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Wednesday, March 26, 2025

उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की 109वीं जयंती: एक संगीतमय विरासत का सम्मान

वाराणसी, 21 मार्च 2025, शुक्रवार। आज 21 मार्च शुक्रवार को वाराणसी के सिगरा स्थित दरगाह फातिमा में सुबह 11 बजे एक खास मौके पर बिस्मिल्लाह खाँ फाउंडेशन द्वारा भारत रत्न स्वर्गीय उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की 109वीं जयंती मनाई गई। यह आयोजन उनके कब्र मकबरे पर आयोजित किया गया, जहाँ संगीत प्रेमियों और प्रशंसकों ने इस महान शहनाई वादक को श्रद्धांजलि अर्पित की। उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ, जिन्होंने अपनी शहनाई की मधुर धुनों से न केवल भारत बल्कि पूरी दुनिया को मंत्रमुग्ध कर दिया, का जन्म 21 मार्च 1916 को बिहार के डुमरांव में एक साधारण परिवार में हुआ था। उनकी यह संगीतमय यात्रा आज भी हर संगीत प्रेमी के दिल में बसी हुई है।
कार्यक्रम के संयोजक शकील अहमद जादूगर ने इस अवसर पर उस्ताद के जीवन और उनकी विरासत पर प्रकाश डाला। उन्होंने बताया कि उस्ताद का निधन 21 अगस्त 2006 को हुआ था और उस समय की सरकार ने उनके परिवार को यह आश्वासन दिया था कि उनके नाम पर एक संगीत अकादमी की स्थापना की जाएगी। लेकिन यह वादा आज तक अधूरा है। शकील ने भावुक होते हुए कहा, “यह बेहद दुखद है कि जिस महान कलाकार ने अपनी कला से देश का नाम रोशन किया, उनके लिए किया गया वादा आज भी पूरा नहीं हुआ।”
सरकार से अपील और एक सपना
शकील अहमद ने उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, जो वाराणसी से सांसद भी हैं, से अपील की कि वे इस अधूरे वादे को पूरा करें। उन्होंने कहा, “मैं दोनों नेताओं से गुजारिश करता हूँ कि उस्ताद के सम्मान में उनके नाम पर संगीत अकादमी की स्थापना की जाए। यह उनके जन्मदिन पर केंद्र और राज्य सरकार की ओर से एक अनमोल तोहफा होगा।” इसके साथ ही उन्होंने एक और सुझाव दिया कि वाराणसी के कैंट स्टेशन पर उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की एक भव्य प्रतिमा लगाई जाए। “यह प्रतिमा न केवल उनकी याद को जीवित रखेगी, बल्कि आने वाली पीढ़ियों को यह भी बताएगी कि यह शहर भारत रत्न उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ का शहर है।”
श्रद्धांजलि और सम्मान
इस आयोजन में प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अजय राय के बेटे शांतनु राय ने अपने पिता की ओर से उस्ताद की कब्र पर फूल चढ़ाए। यह क्षण न केवल भावुक था, बल्कि यह भी दर्शाता है कि उस्ताद की कला और व्यक्तित्व का सम्मान आज भी समाज के हर वर्ग में बरकरार है। उनकी शहनाई की धुनें, जो कभी गंगा के घाटों पर गूंजती थीं, आज भी वाराणसी की फिजाओं में एक आध्यात्मिक संगीत की तरह महसूस की जा सकती हैं।
उस्ताद की विरासत
उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने शहनाई को एक नई पहचान दी। एक ऐसा वाद्य यंत्र, जो पहले केवल मांगलिक अवसरों तक सीमित था, उसे उन्होंने शास्त्रीय संगीत के मंच पर लाकर विश्व पटल पर सम्मान दिलाया। उनकी सादगी और संगीत के प्रति समर्पण आज भी एक मिसाल है। वाराणसी से उनका गहरा नाता था, और वे अक्सर कहा करते थे कि उनकी शहनाई की आत्मा गंगा और बनारस की गलियों में बसती है।
एक अधूरी उम्मीद
उस्ताद की जयंती पर यह आयोजन न केवल उनकी यादों को ताजा करता है, बल्कि यह सवाल भी उठाता है कि क्या हम वास्तव में अपने नायकों को वह सम्मान दे पा रहे हैं, जो वे हकदार हैं? संगीत अकादमी और उनकी प्रतिमा की मांग केवल एक मांग नहीं, बल्कि उस वादे की याद दिलाती है जो उनके परिवार और प्रशंसकों से किया गया था।
आज जब हम उनकी 109वीं जयंती मना रहे हैं, यह समय है कि उनकी विरासत को नई पीढ़ी तक पहुँचाने के लिए ठोस कदम उठाए जाएँ। उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ सिर्फ एक संगीतकार नहीं थे, वे एक संस्कृति, एक भावना और एक जीवंत इतिहास थे। उनकी शहनाई की गूंज को हमेशा जीवित रखने के लिए यह हम सबकी जिम्मेदारी है। क्या सरकार उनकी इस जयंती पर कोई बड़ा ऐलान करेगी? यह देखना अभी बाकी है, लेकिन उनकी यादें और उनका संगीत हमेशा हमारे बीच रहेंगे।

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