बिना गोबर के अधूरी है गोवर्धन पूजा, इस परंपरा के पीछे की कहानी!
वाराणसी, 1 नवंबर 2024, शुक्रवार। गोवर्धन पूजा में गोबर का उपयोग एक विशेष महत्व रखता है, क्योंकि यह पवित्र माना जाता है और घरों को साफ करने, पूजा करने और देवताओं को अर्पित करने में उपयोग किया जाता है। भगवान कृष्ण ने जब गोवर्धन पर्वत को उठाया था, तब उन्होंने इसे गोबर के रूप में भी देखा था, इसीलिए गोबर का उपयोग गोवर्धन पूजा में विशेष महत्व रखता है।
गोबर को प्रकृति का एक महत्वपूर्ण अंग माना जाता है, और गोवर्धन पर्वत भी प्रकृति का ही एक रूप है। इसलिए गोबर का उपयोग करके प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है। गोबर का उपयोग खेतों में खाद के रूप में किया जाता है, और गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से बने गोवर्धन पर्वत का निर्माण करके कृषि के महत्व को दर्शाया जाता है।
यह परंपरा भगवान कृष्ण के समय से चली आ रही है, जब उन्होंने गोवर्धन पर्वत को उठाया था और गोबर को पवित्र माना था। तब से ही गोवर्धन पूजा में गोबर का उपयोग किया जाता है, और यह परंपरा आज भी जारी है। गोवर्धन पूजा बिना गोबर के अधूरी मानी जाती है, क्योंकि यह पूजा का एक महत्वपूर्ण अंग है। गोबर के उपयोग से पूजा की शुद्धता और पवित्रता बढ़ जाती है, और यह प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक तरीका है।
गोवर्धन पूजा के महत्वपूर्ण बिंदु:
गोबर से बने गोवर्धन पर्वत की पूजा आवश्यक है।
गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत की आकृति बनाई जाती है।
भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति गोवर्धन पर्वत के पास रखी जाती है।
गोबर से बना पर्वत घर की समस्याओं का समाधान करता है और सुख-समृद्धि का प्रतीक होता है।
भगवान श्रीकृष्ण को अन्नकूट और छप्पन भोग लगाए जाते हैं।
गोवर्धन पर्वत की सात बार परिक्रमा की जाती है।
परिक्रमा करते समय खील और बताशे अर्पित किए जाते हैं।
गोवर्धन पूजा घर परिवार, रिश्तेदार, या पड़ोसियों के साथ करनी चाहिए।
भगवान श्रीकृष्ण और गोवर्धन पर्वत की पूजा की जाती है।
कैसे शुरू हुई परंपरा
गोवर्धन पूजा की परंपरा की शुरुआत भगवान कृष्ण से जुड़ी एक पौराणिक कथा से हुई है, जिसमें भगवान कृष्ण ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर ब्रजवासियों को भगवान इंद्र के क्रोध से बचाया था। इस घटना के स्मरण में ही गोवर्धन पूजा की जाती है, जिसमें गोबर से बने गोवर्धन पर्वत का निर्माण इस घटना का प्रतीक है। इस परंपरा में गोबर का विशेष महत्व है, जो प्रकृति की शक्ति और भगवान कृष्ण की शक्ति का प्रतीक है। गोवर्धन पूजा के दिन गोबर से एक छोटा सा पर्वत बनाया जाता है और उसे भगवान कृष्ण के रूप में पूजा जाता है। गोबर के दीपक जलाकर घरों को रोशन किया जाता है, और कुछ लोग अपने शरीर पर गोबर का लेप लगाते हैं। गोवर्धन पूजा में गोबर से विभिन्न प्रकार की कलाकृतियां बनाई जाती हैं और उनकी पूजा की जाती है। यह परंपरा भगवान कृष्ण की शक्ति और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त करने का एक महत्वपूर्ण अवसर प्रदान करती है।
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