काशी में गंगा तट पर गूंजा सनातनी नववर्ष का शंखनाद
वाराणसी, 30 मार्च 2025, रविवार। हिन्दू नववर्ष के आगाज पर काशी में एक अनूठा उत्साह और उमंग देखने को मिला। पवित्र गंगा के तटों पर शंखनाद की गूंज के साथ नव संवत्सर के सूर्य का स्वागत किया गया। काशी, जो अपनी आध्यात्मिकता और सांस्कृतिक धरोहर के लिए जानी जाती है, ने इस अवसर पर भव्य गंगा आरती के साथ नए साल के आगमन का जश्न मनाया। गंगा घाटों पर उमड़े सनातनियों ने एक-दूसरे को शुभकामनाएं दीं और हिन्दू नववर्ष का स्वागत पूरे जोश व गर्मजोशी के साथ किया।

शहर का माहौल पूरी तरह उत्सवी रंग में रंगा नजर आया। घरों, गलियों और गांवों को भगवा ध्वज-पताकाओं से सजाया गया, जो हर ओर एक सकारात्मक ऊर्जा का संचार कर रहा था। घरों के मुख्य द्वारों पर रंग-बिरंगे वंदनवार लटकाए गए, जो नववर्ष के स्वागत का प्रतीक बने। लोग अपने-अपने तरीके से इस खास दिन को मनाते दिखे। गंगा घाटों पर पहुंचे विदेशी पर्यटकों ने भी इस भव्य आरती में हिस्सा लिया और भारतीय संस्कृति की इस अनुपम छटा को करीब से अनुभव किया।

इस अवसर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के गंगा समग्र की ओर से अस्सी घाट पर मां गंगा का विशेष पूजन किया गया। देश की सुख-समृद्धि और कल्याण की कामना के साथ यह आयोजन संपन्न हुआ। रविवार की सुबह गंगोत्री सेवा समिति और नमामि गंगे ने नव संवत्सर के स्वागत में मां गंगा की भव्य आरती की। इस दौरान भगवान सूर्य को दूध से अर्घ्य अर्पित किया गया और मां गंगा का दुग्धाभिषेक संपन्न हुआ। सूर्यदेव से विश्व को “वसुधैव कुटुम्बकम” का संदेश देने और समस्त मानवता को ऊर्जा प्रदान करने की प्रार्थना की गई। इसके बाद अर्चकों के साथ मां गंगा की आरती हुई, जिसमें मानव कल्याण, शांति और पर्यावरण संरक्षण के लिए हवन-पूजन भी किया गया।

गंगोत्री सेवा समिति के संस्थापक अध्यक्ष पंडित किशोरी रमण दुबे ने इस अवसर पर सभी को नव संवत्सर की शुभकामनाएं दीं। उन्होंने कहा कि काशी में गंगा आरती के साथ नए साल की शुरुआत करना बेहद शुभ और मंगलकारी माना जाता है। यह एक ऐसा आध्यात्मिक अनुभव है, जो सनातनी नववर्ष की शुरुआत में सकारात्मकता और शांति का संचार करता है। समिति के सचिव पंडित दिनेश शंकर दुबे ने इसे मां गंगा की शक्ति और पवित्रता के प्रति एक प्रतीकात्मक श्रद्धांजलि बताया। इस आयोजन में नमामि गंगे के काशी क्षेत्र संयोजक राजेश शुक्ला, मयंक दुबे, गंगा आरती के अर्चक और बड़ी संख्या में श्रद्धालु शामिल हुए।

यह उत्सव न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बना, बल्कि काशी की सांस्कृतिक समृद्धि और एकता को भी दर्शाता रहा। हिन्दू नववर्ष का यह आगाज काशीवासियों के लिए एक अविस्मरणीय पल बन गया, जो आने वाले साल के लिए नई उम्मीदें और संकल्प लेकर आया।