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Saturday, April 19, 2025

वक्फ एक्ट 2025: सुप्रीम कोर्ट में गैर-मुस्लिम भागीदारी पर तीखी बहस

नई दिल्ली, 17 अप्रैल 2025, गुरुवार। सुप्रीम कोर्ट में वक्फ एक्ट 2025 को लेकर चल रही सुनवाई ने पहले ही दिन सुर्खियां बटोर लीं। बुधवार को मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना, जस्टिस संजय कुमार और जस्टिस केवी विश्वनाथन की बेंच ने इस कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई की। बहस का केंद्र रहा वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में गैर-मुस्लिमों को शामिल करने का प्रावधान, जिसने न केवल कानूनी सवाल खड़े किए, बल्कि धार्मिक और न्यायिक निष्पक्षता के मुद्दों को भी छू लिया।

हिंदू मंदिरों में मुस्लिम सदस्य? CJI का सवाल

मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना ने केंद्र सरकार के वकील, सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता से तीखा सवाल किया: “अगर वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम शामिल हो सकते हैं, तो क्या हिंदू धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन में मुस्लिम सदस्यों को जगह दी जा सकती है?” यह सवाल उस वक्त आया, जब केंद्र ने वक्फ एक्ट की धारा 9 और 14 का बचाव करते हुए कहा कि गैर-मुस्लिमों की भागीदारी सीमित है और इससे बोर्ड की मुस्लिम संरचना पर असर नहीं पड़ेगा। मेहता ने बताया कि 22 सदस्यों में से केवल 2 गैर-मुस्लिम ही होंगे।

“हम धर्म खो देते हैं, सिर्फ न्याय करते हैं”

सुनवाई के दौरान केंद्र की एक दलील ने कोर्टरूम में तनाव बढ़ा दिया। मेहता ने तर्क दिया कि अगर गैर-मुस्लिमों की बोर्ड में मौजूदगी को गलत माना जाए, तो उसी तर्क से मौजूदा बेंच भी इस मामले की सुनवाई के लिए अयोग्य हो जाएगी, क्योंकि इसमें हिंदू जज हैं। इस पर CJI खन्ना ने कड़ा रुख अपनाते हुए कहा, “माफ कीजिए, मिस्टर मेहता, हम सिर्फ न्याय की बात कर रहे हैं। जब हम इस बेंच पर बैठते हैं, तो हम अपना धर्म खो देते हैं। हम पूरी तरह धर्मनिरपेक्ष होते हैं। हमारे लिए हर पक्ष बराबर है।”

“गवर्निंग बोर्ड की तुलना जजों से कैसे?”

CJI ने आगे सवाल उठाया कि धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन बोर्ड की तुलना जजों से करना कहां तक उचित है। उन्होंने कहा, “कल को अगर किसी हिंदू मंदिर के लिए ट्रस्ट बनाना हो और सभी सदस्य हिंदू हों, तो क्या यह गलत होगा? आप इसे जजों के बैकग्राउंड से कैसे जोड़ सकते हैं?” मेहता ने सफाई दी कि उनका इरादा जजों के बैकग्राउंड पर सवाल उठाना नहीं था। उन्होंने जोर देकर कहा कि वक्फ बोर्ड एक सलाहकार निकाय है, जिसमें गैर-मुस्लिमों की संख्या बेहद कम होगी। संयुक्त संसदीय समिति की रिपोर्ट का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि अधिकतम 2 गैर-मुस्लिम ही शामिल होंगे।

क्या होगा अगला कदम?

यह सुनवाई न केवल वक्फ एक्ट के प्रावधानों की वैधानिकता पर सवाल उठा रही है, बल्कि धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन में समावेशिता और निष्पक्षता के व्यापक मुद्दों को भी उजागर कर रही है। CJI खन्ना का सुझाव कि सलाहकार बोर्ड में मुस्लिम सदस्यों की बहुलता होनी चाहिए, ने बहस को नया मोड़ दिया। जैसे-जैसे सुनवाई आगे बढ़ेगी, यह देखना दिलचस्प होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस जटिल मसले पर क्या रुख अपनाता है।

यह मामला न सिर्फ कानूनी, बल्कि सामाजिक और धार्मिक संवेदनशीलताओं से भी जुड़ा है, और इसका फैसला भविष्य में धार्मिक संस्थानों के प्रबंधन के तौर-तरीकों को नई दिशा दे सकता है।

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