देहरादून, 3 जून 2025, मंगलवार: उत्तराखंड के हरिद्वार में 54 करोड़ रुपये के बहुचर्चित जमीन घोटाले ने प्रशासनिक गलियारों में हड़कंप मचा दिया है। मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति को अमल में लाते हुए इस मामले में कड़ा कदम उठाया है। हरिद्वार के जिलाधिकारी (DM) कर्मेंद्र सिंह, पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी और तत्कालीन उपजिलाधिकारी (SDM) अजयवीर सिंह सहित कुल 12 अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से निलंबित कर दिया गया है। इस घोटाले की जांच अब विजिलेंस विभाग को सौंपी गई है, जो इसकी तह तक जाने की तैयारी में है।
क्या है पूरा मामला?
हरिद्वार नगर निगम द्वारा 35 बीघा कृषि भूमि की खरीद से जुड़ा यह घोटाला तब सुर्खियों में आया, जब यह सामने आया कि 15 करोड़ रुपये की अनुमानित कीमत वाली जमीन को 54 करोड़ रुपये में खरीदा गया। यह जमीन शहर के एक कूड़े के ढेर के पास स्थित है, जिसकी न तो कोई तात्कालिक उपयोगिता थी और न ही खरीद के लिए कोई ठोस आवश्यकता। जांच में पाया गया कि इस सौदे में नियमों की जमकर धज्जियां उड़ाई गईं और पारदर्शिता का अभाव रहा। भूमि खरीद की प्रक्रिया में वित्तीय अनियमितताओं और प्रशासनिक लापरवाही के गंभीर आरोप सामने आए हैं।
जांच के अनुसार, इस जमीन को गोदाम बनाने के लिए धारा 143 (उत्तर प्रदेश राजस्व संहिता) के तहत सशर्त अनुमति दी गई थी। शर्त थी कि यदि भूमि का उपयोग निर्धारित उद्देश्य से अलग किया गया, तो अनुमति स्वतः निरस्त हो जाएगी। लेकिन, आरोप है कि इस जमीन का उपयोग कूड़ा डंपिंग के लिए किया गया, जो अनुमति का स्पष्ट उल्लंघन है। इसके अलावा, जमीन को कृषि दरों पर खरीद की प्रक्रिया शुरू की गई, लेकिन अंत में इसे वाणिज्यिक दरों पर खरीदा गया, जिससे सरकार को करोड़ों रुपये की राजस्व हानि हुई।
धामी सरकार का सख्त रुख
मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने इस मामले को गंभीरता से लिया और त्वरित कार्रवाई का आदेश दिया। जांच के लिए वरिष्ठ IAS अधिकारी रणवीर सिंह चौहान को जिम्मेदारी सौंपी गई थी। चौहान ने हरिद्वार जाकर अभिलेखों की गहन जांच की, मौका मुआयना किया और संबंधित अधिकारियों के बयान दर्ज किए। उनकी रिपोर्ट में कई चौंकाने वाले खुलासे हुए, जिसमें जिलाधिकारी कर्मेंद्र सिंह की भूमिका संदिग्ध पाई गई। उन्होंने भूमि खरीद की अनुमति और प्रशासनिक स्वीकृति देने में लापरवाही बरती। पूर्व नगर आयुक्त वरुण चौधरी पर बिना उचित प्रक्रिया के प्रस्ताव पारित करने और सर्किल रेट का दुरुपयोग करने का आरोप है। वहीं, SDM अजयवीर सिंह भी इस घोटाले में शामिल पाए गए।
इसके अलावा, नगर निगम के प्रभारी सहायक नगर आयुक्त रविंद्र कुमार दयाल, प्रभारी अधिशासी अभियंता आनंद सिंह मिश्रवाण, कर एवं राजस्व अधीक्षक लक्ष्मीकांत भट्ट, अवर अभियंता दिनेश चंद्र कांडपाल, वरिष्ठ वित्त अधिकारी निकिता बिष्ट, रजिस्ट्रार कानूनगो राजेश कुमार, मुख्य प्रशासनिक अधिकारी कमलदास और वरिष्ठ व्यक्तिगत सहायक विक्की को भी निलंबित किया गया है। संपत्ति लिपिक वेदवाल का सेवा विस्तार भी समाप्त कर दिया गया है और उनके खिलाफ अनुशासनिक कार्रवाई शुरू की गई है।
मेयर की शिकायत ने खोली पोल
इस घोटाले का पर्दाफाश हरिद्वार की मेयर किरण जायसवाल की सजगता से हुआ। उन्होंने पदभार ग्रहण करते ही इस अनियमितता की लिखित शिकायत मुख्यमंत्री धामी को सौंपी थी। उनकी शिकायत के आधार पर ही मामले की गहन जांच शुरू हुई। जांच रिपोर्ट में जमीन खरीद के औचित्य पर सवाल उठाए गए और भू-उपयोग परिवर्तन से सरकारी खजाने को हुई भारी चपत को प्रशासनिक लापरवाही का गंभीर मामला माना गया।
जीरो टॉलरेंस की मिसाल
मुख्यमंत्री धामी ने इस कार्रवाई को अपनी ‘जीरो टॉलरेंस’ नीति का हिस्सा बताते हुए कहा, “चाहे कोई कितना भी वरिष्ठ अधिकारी हो, भ्रष्टाचार बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हमारा उद्देश्य प्रशासन को स्वच्छ, पारदर्शी और जनहितकारी बनाना है।” यह उत्तराखंड के प्रशासनिक इतिहास में पहली बार है कि एक साथ DM, SDM और नगर आयुक्त जैसे वरिष्ठ अधिकारियों को निलंबित किया गया है। इस कार्रवाई ने न केवल भ्रष्टाचार पर कड़ा प्रहार किया है, बल्कि यह संदेश भी दिया है कि ‘पद’ से अधिक ‘कर्तव्य और जवाबदेही’ को महत्व दिया जाएगा।