नई दिल्ली, 6 अप्रैल 2025, रविवार। भारत के विधायी इतिहास में एक नया पन्ना जुड़ गया है। वक्फ संशोधन बिल 2025, जो महीनों से चर्चा का विषय बना हुआ था, अब राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की मंजूरी के साथ कानून बन गया है। लोकसभा और राज्यसभा में तीखी बहस और मतदान के बाद इस बिल को हरी झंडी मिली, और अब यह देश भर में वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन को नया रूप देने के लिए तैयार है। यह कानून न सिर्फ प्रशासनिक सुधार का वादा करता है, बल्कि सामाजिक समावेश और आधुनिकता की दिशा में भी एक बड़ा कदम है। तो आइए, इस ऐतिहासिक बदलाव की कहानी को करीब से जानते हैं।
संसद का रण: बहस से मंजूरी तक
वक्फ संशोधन बिल का सफर किसी रोमांचक नाटक से कम नहीं रहा। 2 अप्रैल 2025 को लोकसभा में पेश होने के बाद इसने 12 घंटे की लंबी बहस देखी। पक्ष में 288 और विरोध में 232 वोट पड़े। अगले दिन, 3 अप्रैल को राज्यसभा में भी तीखी चर्चा हुई, जहाँ 128 सांसदों ने समर्थन किया और 95 ने विरोध। सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच गहमागहमी ने इसे सुर्खियों में ला दिया। केंद्रीय अल्पसंख्यक कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने इसे “पारदर्शिता और सशक्तिकरण” का प्रतीक बताया। अंततः, 5 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के साथ यह कानून बन गया, और अब यह पूरे देश में लागू होने को तैयार है।
क्या नया लाया यह कानून?
वक्फ संशोधन बिल 1995 के मूल अधिनियम में बड़े बदलाव लेकर आया है। इसका लक्ष्य वक्फ बोर्डों में पारदर्शिता, संपत्तियों के दुरुपयोग पर रोक और समाज के हर वर्ग को जोड़ना है। कुछ प्रमुख बदलाव इस तरह हैं:
समावेशी प्रतिनिधित्व: वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद में अब गैर-मुस्लिम सदस्यों और महिलाओं की भागीदारी अनिवार्य होगी। यह कदम लैंगिक समानता और सामाजिक समावेश को बढ़ावा देगा।
जिला कलेक्टर की भूमिका: पहले सर्वेक्षण आयुक्त वक्फ संपत्तियों की जाँच करते थे, लेकिन अब यह जिम्मा जिला कलेक्टर को सौंपा गया है, जिससे प्रक्रिया और पारदर्शी होगी।
संपत्ति सत्यापन: बिना दस्तावेज और सत्यापन के कोई जमीन वक्फ संपत्ति घोषित नहीं होगी। यह नियम सरकारी जमीनों पर भी लागू होगा, जिससे अवैध कब्जे रुकेंगे।
न्यायिक मजबूती: वक्फ से जुड़े 31,000 से अधिक लंबित मामलों को देखते हुए ट्रिब्यूनल को सशक्त किया गया है, और उनके फैसलों को हाईकोर्ट में चुनौती दी जा सकेगी।
सरकार की उम्मीदें, विपक्ष की आशंकाएँ
सरकार का दावा है कि यह कानून वक्फ प्रशासन को जवाबदेह बनाएगा और गरीब मुस्लिम समुदाय, खासकर पासमांदा मुसलमानों को उनके हक दिलाएगा। महिलाओं को संपत्ति में बराबरी का अधिकार भी सुनिश्चित होगा। मंत्री रिजिजू ने इसे “मुस्लिम समुदाय के हित में” बताया। वहीं, विपक्ष ने इसे धार्मिक स्वतंत्रता पर हमला करार दिया। कांग्रेस, सपा, टीएमसी और AIMIM ने इसे संविधान विरोधी ठहराया और मुस्लिम अधिकारों को कमजोर करने का आरोप लगाया। AIMPLB ने इसे “वक्फ संपत्तियों के लिए खतरा” बताकर खारिज करने की मांग की।
एक नई शुरुआत?
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद यह कानून अब लागू हो चुका है। लेकिन क्या यह वक्फ बोर्डों को नई ऊँचाइयों पर ले जाएगा, या विवादों का नया दौर शुरू करेगा? इसका जवाब आने वाले दिनों में ही मिलेगा। फिलहाल, यह कानून भारत के लिए एक नया प्रयोग है, जो परंपरा और प्रगति के बीच संतुलन की कोशिश करता है। यह न सिर्फ वक्फ संपत्तियों को व्यवस्थित करेगा, बल्कि उन्हें पारदर्शिता और समावेशिता के नए युग में ले जाने का वादा भी करता है। क्या यह बदलाव उम्मीदों पर खरा उतरेगा? समय इसका गवाह बनेगा।