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काशी में अनोखी पहल: गोबर से जलेंगी चिताएं, पर्यावरण को मिलेगी राहत!

वाराणसी, 31 दिसंबर 2024, मंगलवार। काशी में एक अनोखी पहल शुरू हुई है, जहां मणिकर्णिका और हरिश्चंद्र घाट पर जलने वाली चिताओं में लकड़ियों के साथ-साथ गो काष्ठ यानी गोबर से तैयार लकड़ी का भी उपयोग किया जाएगा। यह पहल न केवल पर्यावरण में सुधार करेगी, बल्कि स्वच्छ भारत मिशन के अभियान को भी बढ़ावा मिलेगा। बता दें, काशी में सौ से ज्यादा चिताएं प्रतिदिन जलती हैं, जिनमें प्रत्येक चिता के लिए लगभग 300 किलो लकड़ी की आवश्यकता होती है। इससे लगभग 30 हजार किलो लकड़ी का उपयोग प्रतिदिन होता है। गोबर से तैयार लकड़ी का उपयोग करने से न केवल लकड़ी की बचत होगी, बल्कि गाय के गोबर का भी सही उपयोग होगा। वाराणसी नगर निगम ने इस पहल के लिए दो प्रमुख गो शाला छितौनी और शहंशाहपुर में स्थापित की हैं। इसके अलावा, बाबतपुर में एनजीओ की मदद से एक गोशाला संचालित की जा रही है। शहर में एक कांजी हाउस भी है, जहां लगभग 13 सौ गो वंश हैं।
गोबर से बनी लकड़ी: वाराणसी की अनोखी पहल, पर्यावरण को मिलेगी राहत!
वाराणसी जिले में गो शालाओं की संख्या काफी अधिक है, जिनमें से प्रतिदिन बड़ी मात्रा में गोबर निकलता है। एक गाय दिनभर में लगभग 10 से 12 किलो गोबर करती है, और नगर निगम के पास 13 सौ गो वंश होने के कारण लगभग 13 हजार किलो गोबर प्रतिदिन निकलता है। गो शालाओं में स्वच्छता बनाए रखना बहुत जरूरी है, लेकिन इतनी बड़ी मात्रा में गोबर का निस्तारण एक बड़ी चुनौती है। लेकिन अब गोबर से बनी लकड़ी का उपयोग शवदाह में किया जाएगा, जिससे इस समस्या का समाधान हो सकता है। इससे गाय के गोबर का सही उपयोग भी होगा और पर्यावरण भी संरक्षित होगा।
गोबर से लकड़ी: वाराणसी नगर निगम की पर्यावरण अनुकूल पहल!
नगर निगम की कार्यकारिणी समिति के सदस्य रामासरे मौर्य ने इस मुद्दे को सदन की बैठक में उठाया था, जिसे सदन ने मंजूरी देते हुए नगर आयुक्त को गोबर से लकड़ी तैयार करने वाली मशीनों को मंगाने का निर्देश दिया है। अब नगर निगम वाराणसी की इस अनोखी पहल शुरू करने से गो वंश के गोबर से लकड़ियां तैयार की जाएंगी और उन्हें श्मशान में उपयोग लाया जाएगा। नगर निगम की गो शालाओं में प्रतिदिन हजारों किलो गोबर व्यर्थ चला जाता है, लेकिन अब इसे मशीन के जरिए लकड़ियों में बदला जाएगा। इस पहल से न केवल पर्यावरण शुद्ध रहेगा, बल्कि पेड़ों की कटाई में भी कमी आएगी। नगर निगम को श्मशान घाट पर अलाव जलाने और अंतिम संस्कार के लिए लकड़ी की व्यवस्था करनी पड़ती है, जिसे अब गोबर से तैयार लकड़ियों से पूरा किया जाएगा।
गोबर से अलाव: वाराणसी नगर निगम की पर्यावरण अनुकूल और महिला सशक्तिकरण पहल!
नगर निगम ने ठंड के मौसम में एक अनोखी पहल शुरू की है, जिसमें स्वयंसेवी संस्थाओं से जुड़ी महिलाओं की मदद से गोबर के उपले और कंडे बनाए जा रहे हैं। इन गोबर के कंडों का उपयोग सार्वजनिक स्थानों पर अलाव जलाने के लिए किया जा रहा है। इस पहल से न केवल लकड़ी की बचत हो रही है, बल्कि पर्यावरण भी शुद्ध रहेगा। नगर निगम के जन संपर्क अधिकारी संदीप श्रीवास्तव ने बताया कि यह पहल न केवल पर्यावरण के अनुकूल है, बल्कि स्थानीय महिलाओं को भी रोजगार के अवसर प्रदान कर रही है।
वाराणसी में गो वंश के प्रति जागरूकता का एक बड़ा कदम: कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांट की स्थापना!
वाराणसी में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आगमन के बाद से गो वंश के प्रति बढ़ी जागरूकता के परिणामस्वरूप चार वर्ष पूर्व शहंशाहपुर में उत्तर प्रदेश का पहला कंप्रेस्ड बायोगैस प्लांट स्थापित किया गया। इस प्लांट की स्थापना में लगभग 23 करोड़ रुपये की लागत आई है, और यह प्रतिदिन 1100 किलो बायो गैस का उत्पादन करने में सक्षम है। उत्तर प्रदेश सरकार ने वाराणसी, अयोध्या, और गोरखपुर में 2200 से अधिक घरेलू बायोगैस संयंत्र स्थापित करने की पहल की है। यह परियोजना न केवल पर्यावरण संरक्षण में मदद करेगी, बल्कि स्थानीय लोगों को भी रोजगार के अवसर प्रदान करेगी।

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