मुंबई, 1 दिसंबर 2024, रविवार। महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन न लगने के पीछे एक तकनीकी कारण है। राज्य के चुनाव अधिकारियों ने राज्यपाल को नए चुने गए विधायकों के नाम के साथ राजपत्र की प्रतियां सौंप दी हैं। इसके चलते 15वीं विधानसभा अस्तित्व में आ चुकी है।
जन प्रतिनिधित्व कानून की धारा 73 के मुताबिक चुने गए सदस्यों के नामों की अधिसूचना राज्यपाल के सामने प्रस्तुत करने के बाद विधानसभा का विधिवत गठन हो जाता है। इस प्रक्रिया के पूरा होने के बाद राष्ट्रपति शासन लगाने का सवाल ही नहीं उठता।
हालांकि, यह सवाल भी उठता है कि क्या यह तकनीकी स्थिति का इस्तेमाल सिर्फ इसलिए किया जा रहा है कि सरकार भाजपा को बनानी है? अगर कांग्रेस और उसके गठबंधन को बहुमत मिला होता और तीन दिन में सरकार नहीं बना पाते तो क्या राष्ट्रपति शासन लगा दिया जाता?
महाराष्ट्र के इतिहास पर नजर डालें तो पता चलता है कि 2019 में भाजपा और शिव सेना का गठबंधन जीत गया था, लेकिन उद्धव ठाकरे ढाई ढाई साल सत्ता में साझेदारी के लिए अड़ गए थे। इसके बाद विधानसभा का कार्यकाल खत्म होते ही तत्कालीन राज्यपाल ने राष्ट्रपति शासन लगाने की सिफारिश कर दी थी, जिसे केंद्र ने स्वीकार कर लिया था।
इसी तरह, अक्टूबर 2014 में विधानसभा चुनाव के बाद एनसीपी ने गठबंधन सरकार से समर्थन वापस ले लिया था। इसके बाद तत्कालीन मुख्यमंत्री पृथ्वीराज चव्हाण को कार्यवाहक मुख्यमंत्री नहीं रहने दिया गया था, बल्कि राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था।
इन उदाहरणों से यह स्पष्ट होता है कि महाराष्ट्र में राष्ट्रपति शासन लगाने के नियम और मानदंड स्पष्ट हैं। लेकिन इस बार क्यों नहीं लगाया गया राष्ट्रपति शासन? क्या यह इसलिए है कि सरकार भाजपा को बनानी है? यह सवाल अभी भी बना हुआ है।