तिरुपति, आंध्र प्रदेश, 12 जून 2025, गुरुवार: दक्षिण भारत की पावन धरती पर बसा तिरुपति बालाजी मंदिर आस्था, रहस्य और भक्ति का अनूठा संगम है। तिरुमला की सात पहाड़ियों में से एक वेंकटाद्रि पर विराजमान यह मंदिर भगवान विष्णु के कलयुगी अवतार श्री वेंकटेश्वर को समर्पित है। गोविंदा, बालाजी और तिरुपति के स्वामी के नाम से पुकारे जाने वाले भगवान यहां लाखों श्रद्धालुओं की मनोकामनाएं पूरी करते हैं। विश्व में सर्वाधिक दान प्राप्त करने वाले इस मंदिर की महिमा शिलालेखों, पुराणों और भक्तों के हृदय में बसी है।
पौराणिक कथा: माता लक्ष्मी का कोप और विष्णु का अवतार
पुराणों में वर्णित कथा के अनुसार, एक बार ऋषि भृगु ने भगवान विष्णु के वक्षस्थल पर लात मारी। माता लक्ष्मी ने इस अपमान का प्रतिकार करने की अपेक्षा की, किंतु भगवान ने ऋषि को क्षमा कर दिया। इससे क्रुद्ध होकर माता लक्ष्मी वैकुंठ त्यागकर धरती पर चली गईं। अपनी प्रियतमा की खोज में भगवान विष्णु भी तिरुमला पर्वत पर अवतरित हुए और वेंकटेश्वर के रूप में यहीं निवास किया। यही स्थान कालांतर में तिरुपति बालाजी मंदिर के रूप में विश्वविख्यात हुआ।
वराह पुराण, भागवत पुराण और पद्म पुराण जैसे ग्रंथों में इस पवित्र स्थल का उल्लेख है। माना जाता है कि भगवान वेंकटेश्वर यहां कलयुग के अंत तक भक्तों का उद्धार करने के लिए विराजमान रहेंगे।
ऐतिहासिक गौरव: शिलालेखों में बसी कहानी
तिरुपति मंदिर का इतिहास हजारों वर्ष पुराना है। ऐतिहासिक साक्ष्यों के अनुसार, तीसरी शताब्दी ईस्वी में इस मंदिर का प्रारंभिक निर्माण हुआ। तमिल शिलालेखों और ताम्रपत्रों में मंदिर का उल्लेख मिलता है। चोल, पल्लव, पांड्य और विजयनगर साम्राज्यों के शासकों ने इस मंदिर के संरक्षण और विस्तार में महत्वपूर्ण योगदान दिया।
विशेष रूप से 1517 में विजयनगर सम्राट कृष्णदेव राय ने मंदिर की भीतरी छत पर स्वर्ण लेपन करवाया और इसके वैभव को नई ऊंचाइयां प्रदान कीं। मराठा, मैसूर और ब्रिटिश काल में भी मंदिर को अपार चढ़ावा प्राप्त हुआ, जिसने इसे विश्व के सबसे धनी मंदिरों में शुमार किया।
मंदिर की संरचना: द्रविड़ शिल्प का बेजोड़ नमूना
तिरुपति मंदिर द्रविड़ स्थापत्य कला का अनुपम उदाहरण है। मंदिर का गर्भगृह भगवान वेंकटेश्वर की आठ फीट ऊंची मूर्ति का निवास है। काले पत्थर से निर्मित यह मूर्ति स्वयंभू मानी जाती है। भगवान की आंखों की अलौकिक चमक के कारण उन्हें आधा ढककर रखा जाता है, ताकि भक्तों पर उनका तीव्र प्रभाव नियंत्रित रहे।
मंदिर का मुख्य गोपुरम, जिस पर स्वर्ण की परत चढ़ी है, लगभग 50 फीट ऊंचा है। इसकी नक्काशी मंदिर की प्राचीनता और भव्यता की गवाही देती है। परिसर में रंग मंडपम, स्वर्ण द्वार और ध्वजस्तंभ जैसे स्थल धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व रखते हैं। स्वर्ण द्वार केवल विशेष अवसरों पर ही खोला जाता है।
मंदिर का रसोईघर भी विश्वप्रसिद्ध है, जहां GI टैग प्राप्त ‘तिरुपति लड्डू’ प्रसाद तैयार होता है। यह लड्डू भक्तों के बीच अत्यंत लोकप्रिय है और मंदिर की पहचान का प्रतीक है।
कैसे पहुंचें?
तिरुपति मंदिर तक पहुंचने के लिए निकटतम हवाई अड्डा तिरुपति अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डा (रेनिगुंटा) है, जो तिरुमला से 15 किलोमीटर दूर है। यहां से दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहरों के लिए नियमित उड़ानें उपलब्ध हैं।
तिरुपति रेलवे स्टेशन दक्षिण भारत का प्रमुख जंक्शन है, जो चेन्नई, बेंगलुरु, विजयवाड़ा और अन्य शहरों से जुड़ा है। स्टेशन से मंदिर की दूरी लगभग 20 किलोमीटर है। सड़क मार्ग से भी तिरुपति आसानी से पहुंचा जा सकता है, जहां से तिरुमला तक बस और टैक्सी सेवाएं उपलब्ध हैं।
आस्था का केंद्र, विश्व का गौरव
तिरुपति बालाजी मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल ही नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति और आध्यात्मिकता का प्रतीक है। यहां प्रतिदिन लाखों भक्त दर्शन के लिए आते हैं, और मंदिर का वैभव विश्व भर में प्रसिद्ध है। यह मंदिर हमें सिखाता है कि सच्ची भक्ति और विश्वास के सामने हर बाधा नतमस्तक हो जाती है।