नई दिल्ली, 22 जून 2025: जब बात राष्ट्रभक्ति की आती है, तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) का नाम अनायास ही ज़ुबान पर आता है। 1925 में विजयदशमी के दिन डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार द्वारा स्थापित यह संगठन आज सिर्फ़ भारत में ही नहीं, बल्कि विश्व भर में अपने समर्पण और सेवा के लिए जाना जाता है। लेकिन सवाल उठता है – “RSS ने किया क्या?” आइए, जानते हैं संघ की वो अनकही कहानियाँ, जो देश के लिए प्रेरणा हैं!
- वंदे मातरम का गुनाह और RSS का जन्म
उस दौर में जब अंग्रेज़ों ने वंदे मातरम गाने पर पाबंदी लगा दी थी, तब एक नौजवान ने स्कूल में नारा लगाया – “वंदे मातरम!” प्रिंसिपल ने माफ़ी मांगने को कहा, जवाब मिला, “गिरफ्तार करना है तो करो!” यह नौजवान थे डॉ. हेडगेवार, जिन्होंने 1925 में सिर्फ़ पाँच स्वयंसेवकों के साथ RSS की नींव रखी। यह संगठन नहीं, एक संकल्प था – कायरता नहीं, सिर्फ़ राष्ट्रभक्ति!
- अधूरी आज़ादी को पूरा करने की जंग
1947 में भारत आज़ाद हुआ, लेकिन दादरा-नगर हवेली और गोवा पर पुर्तगालियों का कब्ज़ा बरकरार था। जब सरकारें सो रही थीं, तब RSS जागा! 1954 में स्वयंसेवकों ने दादरा-नगर हवेली को मुक्त कर तिरंगा फहराया, फिर सरकार को ख़बर दी। 1961 में गोवा मुक्ति आंदोलन में हज़ारों स्वयंसेवक जेल गए, लेकिन देश की सीमाएँ साफ़ करने का जज़्बा नहीं छोड़ा। राष्ट्र पहले, राजनीति बाद में!
- कश्मीर का विलय: जब सरदार पटेल ने RSS पर जताया भरोसा
1947 में कश्मीर का भारत में विलय अधर में लटका था। सरदार पटेल ने RSS प्रमुख गुरु गोलवलकर को महाराजा हरि सिंह को समझाने की ज़िम्मेदारी दी। एक सामाजिक संगठन का इतना भरोसा कि उसे देश के सबसे बड़े फ़ैसले में शामिल किया गया! यह था RSS का दम, जो गुलाम मानसिकता वाली सरकारों में नहीं था।
- 1947 के दंगों में सेवा का परचम
जब देश बँटवारे की आग में जल रहा था, लाखों हिंदू-सिख शरणार्थी पाकिस्तान से भारत आए। सरकार बेबस थी, लेकिन RSS मोर्चे पर डटा था। 3000 से ज़्यादा राहत शिविरों में खाना, दवाइयाँ, छत और यहाँ तक कि अंत्येष्टि तक का इंतज़ाम RSS ने किया। प्रचार से दूर, सिर्फ़ सेवा से राष्ट्रभक्ति का परचम लहराया।
- 1962 का युद्ध: जब RSS सैनिकों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा था
भारत-चीन युद्ध में जब सरकार ने रक्षा बजट तक नहीं बढ़ाया, तब RSS स्वयंसेवक सीमा पर खाना, गोला-बारूद और दवाइयाँ पहुँचाते थे। घायल सैनिकों की सेवा से लेकर शहीदों के अंतिम संस्कार तक, संघ ने हर मोर्चे पर साथ दिया।
- 1963 की गणतंत्र दिवस परेड: नेहरू का न्योता, RSS का जलवा
1963 में पहली बार RSS को गणतंत्र दिवस परेड में बुलाया गया। 3500 स्वयंसेवकों ने राजपथ पर कदम रखा और यह न्योता देने वाले थे स्वयं प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू। यह स्वीकारोक्ति थी कि RSS को रोका जा सकता है, पर नकारा नहीं जा सकता!
- “RSS मुस्लिम विरोधी” – झूठ की दुकान बंद करो!
2002 में RSS की पहल पर ‘राष्ट्रीय मुस्लिम मंच’ बना, जिसमें आज लाखों राष्ट्रवादी मुस्लिम शामिल हैं। ये वो लोग हैं जो धर्मनिष्ठ हैं, भारत-समर्पित हैं और हिंदुत्व की खुलकर बात करते हैं। तो अब तय कीजिए – ज़हर कौन फैला रहा है? संघ या वो जो झूठ का प्रचार करते हैं?
- “RSS पढ़ा-लिखा नहीं” – इतिहास पढ़ लो!
संघ के प्रमुखों की शिक्षा देखिए: डॉ. हेडगेवार (MBBS), गुरु गोलवलकर (M.Sc. Zoology), रज्जू भैया (Physics Professor), सुदर्शन (Engineer), मोहन भागवत (Veterinary Science Graduate)। श्यामा प्रसाद मुखर्जी, अटल बिहारी वाजपेयी से लेकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी तक, संघ से निकला हर शख्स इतिहास में अपनी छाप छोड़ गया।
- समान नागरिक संहिता: 70 साल पुरानी माँग
RSS का स्पष्ट मत है – “एक देश, एक क़ानून!” चाहे हिंदू हो, मुस्लिम, सिख, ईसाई या कोई और, संविधान से ऊपर कोई निजी क़ानून नहीं होना चाहिए। यह माँग आज भी उतनी ही प्रासंगिक है।
RSS – राष्ट्र का प्रहरी
RSS कोई साधारण संगठन नहीं, बल्कि राष्ट्रभक्ति का वो दीया है जो हर तूफ़ान में जलता रहा। चाहे आज़ादी की लड़ाई हो, आपातकाल हो, या देश की एकता की बात, RSS ने हमेशा “राष्ट्र प्रथम” का मंत्र जिया। तो अगली बार जब कोई पूछे, “RSS ने क्या किया?” तो गर्व से कहिए – “RSS ने भारत को जिया, भारत को बनाया!”