नई दिल्ली, 6 अप्रैल 2025, रविवार। भारतीय संसद में हाल ही में वक्फ (संशोधन) विधेयक को लेकर गरमागरम बहस और चर्चा का दौर देखने को मिला। इस विधेयक की संयुक्त संसदीय समिति (जेपीसी) के अध्यक्ष और बीजेपी सांसद जगदंबिका पाल ने इसे लेकर विपक्ष पर जमकर निशाना साधा। उनका कहना है कि अगर यह विधेयक वाकई असंवैधानिक था, तो कांग्रेस के दिग्गज नेता राहुल गांधी को संसद के पटल पर खुलकर अपनी बात रखनी चाहिए थी। पाल के मुताबिक, राहुल ने न तो कोई ठोस तर्क दिया, न ही कोई सुझाव पेश किया। इतना ही नहीं, प्रियंका गांधी और सोनिया गांधी भी इस मुद्दे पर चुप्पी साधे रहीं। पाल ने तंज कसते हुए कहा कि बिना किसी आधार के सोनिया गांधी का लोकसभा से बाहर बयान देना कतई उचित नहीं है।
अभूतपूर्व चर्चा और पारदर्शिता
जगदंबिका पाल ने इस विधेयक को आजादी के बाद का सबसे व्यापक चर्चा वाला बिल करार दिया। उन्होंने बताया कि लोकसभा में सुबह 11 बजे से रात ढाई बजे तक और राज्यसभा में सुबह से शाम 4 बजे तक इस पर गहन विचार-विमर्श हुआ। इतना ही नहीं, देश के अलग-अलग राज्यों में जाकर लोगों से सुझाव लिए गए। इस्लामिक स्कॉलर्स, रिसर्चर्स, बार काउंसिल के वकील, पूर्व जजों, ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड, जकात फाउंडेशन, मुस्लिम तंजीमों और पसमांदा समाज के साथ व्यापक चर्चा के बाद ही जेपीसी ने अपनी रिपोर्ट तैयार की। पाल ने गर्व से कहा, “पहली बार जेपीसी के सभी सदस्यों ने मिलकर 428 पेज की विस्तृत रिपोर्ट सौंपी, और सरकार ने हमारे सभी सुझावों को स्वीकार किया।”
सरकार का रुख और किरण रिजिजू की भूमिका
अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरण रिजिजू का जिक्र करते हुए पाल ने बताया कि सरकार के पास लोकसभा और राज्यसभा में बहुमत होने के बावजूद इस विधेयक को जल्दबाजी में पास नहीं किया गया। रिजिजू ने संसद में साफ कहा था कि सरकार एक पारदर्शी और सर्वसम्मति वाला कानून बनाना चाहती थी। पाल ने इस बात पर जोर दिया कि करीब 97 लाख मेमोरेंडम मिले, जिन्हें ध्यान में रखते हुए इतनी व्यापक प्रक्रिया अपनाई गई। उनके मुताबिक, आजादी के बाद किसी भी कानून को बनाने के लिए इतना बड़ा परामर्श और विचार-मंथन शायद ही कभी देखा गया हो।
मोदी युग का सबसे अहम विधेयक?
पाल ने इस विधेयक को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल का सबसे महत्वपूर्ण कदम बताया। उनके अनुसार, यह न केवल वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में पारदर्शिता लाएगा, बल्कि समाज के हर वर्ग की आवाज को सुनने का भी एक अनूठा उदाहरण है। हालांकि, विपक्ष इसे लेकर अभी भी सवाल उठा रहा है, लेकिन पाल का मानना है कि इतनी लंबी चर्चा और सहमति के बाद इसकी अहमियत को नकारा नहीं जा सकता।
तो क्या यह विधेयक वाकई भारतीय संसदीय इतिहास में एक मील का पत्थर साबित होगा, या यह विवादों का नया अध्याय शुरू करेगा? यह सवाल अभी भी हवा में तैर रहा है, लेकिन एक बात साफ है—इसने देश भर में चर्चा का एक नया दौर जरूर शुरू कर दिया है।