प्रयागराज, 24 दिसंबर 2024, मंगलवार। महाकुंभ का आयोजन आस्था और अध्यात्म की नगरी प्रयागराज में हो रहा है। यहां संगम में साधु संतों के अखाड़े लगे हुए हैं, जहां भंडारे का आयोजन किया जा रहा है। इन अखाड़ों में साधु संतों की बोलचाल और रहन-सहन में पुराना इतिहास छिपा हुआ है।
इन अखाड़ों में लगने वाले भंडारे में लंका की चटनी और सब्जियों में रामरस का स्वाद मिलाया जा रहा है। यहां की रसोई को सीता की रसोई कहा जाता है, जहां रखी हर समग्री के अजीबो गरीब नाम हैं। मिर्च को लंका कहते हैं, हल्दी पाउडर को रंगबदल, और नमक को रामरस कहते हैं।
यहां के साधु संतों की असली पहचान रामनाम से होती है। उनके मन में राम के सिवाय कुछ नहीं होता। इसलिए यहां की रसोई में रामनाम होता है, जिससे अन्नक्षेत्र में कमी नहीं होती और भंडार बढ़ता रहता है।
इन अखाड़ों में आने वाले साधु संतों की बोलचाल और शब्दावली को समझना सबके बस की बात नहीं है। उनकी दैनिक दिनचर्या और आम बोलचाल भी अजीब हो जाती है। लेकिन यहां की आस्था और अध्यात्म की भावना को समझने से यह पता चलता है कि यहां के साधु संतों के लिए रामनाम ही सब कुछ है।