पटना, 30 मार्च 2025, रविवार। बोधगया के पवित्र महाबोधि महाविहार को बौद्धों के पूर्ण नियंत्रण में लाने की मांग अब और तेज हो गई है। रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (आरपीआई) के राष्ट्रीय अध्यक्ष और केंद्रीय सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास आठवले ने इस मुद्दे पर अपनी आवाज बुलंद की है। हाल ही में उन्होंने पटना में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार से मुलाकात की और महाबोधि मंदिर अधिनियम 1949 को तुरंत निरस्त करने की मांग उठाई। इस मुलाकात में नीतीश कुमार ने सकारात्मक कदम उठाने का भरोसा दिलाया, जिसने इस आंदोलन को नई उम्मीद दी है।
बौद्धों की पुकार, आठवले का समर्थन
रामदास आठवले ने साफ शब्दों में कहा कि वे महाबोधि महाविहार की मुक्ति के लिए भिक्षुओं के आंदोलन का पूरा समर्थन करते हैं। उनके मुताबिक, यह मंदिर बुद्ध की विरासत का प्रतीक है और इसे बचाने के लिए देश भर से बौद्ध भिक्षु और भिक्षुणियां बोधगया पहुंच रहे हैं। आठवले ने जोर देकर कहा कि 1949 का यह अधिनियम अब समय की मांग के अनुरूप नहीं है और इसे जल्द से जल्द खत्म करना जरूरी है। वे चाहते हैं कि महाबोधि महाविहार ट्रस्ट के सभी पदों—चाहे वह अध्यक्ष हो, सचिव हो या अन्य सदस्य—पर सिर्फ बौद्ध धर्म को मानने वालों की नियुक्ति हो।
दिल्ली में प्रदर्शन की तैयारी
इस मांग को और मजबूती देने के लिए आठवले ने ऐलान किया कि जल्द ही दिल्ली में एक बड़ा प्रदर्शन किया जाएगा। उनका कहना है कि बिहार विधानसभा में इस अधिनियम को निरस्त करने की प्रक्रिया को तेज करना होगा। इस मौके पर उन्होंने आंदोलन के समर्थन में 5 लाख रुपये की तत्काल सहायता देने की भी घोषणा की, जिससे उनकी प्रतिबद्धता और गंभीरता साफ झलकती है।
बुद्ध की राह पर आठवले
रामदास आठवले ने इस अवसर पर अपनी निजी आस्था को भी सामने रखा। उन्होंने कहा कि वे खुद भगवान बुद्ध के दिखाए मार्ग पर चलते हैं और बौद्ध धर्म को दलितों के मानवाधिकारों की रक्षा का सबसे बड़ा हथियार मानते हैं। उनके मुताबिक, यह धर्म व्यक्तिगत गरिमा और समानता की नींव पर टिका है। आठवले ने भदंत नागार्जुन सुरई सुसाई के नेतृत्व में शुरू हुए इस आंदोलन की तारीफ की और कहा कि शुरुआत से ही उनकी पार्टी इसका पुरजोर समर्थन करती आ रही है।
एकजुटता का प्रदर्शन
इस मौके पर देश भर से आए बौद्ध भिक्षुओं के साथ-साथ कई गणमान्य लोग मौजूद थे। आकाश लामा जैसे सम्मानित नामों के अलावा आरपीआई के शिव मिश्रा, मुंबई के जिला अध्यक्ष विजय गुप्ता, प्रकाश जाधव और सुबोध भारत जैसे नेता भी इस संकल्प का हिस्सा बने। आठवले ने दोहराया कि उनकी पार्टी इस आंदोलन में सक्रिय रूप से शामिल है और महाबोधि महाविहार को बौद्धों के हाथों में सौंपने के अपने वादे को पूरा करके ही दम लेगी।
क्या है मसला?
महाबोधि मंदिर, जहां भगवान बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी, बौद्धों के लिए सबसे पवित्र स्थलों में से एक है। लेकिन 1949 के अधिनियम के तहत इसका प्रबंधन एक ट्रस्ट के पास है, जिसमें गैर-बौद्ध सदस्यों की मौजूदगी को लेकर लंबे समय से विवाद रहा है। बौद्ध समुदाय इसे अपनी आस्था और अधिकार का सवाल मानता है और इसे पूरी तरह अपने नियंत्रण में लेने की मांग कर रहा है।
आगे की राह
रामदास आठवले का यह कदम न सिर्फ बौद्ध समुदाय के लिए एक उम्मीद की किरण है, बल्कि यह सियासी और सामाजिक स्तर पर भी एक बड़ा संदेश देता है। अब सबकी नजरें नीतीश कुमार और बिहार विधानसभा पर टिकी हैं कि क्या यह ऐतिहासिक मांग पूरी होगी और बुद्ध की विरासत को उसका असली हक मिलेगा? यह लड़ाई अभी खत्म नहीं हुई है, बल्कि एक नए और निर्णायक दौर में प्रवेश कर चुकी है।