नई दिल्ली, 17 जून 2025, मंगलवार। राज्यसभा सांसद और मशहूर वकील कपिल सिब्बल ने इलाहाबाद हाई कोर्ट के जज यशवंत वर्मा के खिलाफ महाभियोग की प्रक्रिया पर सवाल उठाते हुए केंद्र सरकार और राज्यसभा सभापति को कठघरे में खड़ा किया है। सिब्बल, जो पहले भी दो हाई कोर्ट जजों के महाभियोग मामलों में अपनी पैरवी से सुर्खियां बटोर चुके हैं, ने इस बार जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ रुकी कार्रवाई को लेकर सरकार पर पक्षपात का गंभीर आरोप लगाया।
“वर्मा के खिलाफ आरोप बेबुनियाद, पहले यादव पर कार्रवाई क्यों नहीं?”
निजी चैनल को दिए एक सनसनीखेज इंटरव्यू में सिब्बल ने कहा, “जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पूरी तरह आधारहीन है। कुछ वीडियो क्लिप और जली हुई नकदी की अफवाहों के सहारे आप एक जज को दोषी कैसे ठहरा सकते हैं? बिना ठोस जांच के यह सब हवा में तीर मारने जैसा है।” उन्होंने तंज कसते हुए पूछा कि जब जस्टिस शेखर यादव का सांप्रदायिक भाषण सबके सामने है, जिसे उन्होंने खुद स्वीकार किया, तो उनके खिलाफ 55 सांसदों के हस्ताक्षरित महाभियोग प्रस्ताव पर छह महीने से चुप्पी क्यों?
सिब्बल ने सभापति पर सवाल दागा, “आखिर यादव के मामले में हस्ताक्षरों की जांच में इतना वक्त क्यों लग रहा है? क्या सरकार इस जज को बचाने की कोशिश कर रही है?” उन्होंने यह भी खुलासा किया कि सभापति ने मुख्य न्यायाधीश को यादव के खिलाफ इन-हाउस जांच रोकने के लिए पत्र लिखा, लेकिन वर्मा के मामले में ऐसा कोई कदम नहीं उठाया गया। सिब्बल ने जोर देकर कहा, “पहले यादव के खिलाफ कार्रवाई हो, फिर वर्मा के मामले पर बात हो।”
“जली नकदी का रहस्य: सबूत कहां हैं?”
सिब्बल ने जस्टिस वर्मा के खिलाफ लगे आरोपों को “अभूतपूर्व और तथ्यहीन” करार दिया। उन्होंने कहा, “पिछले महाभियोग मामलों में, जैसे जस्टिस रामास्वामी या सौमित्र सेन के खिलाफ, सबूत साफ थे। लेकिन वर्मा के मामले में क्या है? बस एक वीडियो, जिसमें उनके आवास के आउटहाउस में जली हुई नकदी दिख रही है। न यह साफ है कि नकदी कितनी थी, न यह कि वह वहां आई कैसे।”
उन्होंने मीडिया पर भी निशाना साधा, जो बिना सबूत के “करोड़ों की नकदी” की बातें फैला रहा है। सिब्बल ने बताया कि यह नकदी जज के आवास के बाहर एक असुरक्षित कमरे में मिली, जिसे न तो दिल्ली पुलिस ने सील किया, न कोई एफआईआर दर्ज की, और न ही कोई नोट जब्त किया। उन्होंने सवाल उठाया, “जब पुलिस और दमकल विभाग को जली नकदी दिखी, तो उन्होंने उसे जब्त क्यों नहीं किया? एक जले नोट की सीरियल संख्या से भी उसकी उत्पत्ति का पता लग सकता था।”
“आग, धमाका, और अनसुलझा रहस्य”
सिब्बल ने घटना का जिक्र करते हुए बताया कि 14 मार्च की रात 11:30 बजे जस्टिस वर्मा के आउटहाउस में आग लगी। उनकी बेटी ने एक धमाके की आवाज सुनी और कर्मचारियों के साथ वहां पहुंची, लेकिन आग की तीव्रता के कारण पीछे हटना पड़ा। दमकल विभाग और दिल्ली पुलिस मौके पर पहुंचे, लेकिन उन्होंने जली नकदी के बारे में परिवार को कुछ नहीं बताया। सिब्बल ने हैरानी जताई कि पुलिस ने न तो क्षेत्र को सील किया, न ही कोई कार्रवाई की।
जस्टिस वर्मा को 17 मार्च को दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश ने वीडियो दिखाकर नकदी की जानकारी दी। इसके तीन दिन बाद, 20 मार्च को उनका तबादला कर दिया गया, जिसका उन्होंने कोई विरोध नहीं किया। सिब्बल ने इसे “अनुचित” बताते हुए कहा कि समिति ने इसे उनकी गलती माना, जो सरासर गलत है।
“इन-हाउस जांच से महाभियोग नहीं चल सकता”
सिब्बल ने साफ किया कि सुप्रीम कोर्ट की इन-हाउस जांच कोई कानूनी जांच नहीं है, और इसके आधार पर महाभियोग नहीं लाया जा सकता। उन्होंने कहा, “महाभियोग तब लाया जाता है जब सांसदों को जज की गतिविधियों पर पूरा यकीन हो, जैसा कि जस्टिस दीपक मिश्रा के मामले में हुआ था।” उन्होंने यह भी सवाल उठाया कि क्या तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना को इन-हाउस रिपोर्ट राष्ट्रपति को भेजनी चाहिए थी। “यह संसद का मामला है, न्यायपालिका का नहीं,” सिब्बल ने दो टूक कहा।
“न्याय का तराजू डगमगा रहा है”
कपिल सिब्बल ने इस पूरे प्रकरण को न्यायपालिका और सरकार के बीच एक खतरनाक खेल बताया। उन्होंने मांग की कि जस्टिस शेखर यादव के खिलाफ तुरंत कार्रवाई हो और जस्टिस वर्मा के मामले में बिना ठोस सबूतों के कोई कदम न उठाया जाए। यह मामला न केवल न्यायपालिका की निष्पक्षता पर सवाल उठाता है, बल्कि सरकार की मंशा पर भी गंभीर संदेह पैदा करता है।