नई दिल्ली, 16 मई 2025, शुक्रवार। पाकिस्तानी मूल के इमाम जुल्फिकार खान की कहानी किसी मसालेदार फिल्म से कम नहीं। तीस साल तक इटली में मौज-मस्ती, शानदार मौसम, लज़ीज़ खाना, और यूरोप की चकाचौंध—जुल्फिकार भाई ने सब कुछ भोगा। लेकिन कहते हैं न, ज्यादा ऐश इंसान को बिगाड़ देती है। यही हुआ इमाम साहब के साथ।
शुरुआत में तो सब ठीक था। जुल्फिकार अपनी मस्जिद में इमामत करते, लोग उनकी तकरीरें सुनते। लेकिन धीरे-धीरे उनके दिमाग में चाचा चौधरी वाला ओवरकॉन्फिडेंस जागा। उन्हें लगा, इटली का संविधान उनके लिए ढाल है, और इटली के लोग इतने भोले हैं कि उनकी जिहादी बयानबाजी को कोई पकड़ेगा नहीं। बस, यहीं से शुरू हुआ उनका “गाजी” बनने का सपना।
जुल्फिकार ने अपनी तकरीरों में आग उगलनी शुरू की। काफिरों के खिलाफ जंग का ऐलान करते “मासूम दीनुओं” को ललकारा कि इटली की “काफिर सरकार” को टैक्स देना हराम है। उनके खयाल में ये सब सुनकर लोग तालियां बजाएंगे और वे जिहाद के सुपरस्टार बन जाएंगे। लेकिन इटली की सरकार उतनी “बेवकूफ” नहीं थी, जितना इमाम साहब ने सोचा था।
जब जुल्फिकार की बयानबाजी हद से गुजर गई, इटली सरकार ने चिमटे की तरह उन्हें पकड़ा और सीधे पाकिस्तान डिपोर्ट कर दिया। जो इमाम कभी इटली की गलियों में ऐश फरमाते थे, वे अब पाकिस्तान में मुर्गा छीलते नजर आए। सुनते हैं, अब वे दिन-रात दुआ मांगते हैं कि शायद कोई भारतीय एयरस्ट्राइक उन्हें 72 हूरों से मिलवा दे।
मगर सच तो ये है—जुल्फिकार की कहानी एक सबक है। ऐश की जिंदगी को जिहादी जोश में तबाह करने का अंजाम यही होता है: इटली की चमक से पाकिस्तान की धूल तक।