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Monday, June 30, 2025

भारत सरकार ने नगा समूहों के साथ संघर्ष विराम समझौता एक साल के लिए और बढ़ाया

केंद्र (Central Government) ने नागालैंड (Nagaland) के तीन उग्रवादी समूहों के साथ संघर्ष विराम समझौते को सोमवार को एक और साल के लिए बढ़ा दिया, जो अगले वर्ष 2022 अप्रैल तक प्रभावी रहेगा। केंद्रीय गृह मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि भारत सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड/एनके (एनएससीएन/एनके), नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड/रिफॉर्मेशन (एनएससीएन/आर) और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड/के-खांगो (एनएससीएन/के-खांगो) के बीच संघर्ष विराम समझौते जारी रहेंगे।

बयान में आगे कहा गया, ‘‘संघर्ष विराम समझौतों को एक साल के लिए और बढ़ाने का निर्णय किया गया है, जो एनएससीएन/एनके और एनएससीएन/आर के साथ 28 अप्रैल 2021 से 27 अप्रैल 2022 तक तथा एनएससीएन/के-खांगो के साथ 18 अप्रैल 2021 से 17 अप्रैल 2022 तक प्रभावी रहेगा।” इन समझौतों पर सोमवार को हस्ताक्षर किए गए। ये तीनों संगठन एनएससीएन-आईएम और एनएससीएन-के से टूटकर बने थे।

नागालैंड और उग्रवाद का इतिहास

पूर्वोत्तर भारत में नागालैंड को उग्रवाद का केंद्र बिंदु कहा जाता है, जहां 1950 के दशक के बाद से उग्रवाद ने अपने पैर पसार रखे हैं। आजादी के बाद से राज्य में शांति स्थापित होना एक बड़ी चुनौती रही है। वर्तमान सरकार ने इस गतिरोध को तोड़ने के लिए कई सकारात्मक कदम उठाए हैं, जिससे पिछले कुछ वर्षों से राज्य में शांति है। हम आगे इन कदमों की बात करेंगे, लेकिन पहले एक नजर डालते हैं नागालैंड के इतिहास और उग्रवाद की पृष्ठभूमि पर…

  • नागालैंड शुरुआत में असम का अंग था। 1826 में अंग्रेजों ने असम को ब्रिटिश भारतीय साम्राज्य में मिला लिया था, 1881 में नगा हिल्स भी इसका हिस्सा बन गया।

-स्वतंत्रता आंदोलन के समय 1946 में अंगामी जापू फिजो के नेतृत्व में नगा नेशनल काउंसिल (NNC) का गठन किया गया, जिसने 14 अगस्त, 1947 को नागालैंड को ‘एक स्वतंत्र राज्य’ घोषित किया।

-22 मार्च, 1952 को फिजो ने भारत सरकार के समानांतर ‘भूमिगत नगा फेडरल गवर्नमेंट’ (NFG) और ‘नगा फेडरल आर्मी’ (NFA) का गठन किया।

-इसके बाद राज्य में संघर्ष बढ़ता ही जा रहा था तब उग्रवाद से निपटने के लिये भारत सरकार ने सेना के अंतर्गत 1958 में सशस्त्र बल (विशेष अधिकार) अधिनियम (AFSPA) बनाकर वहां लागू किया।

-1963 में उग्रवाद से बेहतर निपटने के लिए भारत सरकार ने असम के नगा हिल्स जिले को अलग कर नागालैंड राज्य की स्थापना की।

-11 नवंबर, 1975 को शिलॉन्ग समझौते पर हस्ताक्षर करने के लिये NNC नेताओं का एक गुट सरकार से मिला, जिसमें हथियार छोड़ने पर सहमति जताई गई।

-थिंजलेंग मुइवा (जो उस समय चीन में थे) की अगुवाई में लगभग 140 सदस्यों के एक गुट ने शिलॉन्ग समझौते को मानने से इनकार कर दिया। इस गुट ने 1980 में नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड (NSCN) का गठन किया। इस गुट का क्षेत्र में अच्छा प्रभुत्व था

-1988 में एक हिंसक टकराव के बाद NSCN का विभाजन हो गया तथा यह इसाक-मुइवा और खपलांग गुटों में बंट गई।

-कालांतर में खपलांग की मौत हो गई और उसका गुट कमजोर पड़ गया तथा अधिकांश विद्रोही समूह इसाक-मुइवा गुट में शामिल हो गए।

इन गुटों में मतभेद इतने गहरे हैं जो आसानी से सुलझ नहीं रहे हैं। इसी का नतीजा है कि कोई भी शांति समझौता बहुत लंबा नहीं चलता है।
नागालैंड में उग्रवाद के इतिहास जितना ही पुराना शांति समझौतों का इतिहास रहा है। अनेक बार शांति समझौते हुए और टूटे। वर्तमान सरकार इस मामले में काबिले-तारीफ है। पहले 2015 में ‘फ्रेमवर्क एग्रीमेंट’ समझौते को सफलतापूर्वक करना फिर साल दर साल इसे बिना किसी संघर्ष के निरंतर आगे बढ़ाना।

क्या है फ्रेमवर्क एग्रीमेंट ?

फ्रेमवर्क एग्रीमेंट एक ऐतिहासिक समझौता है जो 2015 में भारत सरकार और नेशनल सोशलिस्ट काउंसिल ऑफ नागालैंड के बीच सम्पन्न हुआ था। इस समझौते का महत्व इसी से मालूम होता है कि यह समझौता सरकार और नगा समूहों के बीच 18 साल तक चली 80 बैठकों के बाद हो पाया था। इस समझौते के तहत सरकार ने नागालैंड के विशेष इतिहास, संस्कृति, विचार और भावनाओं को मान्यता दी, वहीं दूसरी ओर नगा समूहों ने भारतीय संघ और राजनीतिक व्यवस्था के प्रति जिम्मेदारी व्यक्त की।

इससे पहले 1997 में पहली बड़ी सफलता मिलती थी जब एनएससीएन-आईएम ने केंद्र सरकार के साथ संघर्षविराम समझौता किया था। हालांकि, वर्तमान में एनएससीएन-आईएम के साथ बातचीत नहीं हो रही है क्योंकि संगठन नागालैंड के लिए एक अलग ध्वज और संविधान की मांग कर रहा है, जिसे केंद्र सरकार स्पष्ट रूप से खारिज कर चुकी है।

किसी भी जगह विकास तभी संभव है जब वहां शांति हो। अब सम्पूर्ण पूर्वोत्तर सहित नागालैंड भी तीव्र गति से विकास की ओर अग्रसर है।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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