वाराणसी, 5 अक्टूबर। शहर बनारस गंगा-जमुनी तहजीब की अनूठी मिसाल है। यहां बनारसी साड़ी के ताने-बाने की तरह हिंदू और मुसलमान आपस में बुने हुए हैं। आज के दौर में जब हिंदू-मुस्लिम भाईचारे के सम्बंध कई बार तार-तार होते नजर आते हैं, ऐसे में सभी धर्म की संस्कृति को काशी शहर ने बखूबी संजोया है। यहां हर पर्व लोग पूरे उत्साह के साथ मनाते हैं। इसकी बानगी शनिवार को लाटभैरव फर्श पर दिखाई पड़ी। जहां एक तरफ मगरिब की नमाज के लिए हो रही अजान में अल्लाह हु अकबर की गूंज रही तो दूसरी ओर ढोलक की थाप और मंजीरे की खनक के बीच मानस का दोहा मंगल भवन अमंगल हारी… मुखर हो रहा था। नमाजी अपने क्रियाकलाप में व्यस्त तो रामलीला के पात्र अपनी भूमिका निभाने में तल्लीन रहे।
यह दृश्य वर्ष 1543 से अनवरत होती चली आ रही श्री आदि रामलीला लाटभैरव वरुणा-संगम काशी के जयंत नेत्रभंग प्रसंग का था। तुलसी के दौर से चली आ रही बनारस की गंगाजमुनी तहजीब की मिसाल इस लीला का संपादन लाटभैरव मंदिर-मस्जिद के बीच के विशाल फर्श पर हुआ। मगरिब की नमाज और जयंत नेत्रभंग लीला का मंचन दोनों साथ-साथ हुआ। चबूतरे के पूर्वी हिस्से में श्रीराम चरित मानस का दोहा ‘सीता चरन चोंच हति भागा, मूढ़ मंदमति कारन कागा मुखर हो रहा था, तो चबूतरे के पश्चिमी हिस्से में पांचों वक्त के नमाजी अल्लाह पाक को याद कर रहे थे।
जयंत नेत्रभंग लीला मंचन
श्रीआदि लाट भैरव रामलीला के व्यास दयाशंकर त्रिपाठी जयंत को उसके संवाद बता रहे थे, तो उधर इमाम हाफिज शाबान अली नमाज का क्रम आगे बढ़ा रहे थे। नमाज से पहले शुरू हुई रामलीला नमाज के बाद भी गतिमान रही। नमाज से पहले और बाद में मुस्लिम बंधुओं ने भी लीला दर्शक के रूप में उपस्थिति दर्ज कराई। गोस्वामी तुलसी दास और उनके परम मित्र मेघा भगत द्वारा शुरू की गई यह लीला के जयंत नेत्रभंग का प्रसंग इसी स्थान पर मस्जिद निर्माण के पहले से होती आ रही है।
इंद्रपुत्र को गंवानी पड़ी एक आंख
लाटभैरव की रामलीला में शनिवार को प्रसंग आरंभ में देवराज इंद्र का पुत्र जयंत कौआ बन कर माता सीता के चरण में चोंच मारकर भागा। यह देख श्रीराम ने सींक के वाण का संधान किया। बचने को जयंत सभी देवों के पास गया लेकिन रामद्रोही होने से किसी ने रक्षा नहीं की। अंतत: नारद मुनि की सलाह पर वह श्रीराम के चरणों में जाकर गिर पड़ा। प्रभु ने बांण के प्रभाव को कम किया और जयंत की एक आंख फोड़ दी। अनुसुइया मिलन, मतंग ऋषि के आश्रम प्रवेश, गिद्धराज से भेंट करते हुए प्रभु पंचवटी पहुंचे। अंत में रामलीला समिति के व्यास दयाशंकर त्रिपाठी और प्रधानमंत्री कन्हैया लाल यादव एडवोकेट ने आरती उतारी।