मुंबई, 28 अप्रैल 2025, सोमवार। महाराष्ट्र की सियासी जमीन पर एक बार फिर ठाकरे बंधुओं की सुलह की सुगबुगाहट तेज हो रही है। उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई राज ठाकरे के बीच लगभग दो दशक पुरानी दूरी खत्म होने की अटकलें जोर पकड़ रही हैं। दोनों के हालिया बयानों से लगता है कि वे छोटे-मोटे मतभेद भुलाकर मराठी अस्मिता और महाराष्ट्र के हितों के लिए एकजुट होने को तैयार हैं। लेकिन क्या यह राह इतनी आसान है? दोनों नेताओं के अलग-अलग मिजाज, पुरानी कड़वाहट और संगठनात्मक जटिलताएं इस सुलह को एक पहेली बना रही हैं।
‘एकजुटता का सपना, हकीकत की चुनौतियां’
शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) और महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के कार्यकर्ताओं में सुलह की खबरों से उत्साह तो है, लेकिन सतह के नीचे कई सवाल बेचैन कर रहे हैं। उद्धव ने कहा है कि वह मामूली झगड़ों को पीछे छोड़कर आगे बढ़ सकते हैं, बशर्ते राज्य के हितों से समझौता न हो। दूसरी ओर, राज ठाकरे का कहना है कि मराठी मानुष के लिए एकजुट होना कोई मुश्किल काम नहीं। लेकिन दोनों नेताओं की यह बात जितनी प्रेरक सुनाई देती है, जमीन पर उतारना उतना ही दुरूह है।
शिवसेना (यूबीटी) ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट साझा की, जिसमें बिना किसी का नाम लिए मुंबई और महाराष्ट्र के लिए एकजुट होने की बात कही गई। यह संदेश सियासी हलकों में चर्चा का विषय बन गया। दोनों नेता इस समय विदेश में हैं—राज अप्रैल के अंत में और उद्धव मई के पहले हफ्ते में लौटने वाले हैं। ऐसे में सुलह की यह चर्चा तब और अहम हो जाती है, जब दोनों पार्टियां अपने सबसे मुश्किल दौर से गुजर रही हैं। 2024 के विधानसभा चुनावों में शिवसेना (यूबीटी) ने महज 20 सीटें जीतीं, जबकि मनसे का खाता भी नहीं खुला।
अलग मिजाज, पुरानी कड़वाहट
उद्धव और राज का रिश्ता सिर्फ सियासी नहीं, पारिवारिक भी है। लेकिन 2005 में राज के शिवसेना छोड़ने के बाद दोनों के बीच अविश्वास की खाई गहरी हो गई। राज ने इसके लिए उद्धव को जिम्मेदार ठहराया और साफ कहा कि वह बाल ठाकरे को छोड़कर किसी और के नेतृत्व में काम नहीं कर सकते। यह पुरानी टीस आज भी दोनों के रिश्ते में कांटे की तरह चुभती है।
शिवसेना (यूबीटी) के एक नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, “दोनों चचेरे भाइयों का स्वभाव बिल्कुल अलग है। दो दशकों से ज्यादा की दूरी ने उनके बीच एक दीवार खड़ी कर दी है।” वहीं, मनसे के एक नेता ने सवाल उठाया कि अगर दोनों एकजुट होते हैं, तो सीट बंटवारे का क्या होगा? दादर और वर्ली जैसे इलाकों में, जहां दोनों पार्टियों का मजबूत आधार है, कौन पीछे हटेगा?
परिवार और संगठन की जटिल गणित
यह सुलह सिर्फ उद्धव और राज तक सीमित नहीं है। इसमें उनके बेटों—आदित्य ठाकरे और अमित ठाकरे—की भूमिका भी अहम होगी, जिन्हें भविष्य में संगठन की कमान संभालनी है। शिवसेना (यूबीटी) के सांसद संजय राउत ने हाल ही में कहा, “राजनीति भले रिश्तों को तोड़ दे, लेकिन परिवार का बंधन नहीं टूटता।” लेकिन क्या यह बंधन इतना मजबूत है कि दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं और नेताओं के बीच की तल्खी को खत्म कर सके?
मनसे के एक वरिष्ठ नेता ने कहा, “कार्यकर्ताओं का एक वर्ग इस एकजुटता से खुश नहीं होगा। दोनों पार्टियों के समर्थक एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी मानते हैं। ऐसे में संगठनात्मक तालमेल बनाना आसान नहीं।”
क्या संभव है सुलह?
महाराष्ट्र की सियासत में ठाकरे बंधुओं की एकजुटता कई समीकरण बदल सकती है। मराठी अस्मिता और क्षेत्रीय हितों की बात करने वाली ये दोनों पार्टियां अगर एक साथ आती हैं, तो यह विपक्षी गठबंधन और सत्तारूढ़ दलों के लिए बड़ा झटका हो सकता है। लेकिन इसके लिए पुरानी कड़वाहट को भुलाना, संगठनात्मक ढांचे को एकजुट करना और कार्यकर्ताओं के बीच भरोसा कायम करना होगा।
फिलहाल, उद्धव और राज की सुलह की चर्चा सियासी गलियारों में एक रोमांचक संभावना तो बनी हुई है, लेकिन यह सपना हकीकत में बदलेगा या नहीं, यह वक्त ही बताएगा। क्या ठाकरे बंधु अपने मतभेदों को दरकिनार कर महाराष्ट्र के लिए एक नया इतिहास लिख पाएंगे? यह सवाल हर मराठी मानुष के मन में कौंध रहा है।