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Wednesday, March 12, 2025

नोएडा में 108 वेदियों में हुआ राष्ट्र कल्याण के लिए यज्ञ

नोएडा, 22 नवंबर 2024 । नारी शक्ति राष्ट्र वंदन यज्ञ की आहुति के साथ प्रेरणा विमर्श-2024 का श्रीगणेश हो चुका है। सेक्टर 12 स्थित सरस्वती शिशु मंदिर के प्रांगण में 1000 से अधिक नारी शक्ति ने 108 कुंडीय यज्ञ में आहुतियां दी। यज्ञ का उद्देश्य राष्ट्र वंदन, नारी शक्ति, नारी कर्तव्य और नारी सशक्तीकरण को बढ़ावा देना था। इस अवसर पर सामाजिक कार्यकर्ता रेशू भाटिया, महिला आयोग उत्तर प्रदेश की उपाध्यक्ष अर्पणा यादव, मुख्य अतिथि डॉ. प्रवीण विद्यालंकार और प्रेरणा विमर्श 2024 की सचिव मोनिका चौहान और प्रेरणा शोध संस्थान न्यास की अध्यक्ष प्रीति दादू ने नारी शक्ति को राष्ट्र वीरांगना के रूप में संबोधित किया। इस अवसर पर सभी अतिथियों द्वारा पंच परिवर्तन प्रदर्शनी का शुभारंभ भी किया। इस अवसर पर लोकमाता अहिल्याबाई होलकर पर केन्द्रित प्रेरणा विचार पत्रिका का लोकार्पण भी हुआ।
कार्यक्रम की मुख्य अतिथि डॉ. प्रवीण विद्यालंकार ने सामाजिक समस्याओं की जड़ पर बात करते हुए कहा कि आज की पीढ़ी में जो गलत आचरण आ रहे हैं, उनका जिम्मेदार कहीं न कहीं बॉलीवुड है। उन्होंने वैदिक संस्कृति का संदेश देते हुए कहा कि स्त्री ही ब्रह्म है। उन्होंने स्वामी विवेकानंद और महर्षि दयानंद सरस्वती का उदाहरण देते हुए कहा कि वे सदैव स्त्री को धारिणी और अदिति मानते थे। आज भी हमारे महापुरुषों के विचारों से बालक-बालिकाओं को सही मार्ग दिखाया जा सकता है।
मुख्य वक्ता अपर्णा यादव जी ने महान विभूति लोकमाता अहिल्याबाई होलकर जी का भावपूर्ण स्मरण किया। उन्होंने नारी शक्ति राष्ट्र वंदन यज्ञ के संदर्भ में स्व का अर्थ समझाते हुए कहा कि आज इस यज्ञ कुण्ड में हमें अपने अभिमान और गलत रीतियों की आहूति देनी चाहिए। भारत का इतिहास नारी स्वाभिमान से भरा हुआ है, इसके लिए उन्होंने लोकमाता अहिल्याबाई होलकर के जीवन का उदाहरण दिया।
कार्यक्रम की अध्यक्ष रेशु भाटिया ने माता अहिल्याबाई की चर्चा करते हुए नारी सशक्तिकरण और भारतीय नारी के गौरवशाली इतिहास का स्मरण कराया। उन्होंने देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी के राष्ट्रीय स्वाभिमान हित किए जा रहे अथक प्रयासों की सराहना की। नारी राष्ट्र वंदन यज्ञ में कुल 108 वेदियां बनाई गई थीं। प्रत्येक वेदी पर आठ से अधिक महिलाओं ने यज्ञ किया। यज्ञ का प्रारंभ मुख्य अतिथि डॉ. प्रवीन विद्यालंकार जी ने किया।

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