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Thursday, April 10, 2025

वक्फ संशोधन बिल: एक नया विवाद और ज्ञानवापी की लड़ाई पर सवाल

✍️ विकास यादव

वाराणसी, 4 अप्रैल 2025, शुक्रवार। वक्फ संशोधन बिल को लेकर देश में एक बार फिर बहस छिड़ गई है। इस बिल के आने से न सिर्फ वक्फ संपत्तियों का मुद्दा गरमाया है, बल्कि प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट और ज्ञानवापी मस्जिद जैसे संवेदनशील मामलों पर भी नई चुनौतियां खड़ी हो रही हैं। अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद कमेटी के ज्वाइंट सेक्रेटरी और ज्ञानवापी मस्जिद-श्रृंगार गौरी मामले में पैरोकार एसएम यासीन ने इस मुद्दे पर बेबाकी से अपनी राय रखी है। उनका मानना है कि यह बिल न सिर्फ धार्मिक स्थलों की मौजूदा स्थिति को कमजोर करेगा, बल्कि समानता और संवैधानिक अधिकारों पर भी सवाल उठाएगा।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर खतरा

एसएम यासीन का कहना है कि वक्फ संशोधन बिल से 1991 का प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट कमजोर पड़ सकता है, जो देश में धार्मिक स्थलों की यथास्थिति को बनाए रखने का आधार है। इस कानून के तहत 15 अगस्त 1947 को जो पूजास्थल जिस हालत में था, उसे वैसे ही रहना है। यासीन का तर्क है कि अगर यह बिल लागू हुआ तो ज्ञानवापी मस्जिद जैसे मामलों पर असर पड़ेगा, जो पहले से ही कोर्ट में विचाराधीन हैं। वे इसे मौलिक अधिकारों का हनन भी मानते हैं। उनके शब्दों में, “कथनी और करनी में इस सरकार का फर्क साफ दिखता है।”

सरकारी जमीन पर वक्फ संपत्ति: सवालों का घेरा

हाल ही में हुए सर्वे में पूरे प्रदेश में हजारों वक्फ संपत्तियों को सरकारी जमीन पर बताया गया है। वाराणसी में भी 406 प्रॉपर्टी की सूची सामने आई है। इस पर यासीन सवाल उठाते हैं, “यह कैसे तय हो गया कि ये सरकारी जमीन है?” वे उदाहरण देते हैं कि कमलगड़हा इलाके में एक कब्रिस्तान है, जो सैकड़ों सालों से मौजूद है। उस वक्त सरकार कहां थी? क्या तब जमीनें चिह्नित नहीं थीं? अचानक ये संपत्तियां सरकारी कैसे हो गईं? उनका कहना है कि वाराणसी में वक्फ की ज्यादातर संपत्तियां सड़कों से हटकर अंदर हैं, फिर सरकारी जमीन का दावा क्यों?

कमेटी में गैर-मुस्लिमों की मौजूदगी पर आपत्ति

वक्फ संशोधन बिल में कमेटी में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रस्ताव भी यासीन को नागवार गुजरा है। वे तंज कसते हुए कहते हैं, “रामजन्मभूमि या विश्वनाथ धाम की कमेटी में क्या कोई मुस्लिम या पिछड़ा वर्ग का सदस्य है? नहीं। तो हमारे मामले में गैर-मुस्लिम को क्यों शामिल करेंगे? कंट्रोलर रखिए, लेकिन जिन्हें वक्फ की ABCD तक नहीं पता, उन्हें कमेटी में जगह देना सरासर गलत है।”

नियम सबके लिए बराबर क्यों नहीं?

यासीन एक और अहम मुद्दा उठाते हैं। उनका कहना है कि मुस्लिम समुदाय के अलावा अन्य धर्मों के पूजास्थल भी सड़कों, पार्कों और सरकारी जमीनों पर बने हैं। “हमें इससे कोई ऐतराज नहीं, लेकिन अगर नियम है तो सबके लिए बराबर होना चाहिए।” वे इसे दोहरा मापदंड मानते हैं और कहते हैं कि समानता का सिद्धांत हर हाल में लागू होना चाहिए।

कानूनी लड़ाई का रास्ता

वक्फ संशोधन बिल के खिलाफ सड़कों पर उतरने के बजाय यासीन कानूनी रास्ते को प्राथमिकता दे रहे हैं। उनका कहना है, “हाई कमान यानी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड जो फैसला लेगा, हम वही करेंगे। हम कोर्ट का सहारा लेंगे।” वे इसे कौम को परेशान करने का “नया शिगूफा” करार देते हैं, लेकिन लड़ाई को शांतिपूर्ण और संवैधानिक ढंग से लड़ने की बात पर जोर देते हैं।

प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट क्या है?

1991 में लागू प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट का मकसद देश में धार्मिक स्थलों की मौजूदा स्थिति को बनाए रखना था। इसके तहत यह तय हुआ कि 15 अगस्त 1947 को जो पूजास्थल जिस हालत में था, वह उसी रूप में रहेगा। यह कानून सभी धर्मों पर लागू है और धार्मिक सौहार्द को कायम रखने का आधार माना जाता है।

वक्फ संशोधन बिल: धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला या सुधार की दिशा में कदम?

वक्फ संशोधन बिल को लेकर उठे विवाद ने एक बार फिर धार्मिक और कानूनी बहस को हवा दी है। एसएम यासीन जैसे लोग इसे न सिर्फ वक्फ संपत्तियों पर हमला मानते हैं, बल्कि संवैधानिक समानता और धार्मिक स्वतंत्रता पर सवाल उठाते हैं। अब यह देखना बाकी है कि कोर्ट और सरकार इस मसले पर क्या रुख अपनाते हैं। लेकिन एक बात साफ है—यह मुद्दा अभी लंबे वक्त तक चर्चा में बना रहेगा।

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