नई दिल्ली: दिल्ली जल बोर्ड के एक संविदाकर्मी को दुष्कर्म के फर्जी केस में जेल जाना पड़ा। परिवार को लोगों की जलालत झेलनी पड़ी। आरोप के बाद युवक का रोजगार तक छिन गया, लेकिन बाद में मामला फर्जी निकला और अदालत ने आरोपित को तीन साल बाद बरी कर दिया। द्वारका स्थित अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश साधिका जालान की अदालत ने दुष्कर्म और धमकी देने के आरोपों का सामना कर रहे युवक को आरोपमुक्त करार दिया। अदालत ने अपने आदेश में कहा कि पीड़िता की शिकायत आधारहीन है, जिस पर अदालत भरोसा नहीं कर सकती। युवक दिल्ली जल बोर्ड में संविदा पर प्लंबर के तौर पर काम करता था। आरोप के बाद उसे नौकरी का संकट झेलना पड़ा और काफी समय तक उसे काम नहीं मिल पाया।
बचाव पक्ष की ओर से पेश अधिवक्ता पंकज चौधरी ने दलील दी कि मामले में आरोपित युवक के खिलाफ दुष्कर्म, धमकी देने और फोटो प्रसारित करने का मुकदमा दर्ज कराया गया था। अदालत में पूछताछ के दौरान पीड़िता यह नहीं बता पाई कि घटना कहां हुई। पीड़िता ने जिस महिला के घर में घटना की बात कही, उस महिला के बेटे ने अदालत में ही पीड़िता को पहचानने से इन्कार किया। अदालत में गवाही के दौरान
कोरोनाकाल में घटना के होने की बात पर भी सवाल
अदालत ने घटना की तिथि पर सवाल उठाते हुए कहा कि जिस समय घटना का जिक्र है, उस दौरान देश में लाकडाउन था। ऐसे में आरोपित अपने परिवार के साथ रहता था। इसके अलावा पीड़िता ने शिकायत में एक जगह गलत काम शब्द का इस्तेमाल किया है, जबकि पूरी कार्रवाई के दौरान स्पष्ट नहीं किया कि कौन सा गलत काम नहीं किया।
प्लंबर का काम करने के पैसे मांगने पर मुकदमा किया
दुष्कर्म के आरोप का सामना करने वाले युवक ने अदालत में बताया कि उसने शिकायतकर्ता के घर प्लंबिंग का काम किया था, जिसका बिल करीब 16,500 रुपये बना था। महिला ने केवल 2500 रुपये दिए और बाकी रुपये मांगने पर उसे मुकदमे में फंसाने की धमकी दी थी। महिला के केस दर्ज कराने पर उसे ढाई माह जेल में रहना पड़ा।