नई दिल्ली, 21 दिसंबर 2024, शनिवार। संसद का इस बार का शीतकालीन सत्र इतिहास में दर्ज होने लायक है। फिलहाल संसद का शीतकालीन सत्र शुक्रवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। यह सत्र हाल के वर्षों में सबसे विवादित रहा, जिसमें हंगामे, विरोध-प्रदर्शन और संसदीय कार्य की कमी देखने को मिली। इस सत्र में वन नेशन वन इलेक्शन विधेयक पेश किया गया और संविधान के 75 वर्षों पर दो दिवसीय चर्चा हुई। लोकसभा ने अपने निर्धारित समय का सिर्फ 57% और राज्यसभा ने 43% काम किया।
सत्र की समाप्ति पर लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने परंपरागत समापन भाषण नहीं दिया, बल्कि सत्र के अंत में सख्त चेतावनी जारी की। उन्होंने कहा कि संसद के कामकाज में बाधा डालने वाले सदस्यों के खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। इस सत्र में कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन संसदीय कार्य की कमी के कारण कई महत्वपूर्ण बिल पारित नहीं हो पाए। यह सत्र संसद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज होगा, लेकिन यह भी दिखाता है कि संसद के कामकाज में सुधार की आवश्यकता है।
संसद का शीतकालीन सत्र: विवादों का दौर
लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला ने विरोध प्रदर्शन कर रहे सांसदों को चेतावनी दी है कि संसद परिसर में किसी भी तरह का प्रदर्शन या विरोध न करें। अगर ऐसा हुआ तो सदन गंभीर कार्रवाई करेगा। यह बयान उन्होंने विपक्षी सांसदों के नारेबाजी के बीच दिया। इस सत्र के अंत में लोकसभा को मात्र तीन मिनट में स्थगित कर दिया गया। विपक्षी नेताओं ने अध्यक्ष द्वारा आयोजित चाय पार्टी का बहिष्कार किया, जिससे इस बार कोई परंपरागत फोटो भी नहीं जारी हुई।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, रक्षामंत्री राजनाथ सिंह, बीजेपी अध्यक्ष जेपी नड्डा और अन्य एनडीए नेता बिरला के कक्ष में सत्र समाप्ति के बाद मौजूद रहे। इस सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहरे मतभेद देखने को मिले। 18वीं लोकसभा के पहले छह महीनों में केवल एक विधेयक ‘भारतीय वायुयान विधेयक’ पारित किया गया, जो पिछले छह कार्यकालों में सबसे कम विधायी उत्पादन रहा। प्रश्नकाल भी बुरी तरह बाधित हुआ। एक रिपोर्ट के मुताबिक राज्यसभा में 19 में से 15 दिन प्रश्नकाल नहीं हुआ, जबकि लोकसभा में यह केवल 8 दिनों में 10 मिनट से अधिक चल पाया। निजी सदस्यों के कामकाज में भी गिरावट देखी गई, जहां राज्यसभा में केवल एक प्रस्ताव पर चर्चा हुई और लोकसभा में कोई चर्चा नहीं हुई।
संसद में तू-तू, मैं-मैं: सत्र के समापन पर सभापति का आह्वान और विपक्ष का विरोध!
राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ ने सत्र के समापन पर एक महत्वपूर्ण आह्वान किया। उन्होंने सभी दलों से राजनीति से ऊपर उठकर संसद की गरिमा बनाए रखने का आग्रह किया। लेकिन विपक्षी नेताओं ने उनकी इस टिप्पणी पर पक्षपात का आरोप लगाया। इस सत्र के दौरान गुरुवार को सांसदों के बीच धक्का-मुक्की तक हो गई। इस घटना में दो बीजेपी सांसदों को अस्पताल में भर्ती कराना पड़ा और कांग्रेस नेता राहुल गांधी के खिलाफ एफआईआर दर्ज हुई। यह घटना संसद के इतिहास में एक दुर्भाग्यपूर्ण अध्याय के रूप में दर्ज होगी।
इस सत्र के दौरान संसद के कामकाज में भी कई बाधाएं आईं। विपक्षी दलों ने सरकार की नीतियों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया और कई महत्वपूर्ण मुद्दों पर चर्चा नहीं हो पाई। यह सत्र संसद के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ के रूप में दर्ज होगा, लेकिन यह भी दिखाता है कि संसद के कामकाज में सुधार की आवश्यकता है।
संसद का शीतकालीन सत्र: संविधान की यात्रा पर चर्चा, लेकिन हंगामों ने बाधित किया कामकाज!
इस सत्र में एक सकारात्मक पहलू यह रहा कि संविधान के 75 वर्षों पर दो दिवसीय चर्चा हुई। यह चर्चा संविधान की गौरवशाली यात्रा पर प्रकाश डालने में सफल रही। इस चर्चा में संविधान के महत्व और इसके प्रावधानों पर विस्तार से चर्चा हुई। संसद के सदस्यों ने संविधान की उद्देशिका और मूल्यों पर जोर दिया और इसके महत्व को रेखांकित किया।
लेकिन इस सत्र के दौरान कई चुनौतियाँ भी आईं। हंगामों और विरोध प्रदर्शनों के कारण संसदीय कार्यों में भारी बाधा उत्पन्न हुई। कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर चर्चा नहीं हो पाई और संसद की कार्यवाही बार-बार स्थगित हुई। इसके अलावा, संसद के सदस्यों के बीच धक्का-मुक्की और विवाद भी हुए, जो संसद की गरिमा के लिए चिंताजनक है।
कुल मिलाकर, यह सत्र प्रोडक्शन या काम की दृष्टि से असफल रहा, लेकिन संविधान के 75 वर्षों पर चर्चा एक सकारात्मक पहलू था। संसद को अपनी कार्यवाही में सुधार लाने और हंगामों को कम करने के लिए कदम उठाने होंगे ताकि वह अपने कार्यों को प्रभावी ढंग से पूरा कर सके।