नई दिल्ली, 14 दिसंबर 2024, शनिवार। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के साथ ही प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट 1991 फिर से चर्चा में आ गया है। इसका कारण यह है कि देश की अनेक मस्जिदों के मंदिर होने के दावे सर्वोच्च अदालत में सुने जा रहे हैं। कोर्ट ने मुख्य न्यायाधीश सहित तीन न्यायाधीशों की पीठ गठित करते हुए सभी याचिकाओं को एक साथ सुनने का फैसला किया है।
इस एक्ट के अनुसार, अयोध्या को छोड़कर अन्य किसी भी धर्मस्थल के लिए 15 अगस्त 1947 तक की स्थिति को अंतिम माना जाएगा। यह एक्ट 1991 में रामजन्म भूमि आंदोलन को देखते हुए कांग्रेस सरकार ने बनाया था। इसका मकसद यह था कि काशी मथुरा की मस्जिदों को हासिल करने की आवाज न उठे।
लेकिन अब यह एक्ट फिर से चर्चा में आ गया है क्योंकि देश की अनेक मस्जिदों के मंदिर होने के दावे सर्वोच्च अदालत में सुने जा रहे हैं। हिन्दू पक्ष इस संदर्भ में बहुत पुख्ता दस्तावेज़ जुटा चुका है। इसमें कोई शक मुस्लिम समाज के विद्वानों को भी नहीं होना चाहिए कि आक्रांताओं ने कईं सदियों तक हिन्दुस्तान को लूटा, मंदिर तोड़े और उन्हीं के मलवे पर मस्जिदें बनाईं।
विश्व हिन्दू परिषद तो 3000 मस्जिदों पर हिन्दू मन्दिरों को तोड़कर बनाने का दावा करती आ रही है। साथ ही यह भी कहती आ रही है कि यदि मुस्लिम समाज तीन मस्जिदों को हिन्दू मस्जिदों को हिन्दू समाज को सौंप दे तो बाकी दावे हमेशा हमेशा के लिए दफ्न हो जाएंगे। साथ ही हिन्दू मुस्लिमों के बीच जबर्दस्त सौहार्द कायम हो जाएगा।
अब यह मामला न्यायपालिका के रास्ते हो रहा है, जो कि एक अच्छी बात है। न्यायालयों पर हिन्दू मुस्लिम सभी की पूर्ण आस्था है। चूंकि न्यायाधीश उपलब्ध प्रामाणिक दस्तावेजों के आधार पर फैसला देते हैं, अतः मंदिर मस्जिद के मामले में भी फैसला मान्य होना चाहिए।