हैं।” आंध्र प्रदेश में भी एक ऐसे ही डब्‍ल्‍यूटीपी ने लगभग 350 ग्रामीण महिलाओं को प्रशिक्षित किया है और उन्‍हें हर्बल उत्‍पादों, खाद्यान्‍न सामग्री और कॉस्‍मेटिक्‍स जैसे उत्‍पादों के बारे में प्रशिक्षण दिया गया है। श्रीपदमावती महिला विश्‍वविद्यालयम, तिरुपति से सेवानिृत्‍त प्रो. डॉ. ए. ज्‍योति इसी तरह के डब्‍ल्‍यूटीपी का हिस्‍सा थीं और उन्‍होंने इस बात को विस्‍तार से बताया कि कैसे उनकी टीम ने ग्रामीण महिलाओं की उद्यमिता क्षमताओं का पता लगाने के लिए घर-घर सर्वेक्षण किया। इसके अलावा राज्‍य के विभिन्‍न जिलों के स्‍कूल एवं कॉलेजों की लड़कियों से भी पूछा गया, ताकि उनके ज्ञान, कौशल में सुधार कर उद्यमिता के सपने को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी की मदद से साकार किया जा सके।

डॉ. ज्‍योति ने बताया, “हमने 30 विभिन्‍न प्रकार के उत्‍पाद विकसित किये हैं, जिनमें खाद्य सामग्री और सौंदर्य प्रसाधन शामिल हैं। इसके लिए हमने प्रदर्शनी सह‍-प्रशिक्षण कार्यक्रम के जरिये महिलाओं को प्रशिक्षण दिया है और इनमें से अधिकांश विभिन्‍न प्रकार के उत्‍पादों को बनाकर बेच रही हैं, जिससे उनकी आय में बढ़ोतरी हो रही है।”

महिला प्रौद्योगिकी पार्कों को ग्रामीण एवं अर्धनगरीय क्षेत्रों में प्रौद्योगिकी मॉडयूलेशन, अनुकूलन एवं प्रशिक्षण केन्‍द्रों के रूप में स्‍थापित किया गया है और इनमें कृषक समुदाय से जुड़ी महिला समूहों को प्रशिक्षण दिया जाता है। इन प्रशिक्षण केन्‍द्रों में उपयुक्‍त प्रौद्योगिकियों के विकास और उन्‍हें अपनाने, लाभदायक सिद्ध हुई तकनीकों के अंतरण और प्रौद्योगिकी मॉड्ल्‍स के प्रदर्शन पर बल दिया जाता है, ताकि महिला रोजगार के क्षेत्र में सामाजिक उद्यमिता को बढ़ावा दिया जा सके। ये प्रशिक्षण केन्‍द्र एक ऐसा माहौल तैयार करते हैं, जहां विभिन्‍न संगठनों से जुड़े वैज्ञानिक और तकनीकी विशेषज्ञ इन महिला समूहों को उपयुक्‍त तकनीकों की जानकारी प्रदान कर सकें, जिसे वे अपने खेतों अथवा अपने कार्य स्‍थल पर व्‍यवहार में ला सके।

इन महिला समूहों ने जिन नवाचार तकनीकों के बारे में प्रशिक्षण हासिल किया है, उनमें श्रेडर मशीन और विनिर्माण के लिए चुनिंदा ई-कचरे के कुछ अंशों का इस्‍तेमाल, सीएनसी हॉटवायर कटर, वैक्‍यूम की मदद से सुखाए गए फूलों और थ्रीडी चॉकलेट प्रिंटिंग मशीन आदि शामिल हैं। इसके अलावा जल्‍दी नष्‍ट होने वाली कच्‍ची सामग्रियां जैसे फसल, फल, सब्‍जी, दूध, मांस, अंडा और मछली को बाजार की जरूरतों के मुताबिक परिवर्तित करने, खासकर शुद्ध नारियल तेल, प्राकृतिक नारियल सिरका, नारियल के रेशों से बनाये जाने वाले उत्‍पादों, हर्बल उत्‍पादों, फल एवं सब्जियों को संरक्षित करने, मोत्‍जारेला चीज, दूध पेय, मांस एवं मछली स्‍नैक्‍स आदि को संरक्षित करने की जानकारी प्रदान की जा रही है। इस प्रकार प्रौद्योगिकी आधारित मूल्‍य वृद्धि से न केवल इनकी आय में इजाफा हो रहा है, बल्कि इसके जरिये वे ऐसे उत्‍पादों की भंडारित और उपयोग में लाई जाने वाली अवधि को भी बढ़ा सकती हैं।

ऐसे डब्‍ल्‍यूटीपी के जरिये प्रशिक्षण हासिल करने वाली महिलाएं स्‍वयं सहायता समूह बना सकती हैं और आत्‍मनिर्भर बनने की दिशा में अपने सूक्ष्‍म उद्यमों की स्‍थापना भी कर सकती है। ये डब्‍ल्‍यूटीपी ग्रामीण महिलाओं के उत्‍पादों को नाबार्ड, जिले के प्रमुख बैंकों, जिले से संबद्ध अधिकारियों, ग्राम पंचायतों और अन्‍य सरकारी योजनाओं जैसे राज्‍य ग्रामीण आजीविका मिशन के माध्‍यम से बेहतर बाजार उपलब्‍ध कराते हैं।

महिला सशक्तिकरण पर एक संसदीय समिति ने विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी के माध्‍यम से महिला सशक्तिकरण को बढ़ावा देने के डब्‍ल्‍यूटीपी कार्यक्रम के महत्‍व को रेखांकित करते हुए अपनी रिपोर्ट में कहा है, ‘समिति का मानना है कि सरकारी एजेंसियों की सहायता से स्‍थापित महिला प्रौद्योगिकी पार्क ग्रामीण क्षेत्र की महिलाओं के लिए एक वरदान साबित होगा। व्‍यवहार्य परियोजनाओं के प्रदर्शन और सिद्ध प्रौद्योगिकियों के अंतरण से समाज को फायदा होगा और इससे ग्रामीण क्षेत्रों की महिलाओं के उद्यमिता कौशल को बढ़ावा मिलने से उनकी आजीविका और जीवन की गुणवत्‍ता में सुधार होगा।’

पिछले 5 वर्षों में इस योजना से लगभग 10,000 ग्रामीण महिलाएं लाभान्वित हुई हैं। अभी तक 28 डब्‍ल्‍यूटीपी सफलतापूर्वक पूरे किये जा चुके हैं और इनमें से कुछ फिलहाल इस समय स्‍वयं संचालित है। देश के विभिन्‍न हिस्‍सों में 12 पार्कों की स्‍थापना की जा रही है। भविष्‍य में ऐसे ही और अधिक पार्कों की स्‍थापना पर विचार किया जा रहा है तथा ये पार्क भविष्‍य में समुदाय स्‍तर पर आत्‍मनिर्भर भारत बनाने की दिशा में एक अहम भूमिका अदा कर सकते हैं।            

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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