ट्रंप टैरिफ विवाद: भारत की मजबूती से अमेरिका का मनोबल टूटा, बातचीत के संकेत भेजे

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वाशिंगटन/नई दिल्ली, 28 अगस्त 2025: अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप द्वारा भारत पर लगाए गए 50 प्रतिशत टैरिफ के बावजूद, व्हाइट हाउस ने दोबारा बातचीत का संकेत दिया है। ट्रंप प्रशासन के व्यापार सलाहकार पीटर केंट नवारो ने कहा कि यदि भारत रूसी तेल की खरीद कम करता है, तो टैरिफ में 25 प्रतिशत की कटौती संभव है। उन्होंने इसे “मोदी का युद्ध” बताते हुए भारत से रूस-चीन के साथ गठबंधन छोड़ने की सलाह दी, लेकिन विशेषज्ञों का मानना है कि यह दबाव की रणनीति है, क्योंकि अमेरिका भारत को रणनीतिक साझेदार के रूप में खोना नहीं चाहता।

भारत-अमेरिका संबंधों में टैरिफ विवाद ने तल्खी बढ़ा दी है, लेकिन भारत की चुप्पी और मजबूत रुख ने वाशिंगटन को सोचने पर मजबूर कर दिया। ट्रंप ने 27 अगस्त से भारत से आयातित अधिकांश वस्तुओं पर 50 प्रतिशत टैरिफ लागू कर दिया, जो मुख्य रूप से रूस से सस्ते तेल की खरीद को लेकर दंड के रूप में है। भारत अपनी तेल जरूरतों का करीब 40 प्रतिशत हिस्सा रूस से पूरा करता है, जिसे ट्रंप यूक्रेन युद्ध के लिए रूस को फंडिंग मानते हैं। हालांकि, भारत ने इसे बाजार आधारित निर्णय बताया है और अमेरिकी दबाव को “अनुचित” करार दिया।

ट्रंप का यह कदम अप्रत्याशित था। जुलाई के अंत में 25 प्रतिशत टैरिफ लगाने के बाद, 6 अगस्त को अतिरिक्त 25 प्रतिशत का एलान किया गया, जो 27 अगस्त से प्रभावी हुआ। विशेषज्ञों के अनुसार, यह अमेरिका की “सेकेंडरी सैंक्शन” नीति का हिस्सा है, जो रूस के तेल खरीदार देशों को निशाना बनाती है। लेकिन चीन जैसे अन्य बड़े खरीदारों पर ऐसा कोई दंड नहीं लगाया गया, जिससे भारत में पाखंड का आरोप लग रहा है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता रंधीर जायस्वाल ने कहा, “हमारी खरीद ऊर्जा सुरक्षा के लिए है, और अमेरिका-यूरोप खुद रूस से व्यापार करते हैं।”

भारत की प्रतिक्रिया सधी हुई रही। सरकार ने कोई प्रत्यक्ष जवाबी टैरिफ नहीं लगाया, लेकिन निर्यातकों को राहत के उपायों की घोषणा की। कपास पर आयात शुल्क छूट को दिसंबर 2025 तक बढ़ा दिया गया, ताकि कपड़ा उद्योग प्रभावित न हो। विपक्ष ने हमला बोला- दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अमेरिकी उत्पादों पर 100 प्रतिशत टैरिफ लगाने की मांग की, इसे “आर्थिक ब्लैकमेल” बताते हुए। लेकिन वाणिज्य मंत्री पीयुष गोयल ने कहा कि भारत राष्ट्रीय हितों पर अडिग रहेगा और कृषि-डेयरी जैसे संवेदनशील क्षेत्रों में कोई समझौता नहीं होगा।

अमेरिका की ओर से बातचीत के संकेत मजबूत हैं। नवारो ने एक न्यूज पर कहा, “भारत लोकतंत्र है, इसलिए उसे अमेरिका के साथ खड़ा होना चाहिए। यदि वे रूसी तेल बंद करें, तो टैरिफ कम हो सकता है।” ट्रंप के विशेष दूत स्टीव विटकॉफ की मॉस्को यात्रा के बाद भी कोई ब्रेकथ्रू नहीं हुआ, लेकिन व्हाइट हाउस ने संकेत दिया कि यूक्रेन युद्ध पर शांति प्रयासों में भारत की भूमिका महत्वपूर्ण है। पूर्व अमेरिकी राजदूत केनेथ जस्टर ने इसे “रणनीतिक गलती” बताया, क्योंकि भारत जैसे सहयोगी को खोना अमेरिका के चीन विरोधी एजेंडे को कमजोर करेगा।

भारतीय अर्थव्यवस्था पर असर गंभीर हो सकता है। अमेरिका भारत का सबसे बड़ा निर्यात बाजार है, जहां 2024 में 86.5 अरब डॉलर का व्यापार हुआ। टेक्सटाइल, ज्वेलरी, ऑटो पार्ट्स जैसे श्रम-गहन क्षेत्र सबसे ज्यादा प्रभावित होंगे, जिससे जीडीपी वृद्धि 0.3-0.4 प्रतिशत गिर सकती है। गोल्डमैन सैक्स के अनुसार, निर्यात में 40-50 प्रतिशत कमी आ सकती है। लेकिन भारत की घरेलू मांग मजबूत है, और सरकार निर्यात प्रोत्साहन, ऋण गारंटी जैसे कदम उठा रही है। ईएफटीए व्यापार समझौते को 1 अक्टूबर से लागू करने का फैसला यूरोपीय बाजारों की ओर रुख करने का संकेत है।

ट्रंप की नीति व्यापक है। जापान, दक्षिण कोरिया पर भी दबाव डाला गया, लेकिन रूस-चीन के साथ भारत के संबंधों ने अमेरिका की चिंता बढ़ाई। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा, “हम बाइनरी चॉइस नहीं चुनेंगे। क्वाड भी है, ब्रिक्स भी।” भारत ने रूस के साथ रिश्ते बनाए रखने का फैसला किया, लेकिन अमेरिका से व्यापार वार्ता जारी रखी। अगस्त में अमेरिकी प्रतिनिधिमंडल की दिल्ली यात्रा रुकी, लेकिन अक्टूबर तक डील की उम्मीद है।

विश्लेषकों का कहना है कि टैरिफ दबाव का हथियार है, न कि स्थायी नीति। मूडीज ने अनुमान लगाया कि भारत की वृद्धि 6.3 प्रतिशत पर टिकी रहेगी। लेकिन यदि विवाद लंबा खिंचा, तो भारत रूस-चीन की ओर झुक सकता है, जो अमेरिका के लिए नुकसानदेह होगा। फिलहाल, “पिक्चर अभी बाकी है” जैसा लगता है, लेकिन भारत की मजबूती अमेरिका को बातचीत की मेज पर ला रही है।

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