वाराणसी, 27 मार्च 2025, गुरुवार। भारत की शौर्य गाथाओं के प्रतीक, महान राजपूत योद्धा राणा सांगा को संसद में एक सांसद द्वारा “गद्दार” कहे जाने से देशभर में आक्रोश की लहर दौड़ पड़ी है। वाराणसी में विशाल भारत संस्थान ने इस अपमान के खिलाफ मोर्चा खोलते हुए सड़कों पर उतरकर अपना विरोध दर्ज कराया। सामाजिक कार्यकर्ताओं ने राणा संग्राम सिंह को भारत का स्वाभिमान बताते हुए “राणा सांगा सम्मान मार्च” निकाला, जो सुभाष भवन से शुरू होकर मुंशी प्रेमचंद स्मृति द्वार, लमही तक पहुंचा। यह मार्च न सिर्फ एक प्रदर्शन था, बल्कि इतिहास के उस गौरव को पुनर्जनन देने का संकल्प भी था, जिसे कुछ लोग धूमिल करने की कोशिश कर रहे हैं।
इतिहास का सच: राणा सांगा का शौर्य, बाबर की कायरता
विशाल भारत संस्थान के शोध विभाग ने राणा सांगा के इतिहास को सामने लाते हुए तथ्यों की माला पिरोई। 1518 में राणा संग्राम सिंह ने दिल्ली के सुल्तान इब्राहिम लोदी को खटोली के युद्ध में धूल चटाई थी। जब राणा ने खुद इब्राहिम को परास्त कर दिया था, तो भला वह बाबर जैसे विदेशी लुटेरे को भारत पर आक्रमण के लिए क्यों आमंत्रित करते? संस्थान ने साफ किया कि राणा सांगा ने कभी बाबर से मदद नहीं मांगी। राजपूती शान और परंपरा के मुताबिक, लुटेरों से बात करना उनके सिद्धांतों के खिलाफ था। सच तो यह है कि बाबर ने अपना दूत राणा के पास भेजा था, लेकिन राणा ने उसकी मदद ठुकरा दी। बाबर को भारत में आमंत्रित करने वाले दौलत खां लोदी और आलम खां लोदी थे, न कि राणा सांगा।
खनवा के युद्ध में भी राणा का पराक्रम अडिग रहा। बाबर के सैनिक राजपूतों के सामने कांप उठे और भागने लगे। तब बाबर ने कुरान की कसम खिलाकर और “काफिर के खिलाफ जिहाद” का नारा देकर अपनी सेना को उकसाया। इस युद्ध में राणा पर धोखे से तीर चलवाया गया। जीत के बाद बाबर ने हैवानियत की सारी हदें पार कर दीं—राजपूतों के सिरों की मीनारें बनवाईं और खुद को “गाजी” की उपाधि दी, जो हिंदुओं को मारने के बाद दी जाती थी। यह थी बाबर की कायराना हरकतें, जिसे आज कुछ लोग महिमामंडित करने की कोशिश कर रहे हैं।
सड़कों पर उतरा जनाक्रोश: “महाराणा का सम्मान, हिंदुस्तान का स्वाभिमान”
प्रदर्शन में कार्यकर्ताओं ने तख्तियां थामीं, जिन पर लिखा था—”महाराणा का सम्मान, हिंदुस्तान का स्वाभिमान” और “अपमान नहीं, अब महाराणा का अपमान नहीं”। बाबर और उसके समर्थकों के पुतले फूंके गए, जिसके जरिए यह चेतावनी दी गई कि राणा के सम्मान से कोई समझौता बर्दाश्त नहीं होगा। डॉ. राजीव श्रीगुरुजी और मोहम्मद शहाबुद्दीन ने संयुक्त रूप से पुतले को आग लगाई, जो एकता और साझा संकल्प का प्रतीक बना।
संस्थान के राष्ट्रीय अध्यक्ष डॉ. राजीव ने कहा, “बाबर एक धूर्त और मक्कार लुटेरा था। उसमें योद्धा होने का कोई गुण नहीं था। इब्राहिम लोदी पर हमला करते वक्त उसे जिहाद याद नहीं आया, क्योंकि वह खुद शराब पीता था। राणा से मदद मांगने की उसकी हिम्मत को राणा ने ठुकरा दिया, तब उसने खनवा में धोखे से युद्ध लड़ा। बाबर जीतकर भी हारा, क्योंकि महाराणा का चरित्र और शौर्य आज भी हिंदुस्तान का गौरव है। एक सांसद का मुगल लुटेरे की तरफदारी करना देश से गद्दारी है।”
“बाबर का औलाद भारत छोड़ो”
मुस्लिम महिला फाउंडेशन की राष्ट्रीय अध्यक्ष नाजनीन अंसारी ने तीखे शब्दों में कहा, “यह हास्यास्पद है कि समरकंद का भिखमंगा बाबर हिंदुस्तान के महाराणा से मदद मांगेगा। वामपंथी इतिहासकारों ने बाबर को महान बनाने के लिए राणा सांगा को बदनाम करने की साजिश रची। बाबर के औलादों, अब तो भारत छोड़ो—तुम्हारा आका काबुल में दफन है।”
वहीं, राष्ट्रीय परिषद सदस्य मयंक श्रीवास्तव ने चेतावनी दी, “जिनके बाप-दादाओं ने बाबर की सेना में भर्ती होकर हिंदुस्तान के खिलाफ युद्ध लड़ा, वही आज महाराणा का विरोध कर रहे हैं।” डॉ. नजमा परवीन ने कहा, “महाराणा का अपमान हिंदुस्तान के स्वाभिमान पर हमला है। न भूलेंगे, न भूलने देंगे। मुगल समर्थकों को भारत छोड़ना होगा।”
एकजुटता का संदेश
इस प्रदर्शन में विशाल भारत संस्थान की राष्ट्रीय महासचिव डॉ. अर्चना भारतवंशी, मोहम्मद शहाबुद्दीन, सत्यम राय, अमित राजभर सहित सैकड़ों कार्यकर्ता शामिल हुए। सुनीता, गीता, प्रभावती, संजना, पूनम, ममता जैसे आम लोग भी इस आंदोलन का हिस्सा बने। यह प्रदर्शन न सिर्फ राणा सांगा के सम्मान की लड़ाई थी, बल्कि हिंदुस्तान के गौरव को फिर से स्थापित करने का संकल्प भी था।
आज वाराणसी की गलियों से उठी यह आवाज पूरे देश में गूंज रही है—राणा सांगा हमारे स्वाभिमान हैं, और उनके सम्मान से कोई समझौता नहीं होगा।