नई दिल्ली, 17 अप्रैल 2025, गुरुवार। वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ चल रही कानूनी जंग ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में एक नया मोड़ लिया। लगातार दूसरे दिन हुई सुनवाई में सुप्रीम कोर्ट ने साफ कर दिया कि वक्फ बाइलॉज में कोई बदलाव नहीं होगा और न ही नए कानून के तहत बोर्ड या वक्फ काउंसिल में कोई नियुक्ति की जाएगी। इस फैसले ने वक्फ संपत्तियों की सुरक्षा के लिए लड़ रहे जमीयत उलमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना अरशद मदनी को राहत दी है। उन्होंने इसे न केवल अपने रुख की जीत बताया, बल्कि कोर्ट की सख्त टिप्पणियों को वक्फ के हक में एक मजबूत कदम करार दिया।
मौलाना मदनी का बयान: “हमें मजबूरन चुनना पड़ा अदालत का रास्ता”
मौलाना अरशद मदनी ने कोर्ट के रुख पर संतोष जताते हुए कहा कि नए कानून की वे धाराएं, जिनका जमीयत शुरू से विरोध कर रही थी, सुप्रीम कोर्ट में भी बहस का केंद्र रहीं। खास तौर पर मुख्य न्यायाधीश (सीजेआई) संजीव खन्ना की सख्त टिप्पणियों ने उनके इस विश्वास को और पक्का किया कि वक्फ संपत्तियों को बचाने की उनकी लड़ाई जायज है। मदनी ने कहा, “हमने संयुक्त संसदीय समिति के सामने भी इन धाराओं को लेकर चिंता जताई थी, जो वक्फ संपत्तियों के लिए विनाशकारी हैं। लेकिन जब हमारी बात अनसुनी रही, तो हमें मजबूरन अदालत का दरवाजा खटखटाना पड़ा।”
उन्होंने इस कानूनी लड़ाई में साथ देने वाले वकीलों, खासकर वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल की तारीफ की, जिनकी दलीलों को उन्होंने “ऐतिहासिक” बताया। इसके साथ ही, उन्होंने देश के उन सभी संगठनों, नेताओं और नागरिकों का आभार जताया, जो इस संशोधन के खिलाफ खड़े हैं।
सुप्रीम कोर्ट में क्या हुआ?
सुनवाई के दौरान सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से अनुरोध किया कि कोई अंतरिम आदेश जारी न किया जाए और सरकार को जवाब दाखिल करने के लिए एक हफ्ते का समय दिया जाए। उन्होंने आश्वासन दिया कि अगली सुनवाई तक विवादित धाराओं को लागू नहीं किया जाएगा, न ही बोर्ड में नियुक्तियां होंगी और न ही वक्फ संपत्तियों पर कोई कार्रवाई होगी। सुप्रीम कोर्ट ने इस शर्त को स्वीकार कर लिया और अगली सुनवाई की तारीख 5 मई, 2025 तय की।
कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि वक्फ संशोधन के खिलाफ दायर सभी याचिकाओं पर अलग-अलग सुनवाई के बजाय, केवल पांच प्रमुख याचिकाओं पर विचार होगा। बाकी याचिकाओं को आवेदन के रूप में स्वीकार किया जाएगा, और केवल पांच वरिष्ठ अधिवक्ताओं की दलीलें सुनी जाएंगी।
लोकतंत्र में विरोध जरूरी
मौलाना मदनी ने अपने बयान में लोकतंत्र के मूल्यों को रेखांकित करते हुए कहा, “कानून बनाने का अधिकार सरकार को है, लेकिन अगर इसका इस्तेमाल गलत उद्देश्यों के लिए हो, तो उसका लोकतांत्रिक तरीके से विरोध करना हमारा हक है।” उन्होंने जोर देकर कहा कि वक्फ संपत्तियां धार्मिक और सामाजिक विरासत का हिस्सा हैं, जिन्हें बचाना हर जिम्मेदार नागरिक का फर्ज है।
आगे की राह
सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला वक्फ संशोधन कानून के खिलाफ चल रही लड़ाई में एक अहम पड़ाव है। मौलाना मदनी और उनकी संस्था जमीयत उलमा-ए-हिंद ने इसे एक बड़ी उपलब्धि माना है, लेकिन उनकी नजर अब 5 मई की सुनवाई पर टिकी है। दूसरी ओर, सरकार को अपने संशोधनों के पक्ष में ठोस तर्क पेश करने की चुनौती है। यह मामला न केवल वक्फ संपत्तियों के भविष्य को तय करेगा, बल्कि देश में धार्मिक और सामुदायिक संपत्तियों के प्रबंधन पर भी गहरा असर डालेगा।
यह कानूनी और सामाजिक जंग अभी थमी नहीं है। क्या सुप्रीम कोर्ट का अंतिम फैसला वक्फ संपत्तियों के लिए नया इतिहास रचेगा? यह सवाल हर किसी के जहन में है।