नई दिल्ली, 20 मई 2025, मंगलवार। सुप्रीम कोर्ट में आज वक्फ संशोधन कानून 2024 को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर एक रोमांचक और गहन सुनवाई हुई। जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस एजी मसीह की खंडपीठ के सामने यह मामला करीब चार घंटे तक चला, जिसमें याचिकाकर्ताओं ने इस कानून की खामियों को बेबाकी से उजागर किया। वरिष्ठ वकील कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने तीखी दलीलों के साथ इसे संविधान की मूल भावना के खिलाफ बताया। सुनवाई के बाद कोर्ट ने अगली तारीख तय की, जिसमें अब सरकार अपना पक्ष रखेगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता इस कानून का बचाव करेंगे। आइए, याचिकाकर्ताओं की प्रमुख दलीलों पर नजर डालते हैं, जिन्होंने इस कानून को कटघरे में खड़ा किया।
धर्म के आधार पर भेदभाव: अभिषेक मनु सिंघवी ने तर्क दिया कि वक्फ संशोधन कानून का वह प्रावधान, जो यह सिद्ध करने की मांग करता है कि कोई व्यक्ति पांच या दस साल तक इस्लाम का पालन कर रहा है, संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन करता है। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अन्य धर्मों में दान के लिए ऐसी शर्तें हैं? यह प्रावधान एक धर्म विशेष को निशाना बनाता प्रतीत होता है।
रजिस्ट्रेशन के नाम पर उत्पीड़न: सिंघवी ने कहा कि वक्फ संपत्तियों के बार-बार रजिस्ट्रेशन की प्रक्रिया एक तरह का “आतंक” पैदा करती है। इससे लोगों को बार-बार सरकारी दफ्तरों के चक्कर लगाने पड़ेंगे। साथ ही, उन्होंने सरकारी सर्वे और आंकड़ों की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए।
वक्फ बाय यूजर का खतरा: सिंघवी ने बताया कि ज्यादातर वक्फ संपत्तियां “उपयोग के आधार पर” (वक्फ बाय यूजर) वक्फ मानी जाती हैं, जिनका कोई औपचारिक रजिस्ट्रेशन नहीं होता। नए कानून में इन संपत्तियों का दर्जा आसानी से चुनौती दी जा सकती है, जिससे विवाद बढ़ने का खतरा है।
प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट पर असर: सिंघवी ने चेतावनी दी कि कानून का सेक्शन 3-डी प्राचीन स्मारकों पर लागू होने वाले कानूनों को प्रभावित कर सकता है। इससे प्लेसेज ऑफ वर्शिप एक्ट के तहत संरक्षित धार्मिक स्थल भी खतरे में पड़ सकते हैं, जो संविधान के अनुच्छेद 15 का उल्लंघन है।
धर्मनिरपेक्षता पर सवाल: राजीव धवन ने तर्क दिया कि ब्रिटिश काल में भी धार्मिक संपत्तियों की परिभाषा नहीं बदली गई। एक धर्मनिरपेक्ष देश में यह कानून सिख या अन्य धर्म के लोगों को वक्फ बनाने से रोक सकता है। इससे अदालतों के धर्मनिरपेक्ष फैसले भी प्रभावित हो सकते हैं।
पुराने फैसलों का उलटफेर: धवन ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट की संवैधानिक पीठें पहले ही वक्फ बाय यूजर के आधार पर संपत्तियों को मान्यता दे चुकी हैं, जैसे बाबरी मस्जिद मामले में। फिर इस नए कानून की क्या जरूरत है, जो स्थापित सिद्धांतों को चुनौती देता है?
एएसआई और वक्फ का दर्जा: कपिल सिब्बल ने भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआई) की वेबसाइट का हवाला देते हुए कहा कि संरक्षित स्मारकों का वक्फ का दर्जा खत्म हो जाता है। उदाहरण के तौर पर, संभल की जामा मस्जिद का जिक्र किया गया, जहां विवाद के बाद वक्फ का दर्जा खतरे में पड़ सकता है।
वक्फ पर कब्जे की मंशा: सिब्बल ने सॉलिसिटर जनरल के तीन मुद्दों पर रोक की बात को खारिज करते हुए कहा कि यह कानून वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने का एक सुनियोजित प्रयास है। इसे बिना किसी उचित प्रक्रिया के लागू किया जा रहा है।
प्रबंधन पर गैर-मुस्लिमों का नियंत्रण: सिब्बल ने बताया कि केंद्रीय वक्फ परिषद में अब 12 गैर-मुस्लिम और 10 मुस्लिम सदस्य हैं, जो पहले पूरी तरह मुस्लिम थे। सभी सदस्य अब मनोनीत हैं, जिससे वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन का अधिकार प्रभावित हो रहा है।
इस्लाम के पालन की परिभाषा पर विवाद: वकील हुजेफा अहमदी ने पांच साल तक इस्लाम के पालन की शर्त पर आपत्ति जताई। उन्होंने पूछा कि क्या कोई नमाज पढ़ने या शराब न पीने जैसे आधारों पर यह तय करेगा कि कोई व्यक्ति मुस्लिम है या नहीं? यह निजी स्वतंत्रता पर हमला है।
यह सुनवाई न केवल कानूनी दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण थी, बल्कि इसने धर्मनिरपेक्षता, संवैधानिक अधिकारों और धार्मिक स्वतंत्रता जैसे गहरे मुद्दों को भी छूआ। अब सबकी निगाहें कल की सुनवाई पर टिकी हैं, जब सरकार अपना पक्ष रखेगी। क्या यह कानून संवैधानिक कसौटी पर खरा उतरेगा, या इसे और गहन जांच का सामना करना पड़ेगा? यह देखना बाकी है।