वाराणसी, 20 अक्टूबर 2024, रविवार। कार्तिक महीना श्री हरि यानी भगवान विष्णु का अत्यंत प्रिय महीना है इसीलिए माता लक्ष्मी को भी ये अत्यंत प्रिय है। इसी महीने में भगवान विष्णु योग निद्रा से भी जग जाते हैं जिससे सृष्टि में आनंद और कृपा की वर्षा होती है। साथ ही शुभ और मंगल कार्य शुरू हो जाते हैं। काशी नगरी को मोक्ष प्राप्ति का द्वार माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह नगरी भगवान शिव के त्रिशूल की नोक पर विराजमान है। पुराणों के अनुसार काशी नगरी पहले भगवान विष्णु की पुरी हुआ करती थी। परन्तु भगवान शिव ने विष्णु जी से यह अपने निवास के लिए मांग लिया था। तो वहीं, भगवान विष्णु को समर्पित कार्तिक मास में काशीवासी उनके स्वरूप वेणीमाधव के मलाई श्रृंगार का दर्शन कर रहे हैं। कार्तिक मास अर्थात विष्णुमास में भोर में पंचगंगा घाट पर भगवान बिंदुमाधव मंदिर में मंगला आरती से दिन की शुरूआत हो रही है। इसके बाद भोर में पांच बजे मक्खन आरती, श्रृंगार आरती और पंचामृत स्नान में शामिल होकर भक्त पुण्य के भागी बन रहे हैं।
भगवान कृष्ण को पसंद है दूध, मक्खन और मलाई
परिधानों की बात चलती है तो सूती से लेकर रेशमी परिधान जेहन में कौंध जाते हैं। राजा- महाराजा सोने-चांदी के परिधान भी धारण करते थे। वहीं, काशी में पंचगंगा घाट के निकट विराजमान भगवान वेणीमाधव पूरे कार्तिक महीने मलाई का वस्त्र धारण करते हैं। बता दें, देश के पंचमाधव में से एक बिंदुमाधव काशी के पंचनद तीर्थ पर विराजमान हैं। कार्तिक मास में श्रद्धालु भगवान के मलाई श्रृंगार का दर्शन कर रहे हैं। भगवान कृष्ण को दूध, मक्खन और मलाई बहुत पसंद थी, लिहाजा कार्तिक मास पर्यंत भगवान बिंदु माधव का मलाई से ही परिधान तैयार किया जा रहा है।
मोहल्ले के श्रद्धालु घरों से लाते हैं मलाई
भगवान का परिधान बनाने के लिए मलाई उसी मोहल्ले के लोगों के घरों में तैयार की जाती है। ब्रह्म मुहूर्त में मंदिर खुलने से पहले ही पास पड़ोस के भक्त अपनी-अपनी थाली लेकर मंदिर के द्वार पर खड़े हो जाते हैं और वासुदेव… वासुदेव… पुकारते हैं। किसकी थाली अंदर जाएगी, किसकी बाहर से लौटा दी जाएगी, यह किसी को नहीं पता होता। मंदिर के अंदर से पुजारी आते हैं। वह किसी का चेहरा नहीं देखते। उनकी दृष्टि थाली पर होती है। आवश्यकतानुसार थालियां लेकर वह अंदर चले जाते हैं। पुजारी जिसकी थाली उठा लेते हैं वह खुद को धन्य समझता है और जिसकी थाली बच जाती है वह दूसरे दिन फिर से पहुंचता है।
मेवे से बनाया जाता है मुकुट
वेणीमाधव को मलाई का वस्त्र धारण कराते समय भगवान विठ्ठल का यशगान किया जाता है। इसके बाद केसर, बादाम, काजू, पिस्ता, अखरोट आदि मेवों से देव विग्रह के मुकुट तैयार होते हैं। मुकुट धारण कराते समय वेणीमाधव की स्तुति की जाती है। शृंगार के बाद भगवान का मलाई और पंचमेवा के मुकुट से सजे स्वरूप की आरती उतारी जाती है। मंदिर के पुजारी ने बताया कि भगवान के वस्त्र तैयार करने के दौरान डेढ़ घंटे का विशेष पूजन किया जाता है। आरती के दौरान मंदिर के अंदर मलाई काटकर भगवान का परिधान तैयार किया जाता है और मलाई का वस्त्र और पंचमेवा का मुकुट धारण कराते समय पांचवीं आरती होती है।
एकादशी पर शेषशायी श्रृंगार, चतुर्दशी पर होगा हरिहर श्रृंगार
मंदिर के प्रधान पुजारी आचार्य मुरलीधर गणेश पटवर्धन ने बताया कि श्रृंगार आरती का भव्य आयोजन एक मास तक शरद पूर्णिमा से कार्तिक पूर्णिमा तक होता है। रोजाना विविध श्रृंगार के साथ देवोत्थानी एकादशी को भगवान बिंदुमाधव का शेषशायी श्रृंगार होता है। भगवान चातुर्मास के बाद द्वादशी को उठते हैं। द्वादशी को तुलसी विवाह के साथ घोड़े पर, त्रयोदशी को झूले पर श्रृंगार एवं बैकुंठ चतुर्दशी को हरिहर श्रृंगार होता है। पूर्णिमा को भगवान का पंचामृत स्नान दोपहर 12 बजे होता है। हाथी पर श्रृंगार के साथ छप्पन भोग अन्नकूट का भोग लगता है। शाम को छह बजे भगवान के उत्सव विग्रह को पालकी पर बैठाकर शहर में भ्रमण कराया जाता है।