वाराणसी, 15 जुलाई 2025: वाराणसी के छोटे से गांव छितौना में एक मामूली जमीन विवाद ने अब पूरे पूर्वांचल की राजनीति में आग लगा दी है। बांस की कोठी और छूट्टा पशुओं से शुरू हुई यह तकरार अब ठाकुर और राजभर समुदायों के बीच सियासी जंग का मैदान बन चुकी है। यह विवाद न केवल सामाजिक तनाव को बढ़ा रहा है, बल्कि पूर्वांचल की 36 विधानसभा सीटों पर भी इसका असर देखने को मिल सकता है।
विवाद की जड़: छोटा सा मसला, बड़ा बवाल
5 जुलाई को छितौना में आधे बिस्वा जमीन को लेकर दो परिवारों में तनातनी शुरू हुई। बात इतनी बढ़ी कि लाठी-डंडों की नौबत आ गई और मारपीट का एक वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हो गया। ग्रामीणों का कहना है कि यह मामला स्थानीय थाने में आसानी से सुलझ सकता था, लेकिन राजनीतिक हस्तक्षेप ने इसे जटिल बना दिया।
सियासत की एंट्री: ठाकुर बनाम राजभर
विवाद में मंत्री अनिल राजभर की एंट्री ने आग में घी का काम किया। उन्होंने अस्पताल में केवल अपने समुदाय के घायलों से मुलाकात की, जिससे ठाकुर पक्ष के संजय सिंह, जो स्थानीय भाजपा बूथ अध्यक्ष हैं, और उनके समर्थकों में नाराजगी भड़क उठी। संजय के पक्ष की एफआईआर शुरू में दर्ज नहीं हुई, जिसके बाद करणी सेना ने थाने का घेराव किया। दबाव में 24 घंटे बाद दूसरा पक्ष भी सुना गया, लेकिन तब तक सियासी पारा चढ़ चुका था।
भाजपा की अंदरूनी खींचतान
इस प्रकरण ने भाजपा के भीतर की गुटबाजी को भी उजागर कर दिया। एक तरफ मंत्री अपने समाज के हितों की रक्षा में जुटे दिखे, तो दूसरी तरफ पार्टी कार्यकर्ता न्याय के लिए सड़कों पर उतरे। यह तनाव पार्टी के लिए सियासी रूप से नुकसानदेह साबित हो सकता है।
सपा और सुभासपा ने भी भुनाया मौका
समाजवादी पार्टी ने इस विवाद को सरकार की नाकामी करार दिया और राजभर समुदाय से संवाद के लिए गांव पहुंची। सपा नेता राम अचल राजभर ने अनिल राजभर को समाज का सच्चा हितैषी मानने से इनकार किया। वहीं, सुभासपा के अरविंद राजभर ने डीजीपी से मिलकर निष्पक्ष जांच की मांग उठाई। दोनों पार्टियां इस मौके को अपने-अपने तरीके से भुनाने में जुट गईं।
पुलिस का एक्शन और SIT की जांच
विवाद के बढ़ने पर पुलिस कमिश्नर ने मामले की जांच के लिए विशेष जांच दल (SIT) गठित किया, जो केस संख्या 440/2025 और 445/2025 की जांच कर रहा है। चौबेपुर थानाध्यक्ष को लापरवाही के आरोप में लाइन हाजिर कर दिया गया। लेकिन ग्रामीणों का कहना है कि यह सब अब सियासत का हिस्सा बन चुका है।
गांव की पुकार: हमें अकेला छोड़ दो!
लगातार बढ़ते राजनीतिक दखल से तंग आकर छितौना के ग्रामीणों ने गांव के बाहर एक बैनर टांग दिया: “बाहरी लोगों का गांव में प्रवेश और राजनीतिक हस्तक्षेप वर्जित है।” उनका कहना है कि यह उनका आपसी मामला था, जिसे मिल-जुलकर आपस में सुलझाया जा सकता था। लेकिन अब यह विवाद गांव की सीमाओं को लांघकर लखनऊ के सियासी गलियारों तक पहुंच गया है।
पूर्वांचल की सियासत पर असर
पूर्वांचल में राजभर समाज की 36 विधानसभा सीटों पर मजबूत पकड़ है। अनिल राजभर इस विवाद को भुनाकर अपने समुदाय को भाजपा के साथ जोड़ने की कोशिश में हैं। लेकिन ठाकुर समाज के समर्थन में करणी सेना और अन्य संगठनों की सक्रियता ने इसे एक बड़े जातीय ध्रुवीकरण का रूप दे दिया है। इस घटना ने न केवल सामाजिक ताने-बाने को प्रभावित किया है, बल्कि क्षेत्र की राजनीतिक रणनीतियों को भी बदलने की ओर इशारा कर रहा है।
छितौना की चिंगारी: गांव का विवाद, सियासत का खेल, क्या टूटेगा सामाजिक मेल?
छितौना का यह विवाद एक छोटे से गांव की कहानी से शुरू होकर पूर्वांचल की सियासत को हिलाने वाला बन गया है। जहां ग्रामीण शांति और सुलह चाहते हैं, वहीं राजनीतिक दल इसे अपने हितों के लिए भुनाने में लगे हैं। क्या यह विवाद सामाजिक एकता को और कमजोर करेगा, या फिर कोई सकारात्मक समाधान निकलेगा? यह तो वक्त ही बताएगा। लेकिन फिलहाल, छितौना का यह बैनर हर किसी को एक सवाल पूछ रहा है: क्या हम सचमुच अपने गांवों को सियासत की भेंट चढ़ने देंगे?