✍️ विकास यादव
छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में अगहन माह के गुरुवार को लक्ष्मी जी की पूजा का विशेष महत्व है। इस दिन महिलाएं अगहन बृहस्पति व्रत रखती हैं और लक्ष्मी जी की पूजा करती हैं। इस व्रत में महिलाएं घर को साफ करके लक्ष्मी जी के पद चिन्ह बनाती हैं और विशेष रूप से माता लक्ष्मी की पूजा करती हैं। अगहन गुरुवार में सीता चौक बनाने का विशेष महत्व है। यह अल्पना से मनाया जाता है और रात्रि को जूठे बर्तन साफ कर रखा जाता है।
बुधवार को रात में सोने से पहले पूजा कक्ष व मुख्य दरवाजे के बाहर दीपक जलाया जाता है। प्रथम गुरुवार के दिन पूजा कक्ष में धान का चौक बनाकर पाटा रखकर आसन पर माता लक्ष्मी की मूर्ति स्थापित की जाती है। साथ ही चढ़ाने के लिए रखिया, आंवला की टहनी, नया धान, चावल व मिष्ठान चढ़ाया जाता हैं। इस व्रत में व्रति महिलाओं को घर में झाडू लगाना, पैसे खर्च करना, बाल धोना, नाखून काटना, अन्न बिखरना, सूप का उपयोग करना वर्जित होता है।
हिंदू मान्यता के अनुसार अगहन मास के गुरुवार को लक्ष्मी और विष्णु की पूजा करने से घर में समृद्धि और खुशहाली आती है। इस दिन महिलाएं सुबह शुभ मुहूर्त में हल्दी और आंवले का उबटन लगाकर स्नान करती हैं और पूजा-अर्चना में भाग लेती हैं। इस दौरान घर-आंगन को सुंदर चौक, दीपों और पुष्पों से सजाया जाता है। लक्ष्मी और विष्णु की मूर्तियों की स्थापना कर विशेष धूप, दीप, और आंवला पत्तों के साथ पूजा की जाती है। पूजा के बाद खीर, पूड़ी, और अन्य पारंपरिक व्यंजन भोग के रूप में अर्पित किए जाते हैं।
वहीं अंतिम गुरुवार को पूजा की सारी सामग्री तालाब में विसर्जित कर दिया जाता है। साथ ही लक्ष्मी जी पर चढ़े हुए सामग्री को घर के लोगों द्वारा उपयोग किया जाता है। छत्तीसगढ़ की लता दास ने बताया, अगहन मास के हर गुरुवार पूजा में जो भोग लगाया जाता उस प्रसाद को घर के बाहर नहीं बांटा जाता, क्योंकि मान्यता है कि ऐसा करने से मां लक्ष्मी नाराज हो सकती हैं। पूजा के बाद परिवार के सदस्य एक साथ प्रसाद ग्रहण करते हैं।
ग्रामीण अंचल में विशेष रूप से नए चावल से बने पकवान, जैसे फरा और पूड़ी, भोग में शामिल होते हैं। वहीं शहर के लोग खीर-पूड़ी और अन्य मिठाइयों का भोग लगाते हैं। यह पर्व घर में समृद्धि और खुशहाली लाने के लिए मनाया जाता है। इस व्रत में यह मान्यता है कि महालक्ष्मी जी का व्रत रखकर कामना करने से घर में सुख शांति समृद्धि धन-धन्य वैभव बना रहता है। यह व्रत छत्तीसगढ़ की लोक संस्कृति में विशेष महत्व रखता है।