यूपीपीएससी भर्ती घोटाला: सीबीआई ने उजागर की धांधली, फर्जी प्रमाणपत्रों से चयन

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लखनऊ, 1 सितंबर 2025: उत्तर प्रदेश लोकसेवा आयोग (यूपीपीएससी) की अपर निजी सचिव (एपीएस) भर्ती 2010 में बड़े पैमाने पर अनियमितताओं का खुलासा हुआ है। सीबीआई की जांच में सामने आया है कि फर्जी और अमान्य प्रमाणपत्रों के आधार पर अभ्यर्थियों का चयन किया गया, साथ ही विकलांग और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोटे के हकदारों को दरकिनार कर चहेतों को नियुक्ति दी गई।

सीबीआई ने हाईकोर्ट में पेश दस्तावेजों में आयोग के तीन अधिकारियों पर जांच की अनुमति मांगी थी, जिन्होंने नोटिस को कोर्ट में चुनौती दी। सीबीआई मुख्यालय, नई दिल्ली द्वारा 23 अगस्त 2021 को यूपीपीएससी अध्यक्ष को भेजे गए पत्र में कई गंभीर अनियमितताएं उजागर हुई हैं। इसमें हिंदी आशुलेखन में 5 से 8 प्रतिशत त्रुटि वाले अभ्यर्थियों को पास करना, सत्य प्रकाश जायसवाल और राज कुमार के लिए तय तिथि के बाद नियम-विरुद्ध तरीके से कंप्यूटर प्रमाणपत्र स्वीकार करना शामिल है।

जांच में पाया गया कि चयनित अभ्यर्थी विपिन कुमार, अभिषेक अवस्थी, मोनिका चौधरी और शिवी त्रिपाठी के कंप्यूटर प्रमाणपत्र फर्जी हैं। मृदुला भट्ट, प्रमोद कुमार, अभिलाषा सिंह और आलोक कुमार के चयन भी अमान्य प्रमाणपत्रों पर आधारित थे, जिन्हें बाद में हाईकोर्ट के आदेश पर रद्द करना पड़ा। आयोग के अधिकारियों की भूमिका संदिग्ध पाई गई है।

इसके अलावा, प्रभात यादव, श्याम शुक्ला और संजीत गौतम जैसे विकलांग और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी कोटे के अभ्यर्थियों की श्रेणी बदलकर कम अंक वाले अभ्यर्थियों को चयनित किया गया। हिंदी आशुलेखन और टाइपिंग की उत्तर पुस्तिकाओं के मूल्यांकन में अंकों की हेराफेरी कर कई अभ्यर्थियों को पास या फेल किया गया।

प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के मीडिया प्रभारी प्रशांत पांडेय ने कहा, “सीबीआई के खुलासे से भर्तियों में व्यापक भ्रष्टाचार सामने आया है। ऐसी सैकड़ों भर्तियों में गड़बड़ी हुई है। सरकार से मांग है कि समयबद्ध जांच पूरी कर दोषियों को सजा दी जाए, ताकि लाखों छात्रों को न्याय मिले।”

सीबीआई की जांच और हाईकोर्ट में चल रही सुनवाई से इस मामले में और खुलासे की उम्मीद है।

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