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Thursday, August 7, 2025

उत्तराखंड में मुख्यमंत्री के बदलाव से आने वाले विधानसभा चुनावों में क्या प्रभाव होगा

उत्तराखंड में भाजपा ने एक बार फिर अपने मुख्यमंत्री को बदल दिया है। लेकिन, एक साल बाद होने वाले विधानसभा चुनावों में यह कितना प्रभावी होगा, कहना मुश्किल है। पहले के दो अनुभव बताते हैं कि इस प्रकार के प्रयास निरर्थक साबित हुए। लेकिन, इस बार नए बनने वाले मुख्यमंत्री क्या स्थिति को बदल पाएंगे? या पूर्व की पुनरावृत्ति फिर होगी? यह प्रश्न सबके सामने है। 


उठापटक का लंबा सिलसिला

सन् 2000 में उत्तराखंड जब राज्य बना, तब नित्यानंद स्वामी पहले मुख्यमंत्री बनाए गए थे। लेकिन, साल पूरा करने से पहले ही उन्हें बदलना पड़ा। तब भी यही आशंका जताई गई थी कि वे चुनाव नहीं जिता पाएंगे। तब भगत सिंह कोश्यारी को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन, कोश्यारी को सिर्फ चार महीने से ज्यादा नहीं मिल पाए। राज्य में अगली सरकार कांग्रेस की बनी। लेकिन, यह सिलसिला यहीं नहीं थमा। 

साल 2007 में भाजपा ने चुनाव जीता और जब मेजर जनरल बीसी खंडूड़ी को मुख्यमंत्री बनाया गया, लेकिन विधायकों में असंतोष के चलते करीब दो साल बाद उन्हें हटाकर रमेश पोखरियाल निशंक को मुख्यमंत्री बनाया गया। लेकिन, 2012 के विधानसभा चुनावों से ठीक पहले भाजपा को हार की आशंका होने लगी और निशंक को हटाकर फिर से खंडूड़ी मुख्यमंत्री बनाए गए। लेकिन, वह पार्टी को तो क्या खुद भी चुनाव नहीं जीत पाए। 

अब चुनाव से ठीक एक साल पहले फिर से उत्तराखंड में नेतृत्व परिवर्तन हुआ है। इस बार फर्क यह है कि फैसला समय रहते लिया गया है तथा नए मुख्यमंत्री को करीब एक साल का समय हालात को संभालने के लिए मिल रहा है, जबकि कोश्यारी को चार महीने और खंडूरी को छह महीने ही मिल पाए थे। 

कांग्रेस के सामने नेतृत्व का संकट, ‘आप’ पैर जमाने की कोशिश कर रही

जानकारों का कहना है कि इस बार समय के अलावा कुछ अन्य कारक भी हैं, जो फायदेमंद साबित हो सकते हैं। जैसे, राज्य में कांग्रेस नेतृत्व के संकट से जूझ रही है। दूसरे, राज्य में आम आदमी पार्टी भी पैर जमाने की कोशिश कर रही है और यह अनुमान लगाया जा रहा है कि वह विपक्ष के मतों में सेंध लगा सकती है। ऐसे में सबकी नजर इस बात पर होगी कि अगले एक साल के भीतर राजनीतिक हालात क्या रुख लेते हैं।

newsaddaindia6
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Anita Choudhary is a freelance journalist. Writing articles for many organizations both in Hindi and English on different political and social issues

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