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Wednesday, January 8, 2025

सियाचिन ग्लेशियर की अनोखी कहानी: नायब सूबेदार बन्ना सिंह की बहादुरी और साहस का परिचय

नई दिल्ली, 6 जनवरी 2025, सोमवार। सियाचिन ग्लेशियर दुनिया की सबसे ऊंची, सबसे ठंडी और सबसे महंगी युद्धभूमि है। यहाँ का मौसम इतना विषम है कि यहाँ रहने वाले सैनिकों को कई स्वास्थ्य समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके बावजूद, सियाचिन का सामरिक महत्व इतना अधिक है कि भारत और पाकिस्तान दोनों ही इस क्षेत्र पर नियंत्रण करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। सियाचिन ग्लेशियर का नाम बल्टी भाषा से लिया गया है, जिसका अर्थ है “गुलाबों की भरमार”। यह ग्लेशियर काराकोरम श्रृंखला में स्थित है और इसकी लंबाई लगभग 70 किलोमीटर है।
सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच कई युद्ध हुए हैं। 1984 में, भारत ने ऑपरेशन मेघदूत का शुभारंभ किया, जिसमें भारतीय सैनिकों ने सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण कर लिया। इसके बाद, पाकिस्तान ने कई बार इस क्षेत्र पर हमला किया, लेकिन भारतीय सैनिकों ने सफलतापूर्वक उन्हें रोक दिया। सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण के लिए भारत और पाकिस्तान के बीच कई वर्षों से संघर्ष चल रहा है। इस संघर्ष में दोनों देशों के सैनिकों ने अपनी जान गंवाई है। लेकिन भारतीय सैनिकों ने अपनी बहादुरी और साहस का परिचय देते हुए सियाचिन ग्लेशियर पर नियंत्रण बनाए रखा है।
एक प्रसिद्ध घटना में, नायब सूबेदार बन्ना सिंह ने अपनी टुकड़ी के साथ मिलकर पाकिस्तानी सैनिकों को हराया और सियाचिन ग्लेशियर की सबसे ऊंची चोटी पर भारत का ध्वज फहराया। इस घटना के बाद, उस चोटी का नाम “बन्ना टॉप” रखा गया। बन्ना सिंह को उनकी बहादुरी के लिए परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया। बात 1987 की है, पाकिस्तान ने सियाचिन में सबसे ऊंची चोटी पर कब्जा कर लिया। उस चोटी पर चौकी बनाकर भारतीय गतिविधि पर पैनी नजर रख रहा था और भारत कुछ नहीं कर सकता था। समुद्र तल से 21,000 फीट की ऊंचाई पर बनी और 1500 फीट की एकदम खड़ी बर्फ की दीवार से घिरी हुई वह चौकी एक अभेद्य किले से कम नहीं थी। वहीं पाकिस्तानी सेना उसी चौकी से भारत के सैनिकों पर सरलता से गोलीबारी कर रही थी। ऐसे ही एक दुस्साहस में भारत के एक रेकी दल के 9 सैनिक मारे गए और 3 घायल हुए। पर खड़ी दीवार पर चढ़कर चौकी पर विजय प्राप्त करना असंभव था।
अजेय लाभ। सेना में कई बार ऐसे मौके आते हैं जब असंभव को यथार्थ बनाना ही एकमात्र विकल्प होता है। और इस बार भी ऐसा ही दायित्व हमारे सैनिकों को सौंपा गया। नायब सूबेदार बन्ना सिंह एक छोटी सी टुकड़ी लेकर उस चौकी तक पहुंचने का प्रयास करने लगे। जिस तरफ से वे चढ़ रहे थे वह 90 डिग्री की खड़ी बर्फीली चट्टान थी। साथ ही बर्फीला तूफान भी जोरों पर था। पाकिस्तानी चौकी में सब आश्वस्त बैठे थे कि उस ओर से हमला असंभव था। मगर बन्ना सिंह ने अपने साथियों के मनोबल को बढ़ाया और उस चढ़ाई के एक एक असंभव फीट पर विजय प्राप्त करते गए।
अंततः वे चढ़ाई पूरी कर चुके थे और चौकी सामने थी। अपनी थकान को भूलते हुए बन्ना सिंह अपने साथियों के साथ अपने लक्ष्य पर टूट पड़े। सामने से हो रही गोलीबारी की चिंता न करते हुए ग्रेनेड से हमला कर दिया। चौकी में बम फेंककर दरवाजा बंद कर दिया और बेयोनेट से ही कई पाकिस्तानी सैनिकों का काल बन गए। एक असंभव विजय प्राप्त हुई और उस चोटी पर भारत का ध्वज फहर गया। उनके इस अविश्वसनीय सफलता के सम्मान में उस चोटी का नाम ‘बन्ना टॉप’ रख दिया गया। ऐसी विषम परिस्थितियों में अदम्य साहस के लिए उन्हें परमवीर चक्र से अलंकृत किया गया।

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