13 मई को रिलीज हुई मराठी फिल्म ‘धर्मवीर : मुकाम पोस्ट ठाणे’ की स्क्रीनिंग के समय घटी एक घटना को आज एकनाथ शिंदे और महाराष्ट्र के पूर्व सीएम उद्धव ठाकरे में दरार की अहम वजह माना जा रहा है। ठाणे के कट्टर शिवसैनिक रहे आनंद दिघे पर बनी इस फिल्म की स्क्रीनिंग में यह दोनों नेता पहुंचे थे, लेकिन उद्धव आधी फिल्म से उठकर चले गए। बाद में पत्रकारों को वजह बताई, दिघे उन्हें इतने प्रिय थे कि वे फिल्म में भी उनकी मौत होते नहीं देख पाते।
लेकिन उनके जाने की वजहें कई और मानी जा रही हैं। एकनाथ शिंदे ने ही 27 जनवरी 2022 को इस फिल्म की घोषणा की थी, और अगले चार महीने में यह रिलीज हुई। फिल्म में सबसे पहले उन्हें ही धन्यवाद दिया गया तो दिघे को गुरु पूर्णिमा पर शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के पांव धोते दिखाया गया। एक अन्य दृश्य में खुद शिंदे भी दिघे के पांव धोते नजर आए। एक समय ऑटो चालक रहे शिंदे को दिघे द्वारा किस प्रकार ठाणे के नेता के रूप में स्थापित किया गया, इसका भी विस्तार से वर्णन है। शिंदे के खुले प्रमोशन के बीच उद्धव का उल्लेख केवल दिघे द्वारा उन्हें महाराष्ट्र का भविष्य बताने में हुआ। दूसरी ओर शिंदे ने बड़ी संख्या में फिल्म के टिकट खरीद कर आम लोगों में बांटे, ताकि जता सकें वे ही कट्टर शिवसैनिक दिघे के सच्चे राजनीतिक उत्तराधिकारी हैं
भाजपा से नाता टूटा तब भी थे नाखुश
शिंदे मन से भाजपा-शिवसेना में टूट के हमेशा खिलाफ रहे। कार्यकर्ताओं के बीच वे खुद को तोड़ने वाला नहीं, जोड़कर चलने वाला नेता बताते। यह भी एक वजह थी कि कांग्रेस, एनसीपी के साथ महाविकास अघाड़ी सरकार में शिंदे को फडणवीस सरकार के समय जैसी खुली छूट नहीं मिली। बल्कि शिंदे के करीबियों पर आयकर के छापे पड़े तो सीएम उद्धव ने उन्हें खुद ही मामला सुलझाने को कहा। शिंदे ने वरिष्ठ भाजपा नेताओं की मदद से बड़ी राशि चुका कर मामला सुलझा तो लिया लेकिन तब तक खुद को दरकिनार किए जाने से उनकी नाराजगी काफी बढ़ चुकी थी।
मतभेद के बाद भी बनी रही निर्भरता
बाल ठाकरे और दिघे में कुछ शुरुआती मतभेद रहे, तो उद्धव और शिंदे में भी कुछ मतभेद रहना सामान्य माना गया। हालांकि शिंदे जैसी उद्धव के खिलाफ खुली बगावत दिघे ने कभी बाल ठाकरे के खिलाफ नहीं की। ठाणे और आसपास के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए शिवसेना शिंदे पर निर्भर थी तो उद्धव के लिए भी शिंदे महत्वपूर्ण थे।
फडणवीस ने बड़ा दिल दिखाया : अमित शाह
नई दिल्ली। एक दिन पहले तक महाराष्ट्र के अगले मुख्यमंत्री माने जा रहे देवेंद्र फडणवीस आखिरकार उप मुख्यमंत्री बनने के लिए तैयार हो गए। माना जा रहा है कि इसके लिए पार्टी के शीर्ष स्तर से उन्हें तैयार किया गया। दोपहर में एकनाथ शिंदे के साथ संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में फडणवीस ने साफ कहा कि वह सरकार में शामिल नहीं हो रहे हैं। जबकि शपथ ग्रहण से कुछ घंटे पहले दिल्ली में पार्टी अध्यक्ष जेपी नड्डा ने मीडिया से कहा कि फडणवीस बतौर उप मुख्यमंत्री सरकार में शामिल हो रहे हैं। खुद गृह मंत्री अमित शाह ने भी ट्वीट किया कि फडणवीस ने राज्य की जनता के हित में सरकार का हिस्सा बनने का फैसला लिया है। शाह ने कहा कि फडणवीस ने बड़ा दिल दिखाते हुए यह फैसला किया है । ब्यूरो
भाजपा ने अनैतिक ढंग से एक और राज्य कब्जाया : कांग्रेस
महाराष्ट्र के राजनीतिक घटनाक्रम के बाद वहां नई सरकार के गठन पर कांग्रेस ने तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए भाजपा पर निशाना साधा है। पार्टी संचार विभाग के महासचिव जयराम रमेश ने आरोप लगाया कि भाजपा ने धनबल, सत्ताबल और बाहुबल के दम पर एक और राज्य को अनैतिक ढंग से अपने कब्जे में कर लिया है। ये न सिर्फ लोकतंत्र का अपमान है बल्कि जनता का भी अपमान है जो भाजपा की विचारधारा के खिलाफ वोट करते हैं। रमेश ने इस दौरान उत्तराखंड, अरुणाचल, कर्नाटक, बिहार, मध्यप्रदेश की सरकारों का जिक्र किया।
राज ठाकरे ने दी बधाई कहा सोच-विचार कर कदम उठाएंगे : महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) प्रमुख राज ठाकरे ने भी एकनाथ शिंदे के मुख्यमंत्री बनने पर उन्हें बधाई दी। राज ठाकरे ने बधाई संदेश में कहा कि मुझे आशा है कि आप बेहतर काम करेंगे। साथ ही, यह सलाह भी दी है कि सतर्क रहिए और सोच विचार कर कदम उठाइए।
पवार ने सियासी जीवन में किए दो प्रयोग, दोनों में फेल
एनसीपी सुप्रीमो मराठा क्षत्रप शरद पवार ने अपने राजनीतिक जीवन में दो प्रयोग किए और दोनों में फेल रहे। सूबे की राजनीति में पहला प्रयोग था प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट (पीडीएफ) जिसे महाराष्ट्र में पुरोगामी लोकशाही दल के रूप में जाना जाता है और दूसरा महा विकास आघाड़ी (एमवीए)। पीडीएफ की सरकार दो साल तक नहीं टिक पाई थी और अब एमवीए सरकार ढाई साल से आगे नहीं बढ़ सकी। पवार ने इस गठबंधन के 25 साल तक सत्ता में रहने का दावा किया था।
महाराष्ट्र की राजनीति ने तब नई करवट ली थी जब अक्तूबर 2019 में राज्य में उद्धव ठाकरे के नेतृत्व में शिवसेना-कांग्रेस और एनसीपी की एमवीए सरकार सत्तासीन हुई थी। विपरीत विचारधारा वाली पार्टियों को एकजुट कर एमवीए सरकार बनवाने में शरद पवार की मुख्य भूमिका थी। तब भाजपा और शिवसेना ने मिलकर चुनाव लड़ा था और राज्य की जनता ने इस महायुति को बहुमत दिया था। लेकिन शिवसेना अपना मुख्यमंत्री चाहती थी जबकि भाजपा देवेंद्र फडणवीस के नाम पर समझौता करने को राजी नहीं थी। पवार ने उद्धव को मुख्यमंत्री पद का ऑफर देकर भाजपा का खेल बिगाड़ दिया। 45 साल पहले शरद पवार ने साल 1978 में ऐसा ही राजनीतिक प्रयोग किया था। तब वसंतदादा पाटिल की कांग्रेस आघाड़ी सरकार से 46 विधायकों को लेकर वह अलग हुए थे और पीडीएफ बनाकर पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री बने थे।