संतकबीरनगर/बस्ती, 23 जून 2025: उत्तर प्रदेश का एक गांव ऐसा भी है, जो दो जिलों की सीमा में बंटा हुआ है। नाम है भरवलिया उर्फ टिकुईया। तहसील संतकबीरनगर का धनघटा, लेकिन ब्लॉक बस्ती जिले का कुदरहा। इस प्रशासनिक चूक का खामियाजा 900 की आबादी वाला यह गांव 28 साल से भुगत रहा है।
विकास की रोशनी से कोसों दूर
1997 में संतकबीरनगर को जिला बनाते वक्त राजस्व विभाग की गलती से यह गांव धनघटा तहसील में दर्ज हो गया, जबकि यह बस्ती जिले के कुदरहा विकासखंड में पड़ता है। नतीजा? गांव के लोग आज भी ढिबरी युग में जी रहे हैं। बिजली, पक्का मकान, शौचालय, और पेयजल जैसी बुनियादी सुविधाएं यहाँ के लोगों के लिए सपना बनी हुई हैं। 70 परिवार झोपड़ियों में गुजर-बसर करने को मजबूर हैं, जबकि प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री आवास योजना से ज्यादातर गांव संतृप्त हो चुके हैं। हैंडपंप ही यहाँ प्यास बुझाने का एकमात्र सहारा है।
चुनाव में दो जिले, वोटरों की दुविधा
चुनाव आते ही इस गांव के मतदाता चर्चा में आते हैं। पंचायत चुनाव में बस्ती जिले के मतदान केंद्र पर वोट डालते हैं, लेकिन विधानसभा और लोकसभा चुनाव में संतकबीरनगर के वोटर बन जाते हैं। निवास, जाति, और आय प्रमाण पत्र धनघटा तहसील से बनते हैं, पुलिस स्टेशन भी वही है, लेकिन विकास कार्य कुदरहा ब्लॉक के अधीन। यह दोहरी व्यवस्था ग्रामीणों के लिए मुसीबत बनी हुई है।
नौकरी के सपने टूटे, सम्मान की जंग
गांव के पूर्व प्रधान पति संतराम, श्याम सुंदर, और अन्य ग्रामीणों का दर्द छलकता है। आधार कार्ड बस्ती जिले का, लेकिन बाकी प्रमाण पत्र संतकबीरनगर के। इस दोहरे दस्तावेज के चलते गांव के युवा सरकारी नौकरियों से वंचित हो रहे हैं। रोहित राजभर जैसे कई युवा सेना भर्ती में इसी वजह से खारिज हुए। ग्रामीण जनप्रतिनिधियों और अधिकारियों के दरवाजे खटखटा चुके हैं, लेकिन हर बार आश्वासन के सिवा कुछ नहीं मिला।
स्कूल तक का रास्ता मुश्किल
गांव में प्राथमिक स्कूल है, लेकिन वह भी बस्ती जिले के अधीन संचालित होता है। बच्चियों को पढ़ने के लिए पगडंडियों से होकर स्कूल जाना पड़ता है। बिजली न होने से रातें अंधेरे में डूब जाती हैं। ग्रामीणों का कहना है, “हम सिर्फ सम्मान के साथ जीना चाहते हैं, लेकिन हमें मूलभूत सुविधाएं भी नसीब नहीं।”
अधिकारियों का वादा, कितना होगा अमल?
संतकबीरनगर के जिलाधिकारी आलोक कुमार ने कहा, “यह कैसे हो गया कि गांव एक जिले की तहसील और दूसरे जिले के ब्लॉक में है? मैं सीडीओ और एसडीएम से बात कर इस विसंगति को दूर करने की कोशिश करूंगा।” वहीं, बस्ती मंडल के आयुक्त अखिलेश सिंह ने भी इस मामले की जांच का भरोसा दिया। उन्होंने कहा, “दोनों जिलों के डीएम से बात कर इस समस्या का समाधान कराया जाएगा।”
आगे क्या?
28 साल की उपेक्षा के बाद क्या भरवलिया उर्फ टिकुईया के लोगों को विकास की मुख्य धारा में जगह मिलेगी? या यह गांव प्रशासनिक फाइलों में उलझा रह जाएगा? ग्रामीणों की उम्मीदें अब अधिकारियों के वादों पर टिकी हैं।