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Wednesday, June 25, 2025

कौन थे गिरीश पाण्डेय? जिनकी गवाही ने हिला दी थी इंदिरा गांधी की सत्ता

रायबरेली से आपातकाल तक: एक साहसी गवाह की अनसुनी कहानी

रायबरेली, 25 जून 2025: आज से ठीक 50 साल पहले, देश ने आपातकाल के उन काले दिनों को देखा, जब लोकतंत्र की नींव हिल गई थी। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता छिन गई, पुलिस की मनमानी चरम पर थी, और नागरिकों के बुनियादी अधिकार कुचल दिए गए थे। इस दौर में एक शख्स की गवाही ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सत्ता को चुनौती दी और इतिहास के पन्नों में अपनी जगह बनाई। वह शख्स थे—गिरीश नारायण पाण्डेय।

इंदिरा के गढ़ में हाईकोर्ट की लड़ाई

1971 का लोकसभा चुनाव। रायबरेली, जो गांधी परिवार का अभेद्य किला माना जाता था, वहां इंदिरा गांधी ने समाजवादी नेता राजनारायण को भारी मतों से हराया। लेकिन राजनारायण ने हार नहीं मानी। उन्होंने इंदिरा की जीत को हाईकोर्ट में चुनौती दी, और इस केस का सबसे मजबूत स्तंभ बने लालगंज के गिरीश नारायण पाण्डेय। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) से जुड़े गिरीश ने गवाही दी कि इंदिरा के चुनाव में सरकारी संसाधनों का दुरुपयोग हुआ। उनके सचिव यशपाल कपूर ने सरकारी मशीनरी का इस्तेमाल कर चुनावी प्रचार को प्रभावित किया।

गिरीश पर कांग्रेस के बड़े नेताओं ने दबाव बनाया। पैसे, टिकट और राज्यसभा की सदस्यता जैसे लालच दिए गए। लेकिन गिरीश अडिग रहे। हाईकोर्ट में डेढ़ घंटे की कड़ी जिरह के बाद उनका बयान इतना मजबूत साबित हुआ कि इंदिरा की रायबरेली सीट रद्द हो गई। इस फैसले ने देश की सियासत में भूचाल ला दिया।

आपातकाल की सजा: 11 महीने की कैद

हाईकोर्ट के फैसले के बाद इंदिरा सरकार ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल लागू कर दिया। गिरीश पाण्डेय इसकी भारी कीमत चुकाने वालों में से एक थे। 3 जुलाई 1975 की रात, जब वह लालगंज में अपने घर पर सो रहे थे, पुलिस ने उन्हें गिरफ्तार कर लिया। उनके बेटे अनूप पाण्डेय बताते हैं, “पिताजी को दरोगा ने कहा कि एसडीएम बुला रहे हैं। लेकिन वहां दर्जनभर पुलिसवाले खड़े थे। डीएम और एसपी ने उन्हें ‘खतरनाक आदमी’ करार दिया था।”

गिरीश को रायबरेली जेल में 11 महीने तक कैद रखा गया। जेल में उन्हें चाय तक नहीं दी गई। उन्होंने 24 घंटे का अनशन किया, तब जाकर कैदियों को नाश्ता और चाय मिली। उनके खिलाफ झूठी एफआईआर दर्ज की गई, जिसमें कहा गया कि वह शासन के खिलाफ हथियार लेकर मीटिंग कर रहे थे।

जेल से जनता की जीत तक

आपातकाल के 21 महीनों के बाद जब 1977 में चुनाव हुए, रायबरेली की जनता ने इंदिरा गांधी को नकार दिया। गिरीश पाण्डेय की गवाही और उनके साहस ने न केवल इंदिरा की सत्ता को चुनौती दी, बल्कि लोकतंत्र की ताकत को भी रेखांकित किया।

दो बार विधायक, कल्याण सिंह सरकार में मंत्री

गिरीश पाण्डेय बाद में रायबरेली के सरेनी विधानसभा क्षेत्र से दो बार विधायक चुने गए। वह कल्याण सिंह की सरकार में कैबिनेट मंत्री बने। जनसंघ और भारतीय जनता पार्टी की विचारधारा से हमेशा जुड़े रहे। तमाम प्रलोभनों के बावजूद वह कभी नहीं डिगे।

अंतिम सलाम

इसी साल 28 मार्च को गिरीश नारायण पाण्डेय का निधन हो गया। एक दिन पहले उनकी पत्नी का भी देहांत हुआ था। लेकिन उनकी कहानी आज भी प्रेरणा देती है। गिरीश पाण्डेय सिर्फ एक गवाह नहीं थे, बल्कि उस दौर के नायक थे, जिन्होंने साहस और सत्य के साथ लोकतंत्र की लड़ाई लड़ी।

आपातकाल के 50 साल बाद भी गिरीश पाण्डेय की कहानी हमें याद दिलाती है कि सत्ता कितनी भी ताकतवर हो, सत्य और साहस के सामने उसे झुकना ही पड़ता है।

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