वासुदेव बलवंत फड़के एक ऐसी शख्सियत थे जिन्हें भारत के सशस्त्र स्वतंत्रता संग्राम का पितामह माना जाता है। उनका जन्म 4 नवंबर 1845 को हुआ था और उन्होंने महज 37 वर्ष की आयु में 17 फरवरी 1883 को अपनी आंखें मूंद लीं।
शिक्षा और प्रारंभिक जीवन
वासुदेव फड़के बॉम्बे प्रेसीडेंसी के सबसे शुरुआती ग्रेजुएट्स में से एक थे। उन्होंने लक्ष्मण नरहर इन्दापुरकर और वामन प्रभाकर भवे के साथ मिलकर पूना नेटिव इंस्टीट्यूशन (पीएनआई) की स्थापना की, जो बाद में महाराष्ट्र एजुकेशन सोसाइटी बना। इसी के जरिए पुणे के भवे स्कूल की स्थापना हुई थी और आज एमईएस महाराष्ट्र में 77 संस्थाएं चलाती है।
क्रांतिकारी गतिविधियां
वासुदेव फड़के ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ सशस्त्र विरोध करने की ठानी थी, जिसके लिए उन्होंने रामोसी, कोली, भील और डांगर समुदायों से दल जुटाया। उनकी गतिविधियों के कारण उनपर इनाम घोषित हुआ, लेकिन उन्होंने बदले में बॉम्बे के गवर्नर पर अपनी ओर से इनाम घोषित कर दिया!
गिरफ्तारी और मृत्यु
उन्हें 20 जुलाई 1879 को गिरफ्तार किया गया, लेकिन उन्होंने जेल से भागने की कोशिश की और बाद में आमरण अनशन करते हुए अपनी जान दे दी। यह आमरण अनशन गांधी के भारत लौटने से कुछ दशक पहले हुआ था।
विरासत
वासुदेव फड़के की कहानी बंकिमचंद्र की किताब “आनंदमठ” में दिखाई गई है, जिसे फिरंगियों ने बार-बार प्रतिबंधित किया था। इस किताब को पांच बार सुधार कर छपवाना पड़ा था। वासुदेव फड़के की विरासत आज भी भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के रूप में जानी जाती है।