वाराणसी, 28 अप्रैल 2025, सोमवार। वाराणसी की गलियों में एक ऐसी कहानी गूंज रही है, जो पुलिस की वर्दी को दागदार कर रही है। नायक है सूर्य प्रकाश पांडे, एक दरोगा, जिसने कानून की रक्षा का जिम्मा लेते हुए उसी का मजाक बना डाला। वर्दी की आड़ में 42.50 लाख की सनसनीखेज लूट को अंजाम देने वाला यह ‘लुटेरा दरोगा’ अब जेल की सलाखों से बाहर है। गैंगस्टर केस में भी जमानत हासिल कर उसने पुलिस तंत्र की कमजोरियों का ऐसा नजारा पेश किया, जो हर किसी को हैरान कर रहा है।
वर्दी में छिपा लुटेरा
पिछले साल की बात है। हाईवे पर एक सराफा कारोबारी के कर्मचारियों को निशाना बनाकर दरोगा सूर्य प्रकाश और उसके साथियों ने ‘नकली क्राइम ब्रांच’ का ड्रामा रचा। वर्दी पहन, गाड़ी रोकी, हवाला का पैसा बताकर 42.50 लाख रुपये लूट लिए। यह कोई साधारण अपराधी नहीं, बल्कि कानून का रक्षक बनकर डकैती करने वाला पुलिसवाला था। जब जांच शुरू हुई, तो पांडे और उसके गैंग की करतूतें खुलकर सामने आईं।
कोर्ट, जमानत और सिस्टम की लापरवाही
पुलिस ने दरोगा को गिरफ्तार किया, लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं हुई। कोर्ट में पेशी के दौरान वह अपने साथियों के साथ हंसता नजर आया, मानो उसका अपराध कोई मजाक हो। शुरुआत में जज ने उसकी जमानत खारिज कर दी, लेकिन हाईकोर्ट ने उसे राहत दे दी। पुलिस ने गैंगस्टर एक्ट के तहत कार्रवाई की, मगर चार्जशीट दाखिल न होने और लचर पैरवी के चलते गैंगस्टर केस में भी दरोगा को जमानत मिल गई। नतीजा? वह अब आजाद है, पुलिस लाइन में आमद कर चुका है और अपनी बहाली के लिए जोर-शोर से कोशिश कर रहा है।
पुलिस तंत्र पर सवाल
इस पूरे मामले ने वाराणसी पुलिस की कार्यशैली को कठघरे में खड़ा कर दिया है। पूर्व में दरोगा की जमानत के बाद रामनगर थाना प्रभारी और एसीपी को हटाया गया, लेकिन असली मददगार अब भी बचे हुए हैं। पुलिस की लापरवाही और कमजोर पैरवी ने इस मामले को ठंडे बस्ते में डाल दिया। सवाल यह है कि जब कानून का रखवाला ही लुटेरा बन जाए, तो आम जनता भरोसा किस पर करे?
एक सबक, जो अनसुना रह गया
सूर्य प्रकाश पांडे की कहानी सिर्फ एक अपराध की नहीं, बल्कि सिस्टम की खामियों की है। जिस तरह से एक दरोगा ने वर्दी का दुरुपयोग किया, जेल से बाहर आया और अब दोबारा उसी तंत्र में जगह बनाने की कोशिश कर रहा है, वह पुलिस व्यवस्था की अंदरूनी कमजोरियों को बेपर्दा करता है। यह वाराणसी के लिए एक चेतावनी है कि जब तक सिस्टम में सुधार नहीं होगा, ‘लुटेरे दरोगा’ की कहानियां यूं ही गूंजती रहेंगी।
क्या यह मामला हमें जगा पाएगा, या फिर यह भी एक और भूली-बिसरी कहानी बनकर रह जाएगा? यह वक्त और वाराणसी पुलिस के कदम तय करेंगे।