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Thursday, March 13, 2025

कब और कैसे हुई रंगों के पर्व होली की शुरुआत, आईए जानते हैं पूरी कथा

होली हिंदू धर्म के प्रमुख त्योहारों में से एक है। इस साल होली 25 मार्च को है। रंगों का यह पर्व हर साल फाल्गुन मास में बड़े ही धूमधाम से मनाया जाता है। होली का त्योहार होलिका दहन के साथ ही शुरू होता है, फिर इसके अगले दिन रंग-गुलाल के साथ होली खेली जाती है। इस दिन हिंदू धर्म के लोग एकजुट होकर खुशियां मनाते हैं और एक दूसरे को प्यार के रंगों में सराबोर करके अपनी खुशी जाहिर करते हैं। ये तो सभी जानते हैं कि होलिका दहन की कथा विष्णु भक्त प्रह्लाद और राक्षसी होलिका से जुड़ी है, लेकिन होली क्यों मनाई जाती है इसके बारे में बहुत कम लोग ही जानते होंगे। ऐसे में चलिए आपको बताते हैं होली क्यों मनाई जाती है और कैसे हुई इसे मनाने की शुरुआत…  

होली से जुड़ी है कामदेव और शिव जी की कथा 
पौराणिक कथा के अनुसार देवी पार्वती शिव जी से विवाह करना चाहती थीं, लेकिन तपस्या में लीन शिव का ध्यान उनकी ओर नहीं गया। पार्वती की इन कोशिशों को देखकर प्रेम के देवता कामदेव आगे आए और उन्होंने शिव पर पुष्प बाण चला दिया, जिसके कारण शिव की तपस्या भंग हो गई। तपस्या भंग होने की वजह से शिव नाराज हो गए और उन्होंने अपनी तीसरी आंख खोल दी और उनके क्रोध की अग्नि में कामदेव भस्म हो गए। 

इसके बाद शिव जी ने पार्वती की ओर देखा। हिमवान की पुत्री पार्वती की आराधना सफल हुई और शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार कर लिया। लेकिन कामदेव के भस्म होने के बाद उनकी पत्नी रति को असमय ही वैधव्य सहना पड़ा। फिर रति ने शिव की आराधना की। वह जब अपने निवास पर लौटे, तो कहते हैं कि रति ने उनसे अपनी व्यथा कही।

वहीं पार्वती के पिछले जन्म की बातें याद कर भगवान शिव ने जाना कि कामदेव निर्दोष हैं। पिछले जन्म में दक्ष प्रसंग में उन्हें अपमानित होना पड़ा था। उनके अपमान से विचलित होकर दक्ष पुत्री सती ने आत्मदाह कर लिया। उन्हीं सती ने पार्वती के रूप में जन्म लिया और इस जन्म में भी शिव का ही वरण किया। कामदेव ने तो उन्हें सहयोग ही दिया। शिव की दृष्टि में कामदेव फिर भी दोषी हैं, क्योंकि वह प्रेम को शरीर के तल तक सीमित रखते और उसे वासना में गिरने देते हैं।

इसके बाद शिव जी कामदेव को जीवित कर दिया। उसे नया नाम दिया मनसिज। कहा कि अब तुम अशरीरी हो। उस दिन फागुन की पूर्णिमा थी। आधी रात गए लोगों ने होली का दहन किया था। सुबह तक उसकी आग में वासना की मलिनता जलकर प्रेम के रूप में प्रकट हो चुकी थी। कामदेव अशरीरी भाव से नए सृजन के लिए प्रेरणा जगाते हुए विजय का उत्सव मनाने लगे। ये दिन होली का दिन होता है। वहीं कई जगहों आज भी रति के विलाप को लोक धुनों और संगीत में उतारा जाता है।

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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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