लखनऊ, 5 अगस्त 2025: उत्तर प्रदेश की सियासत में एक बार फिर हलचल मच गई है, और इस बार वजह है एक ऐसा सर्कुलर, जिसने नौकरशाही से लेकर सियासी गलियारों तक तूफान खड़ा कर दिया। बात शुरू हुई पंचायती राज विभाग के संयुक्त निदेशक एसएन सिंह के उस ‘जातिगत’ पत्र से, जिसमें यूपी के 57 हजार से ज्यादा गांवों में ‘यादव और मुस्लिम’ समुदायों के कथित अवैध कब्जों के खिलाफ अभियान चलाने का फरमान जारी किया गया। लेकिन ये ‘महान’ विचार ज्यादा देर नहीं टिका, क्योंकि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की भृकुटी तन गई और नतीजा? संयुक्त निदेशक साहब की कुर्सी हिल गई, वो भी तत्काल निलंबन के साथ!
‘जाति-धर्म’ का जहर फैलाने की कोशिश?
मामला तब गर्माया जब बलिया में जिला पंचायत राज अधिकारी ने इस सर्कुलर को हाथों-हाथ लेते हुए सभी बीडीओ को ‘यादव-मुस्लिम’ कब्जों के खिलाफ ताबड़तोड़ कार्रवाई का आदेश दे डाला। पत्र सामने आते ही हंगामा मच गया। सवाल उठने लगे— ये कैसा अभियान, जो सिर्फ दो समुदायों को निशाना बनाए? सोशल मीडिया से लेकर सियासी मंचों तक बवाल शुरू हो गया। आखिरकार बात शासन तक पहुंची, और फिर योगी जी का गुस्सा सातवें आसमान पर!
योगी का ‘सख्त संदेश’: निष्पक्षता या निलंबन!
मुख्यमंत्री योगी ने इस पूरे प्रकरण को शासन की नीतियों और सामाजिक समरसता के खिलाफ करार देते हुए संयुक्त निदेशक को तुरंत निलंबित कर दिया। उन्होंने साफ-साफ लफ्जों में कहा, “अवैध कब्जों के खिलाफ कार्रवाई हो, लेकिन जाति-धर्म के आधार पर? ये बर्दाश्त नहीं!” योगी ने अधिकारियों को दो-टूक चेतावनी दी कि कार्रवाई पूरी तरह निष्पक्ष और कानून के दायरे में हो, वरना कुर्सी की गर्मी जल्दी ठंडी हो जाएगी।
उन्होंने जोर देकर कहा कि सरकार संविधान और सामाजिक न्याय के प्रति प्रतिबद्ध है। “हमारी नीतियां किसी समुदाय या वर्ग के खिलाफ भेदभाव की इजाजत नहीं देतीं। समाज को बांटने की ऐसी हरकतें हमें मंजूर नहीं!”— योगी का ये बयान न सिर्फ नौकरशाही के लिए, बल्कि उन तमाम लोगों के लिए भी सबक है, जो सियासत में ‘जाति कार्ड’ खेलने की फिराक में रहते हैं।
क्या था वो ‘विवादित’ सर्कुलर?
पंचायती राज विभाग के संयुक्त निदेशक ने बाकायदा पत्र जारी कर 57,691 ग्राम पंचायतों में ‘यादव और मुस्लिम’ समुदायों द्वारा कथित तौर पर ग्राम सभा की जमीनों, तालाबों, खलिहानों, खेल मैदानों और श्मशान भूमि पर अवैध कब्जों के खिलाफ अभियान चलाने का आदेश दिया था। पत्र में जिलाधिकारियों, मुख्य विकास अधिकारियों और पंचायती राज अधिकारियों को ‘सक्षम दिशा-निर्देश’ जारी करने की हिदायत भी थी। लेकिन ये ‘सक्षम’ आदेश इतना ‘असक्षम’ निकला कि निदेशक महोदय को खुद इसकी कीमत चुकानी पड़ी।
नौकरशाही में हड़कंप, अब क्या?
इस पूरे प्रकरण ने नौकरशाही को कटघरे में ला खड़ा किया है। सवाल ये है कि आखिर एक संयुक्त निदेशक स्तर का अधिकारी इतना ‘बोल्ड’ आदेश कैसे जारी कर सकता है? क्या ये सिर्फ एक ‘गलती’ थी, या इसके पीछे कोई बड़ी साजिश? सियासी गलियारों में चर्चाएं गर्म हैं, और विपक्ष को भी बैठे-बिठाए एक मुद्दा मिल गया है।
फिलहाल, योगी सरकार ने साफ कर दिया है कि उनकी ‘बुलडोजर नीति’ में जाति-धर्म का कोई स्थान नहीं। अब देखना ये है कि इस निलंबन के बाद नौकरशाही कितनी सतर्क होती है, या फिर ये सर्कुलर सिर्फ एक ‘ट्रेलर’ था, जिसका ‘पिक्चर’ अभी बाकी है!